असर संपादकीय: कानून ही जनसंख्या नियंत्रण का एक मात्र उपाय – निधि शर्मा (स्वतंत्र लेखिका)
विश्व जनसंख्या दिवस -11 जुलाई विशेष)

निधि शर्मा
आज हम सब चाहते हुए और न चाहते हुए भी इस अनियंत्रित भीड़ का हिस्सा बन चुके हैं । यह वो भीड़ है जिसकी अशिक्षा व गरीबी ने ऐसा जनसंख्या विस्फोट कर रखा है जिसके सामने सरकारें और सिस्टम लाचार सा खड़ा नज़र आता है । एक अन्य पहलू यह है कि शायद हमारे देश की सरकारें, राजनैतिक पार्टियाँ और उनके द्वारा बनाया गया सिस्टम चाहता ही नहीं कि इस स्थिति में सुधार हो क्योंकि असली मुद्दा तो वोट का है । कोई अपने धर्म की, तो कोई अपनी जाति की जनसंख्या बढ़ाना चाहता है बेशक उससे गरीबी, अशिक्षा, संसाधनों पर दबाव और लैंगिग असमानता बढ़ती हो । असल मुद्दा तो अपने रूतबे बढ़ाने का है । असल बात सिर्फ इतनी ही है कि रूतबा देश और देश के विकास से बनता है । लेकिन इस समय हमारे देश की पहचान भीड़ तंत्र को बढ़ाने के रूप में हो रही है । संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व में लगभग 7.8 बिलियन जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत हिस्सा भारत का है। जरा सोचिए?
आज विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर इन मुद्दों पर बात की जा सकती है । संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर वर्ष 11 जुलाई को यह दिन मनाया जाता है । इस दिवस की शुरूआत करने का श्रेय विश्व बैंक में सीनियर डेमोग्राफर डॉ. के.सी. जैक्रियाह को जाता है । यूएनओ द्वारा 11 जुलाई 1987 को पाँच बिलियन दिवस के नाम से कार्यक्रम की शुरूआत हुई । लेकिन विधिवत तौर पर यह दिवस पहली बार 1990 से दुनिया भर में मनाया जाने लगा । इस दिवस को मनाने का उद्देश्य परिवार नियोजन, लैंगिग समानता, गरीबी उन्मूलन जन्मदर मृत्यु दर और पुजनन से संबंधित समस्याओं और विशेषकर मानवाधिकार आदि अनेक मुद्दों के बारे में जागरूक करना है जो संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास कार्यक्रम का अभिन्न हिस्सा है । लेकिन दुर्भाग्यवश अमेरिका जैसे विकसित देश में भी उपरोक्त उद्देश्यों को पूरी तरीके से पूरा न कर पाने में सेंध लग चुकी है । अभी हाल में ही अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट द्वारा महिलाओं को 1973 में रो बनाम वेड केस के दौरान मिले गर्भपात करवाने संबंधित संवैधानिक अधिकार को खत्म कर दिया गया है । जिसका विश्वभर में महिला संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है । इस निर्णय के अगर मूल समस्या तक जाएँ तो वहाँ की राजनीति ने रूढ़िवादी मानसिकता को स्पोर्ट करने वाले लोग इस कानून के पक्षधर है । यानि की विश्वभर में स्वंयहित साधने वाली सरकारें और राजनैतिक पार्टियाँ ही लैंगिग असमानता, महिलाओं के स्वस्थ्य से जुड़ी संकुचित मानसिकता एवं मानवाधिकारों से कोई सरोकार नहीं रखती । क्योंकि विकसित देशों को अपनी जनसंख्या बढ़ाने के लिए और विकासशील व अविकसित देशों के राजनैतिक दलों को अपनी राजनीति चमकाने के लिए जनसंख्या का विस्फोट चाहिए ।
इस वर्ष इस दिवस को मनाने की थीम विकास और प्रकृति पर अधिक जनसंख्या के प्रभावों के बारे में जागरूक करना है । क्योंकि बढ़ती जनसंख्या का खामियाज़ा सबसे ज्यादा पर्यावरण को ही उठाना पड़ रहा है । अनियंत्रित संसाधनों के उपयोग से जनसंख्या नियंत्रण के प्रति बनाए गए सतत विकास के बिंदुओं को आगामी कई वर्षों तक भी पूरा नहीं किय जा सकता ।
यही हाल रहा तो प्रकृति कभी सुनामी, भूकम्प या कोविड जैसी भयंकर महामारी बनकर स्वयं जनसंख्या का काल बन रही है और बनती रहेगी । इन सब का एक मात्र उपाय जनसंख्या नियंत्रण के लिए ठोस कानून बनाने का है। विशेषकर हमारे देश में सभी राजनैतिक पार्टियाँ, पक्ष व विपक्ष एक सुर में मिलकर जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक साथ आएं । क्योंकि अगर यही हाल रहा तो, भूल जाइए कि सरकारों के पास नई टैक्नॉलजी और अनुसंधान के लिए पैसा बचेगा तो पैसा तो भीड़ तंत्र की भूख, गरीबी और अशिक्षा को घटाने में ही खर्च होगा जिसे पिछले कई सालों से सरकारों की अदूरदर्शिता ने बढ़ा रखा है । इस समय माननीय प्रधानमंत्री और उनकी दृढ़ सरकार से यही अपील है कि कानून लाइए, विपक्ष द्वारा उसे स्पोर्ट करना ही पड़ेगा । सही मायने में देशभक्ति, देश को भीड़तंत्र से बचाने में है । विशेषकर युवावर्ग आपका आभारी रहेगा ।



