अपने आप को टीबी तो हो गया पर अपने बच्चों को इस बीमारी से बचाने के लिए अभिभावक पीछे मुड़ रहे है। टीबी पर काम कर रहे वर्कर्स से बातचीत के दौरान हुई केस स्टडी में सामने आया है की खास तौर पर उच्च तबके के लोग ऐसा कर रहे हैं।
गौर हो कि जब परिवार में किसी को टीबी हो जाता है। तो उस मरीज के साथ उसके परिवार जन के भी टेस्ट किए जाते है।ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें ये जानने की कोशिश की जाती है कि कही अन्य लोगों में संपर्क में आने से उन्हें टीबी के लक्षण तो नहीं। ऐसे में ये चैक किया जाता है कि कहीं बच्चे भी प्रभावित तो नही क्योंकि अभिभावकों के सबसे ज्यादा नजदीक बच्चे रहते हैं।
जिसमें उन्हें टीबी होने का खतरा रहता है।लेकिन अभिभावक बच्चों को दवा खिलाने से डरते है। कई तो लिखकर भी दे रहे हैं कि वह अपने बच्चों को टीवी की दवा नहीं खिलाएंगे।
जिस पर टीबी टीम उन्हें दवा खिलाने के लिए जागरूक कर रही है लेकिन अक्सर हैरानी का विषय यह है कि उच्च वर्ग का तबका ऐसा ज्यादा पैदा कर रहा है बल्कि निम्न वर्ग के लोग जल्दी जागरूक होकर अपने बच्चों को दवा खिला रहे हैं। यह स्थिति टीवी जागरूकता के लिए परेशानी खड़ी कर रहा है।



