

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी …
सुग्रीव के साथ जब पहली बार वाली का युद्ध होता है तो वाली उसे बुरी तरह से हरा देता है।अपनी शर्मनाक हार से दुखी हो कर सुग्रीव श्रीराम के प्रति अपना रोष प्रकट करता है कि उन्होंने वादा किया था उसकी मदद के लिए, जब कि हुआ इसके विपरीत|

श्रीराम उसको अच्छी तरह से समझाते हैं कि क्योंकि दोनों में इतनी समानता थी कि उन्हें पता ही नहीं चल पाया कि उन में से वाली कौन है और सुग्रीव कौन. इस भ्रम को दूर करने के लिए श्रीराम सुग्रीव को सुझाते हैं कि उसे कुछ इस तरह से कोई निशानी रखनी चाहिए जिससे उन्हें दूर से ही पता चल जाये कि दोनों में से सुग्रीव कौन है।

इस प्रयोजन से श्रीराम अपने हाथों से सुग्रीव के गले में फूलों की एक माला पहना देते हैं और सुग्रीव को फिर से प्रोत्साहित कर के बाली से युद्ध करने के लिए कहते हैं. श्रीराम की बात मान कर और गले में उन की पहनाई हुयी माला पहनकर सुग्रीव एक बार फिर से वाली को ललकारता है|
वाली की पत्नी तारा को अशुभ की आशंका होती है और वो पूर्ण यत्न करती है कि वाली सुग्रीव संग युद्ध के लिए न जाए. लेकिन ऐसा संभव ही नहीं था क्योंकि वाली एक बहादुर वानर था और उसे कोई युद्ध के लिए ललकारे, तो वो रुक ही नहीं सकता. ऐसे में बाली तारा को इस प्रकार से समझाता है|

बाली की वीरता (किष्किन्धा काण्ड सरग १६, शलोक ३,४,५) वाली कहता है कि वीरों के लिए, विशेषकर उन वीरों के लिए जो अजय हों और जो कभी भी किसी द्वन्द से पीछे न हटे हों, अगर उन पर कैसा भी शत्रु हमला करे और वो वीर उस से मुकाबला करने की बजाए पीछे हट जाए, तो ऐसा उसके लिए म्रत्यु से भी बदतर होता है.
नहीं, मैं ऐसा उधंड व्यवहार स्वीकार नहीं कर सकता, शोर शराबा तो दूर की बात है, सुग्रीव जैसा कमज़ोर वानर मेरे साथ युधभूमी में युद्ध करने की इच्छा रखता है? तुम्हें भी श्रीराम की वजह से और मेरी खातिर परेशान होने की आवश्यकता नहीं है. श्रीराम, जिनको उचित-अनुचित की पहचान है,और जो अपने कर्तव्य को खूब पहचानते हैं, किसी मासूम को कैसे मार सकते हैं?
हालांकि वाली का वध श्रीराम के हाथों हो जाता है, लेकिन मरने से पहले वाली व श्रीराम के मध्य खूब संवाद होता है.दरअसल वाली अत्यंत हैरान व परेशान है कि उसे धोखे से क्यों मारा गया. इसलिए, मरने से पहले वाली श्रीराम से उस समय कुछ प्रश्न करता है, जब वो श्रीराम के बाणों से घायल हो कर, मरणावस्था में धरती पर पड़ा हुआ है|
उन प्रश्नों को वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार बताया गया है।
बाली के श्रीराम से प्रशन (किष्किन्धाकाण्ड सर्ग १७, शलोक १६,१७,१८,१९,२०,२१,२२,२३,२४,२५,२६,२७,२८,२९,३१,३२,३३,३४, ४३, ४५. वाली प्रश्न कर रहा है कि हे श्रीराम, आप एक प्रभुसत्ता संपन्न, लोकप्रिय और हमेशा प्रसन्नचित रहने वाले शासक हो. आपने ऐसे व्यक्ति के प्राण ले कर, जो कि आप के साथ युद्ध कतई नहीं कर रहा था, आपने ऐसा कौन सा युद्ध जीत लिया है? मेरी मृत्यु उस समय हो रही है और वो भी आपके हाथों जब कि मैं किसी और के साथ युद्ध में संलग्न था.
श्रीराम तो एक कुलीन वंश से सम्बन्ध रखते हैं, उन में अच्छाईयों का भण्डार है और वे साहस से भरपूर होने के साथ-साथ धार्मिक वचनों से भी प्रतिबंधित हैं. उन्हें मालूम है कि दया क्या होती है और उनका जीवन लोगों की भलाई के लिए ही है. यही नहीं, वे अत्यंत दयालु होने के इलावा अत्यंत शूरवीर भी हैं और उनको यह ज्ञात है कि किस समय पर क्या करना चाहिए और वे अपने वचनों के प्रति प्रतिबद्ध भी रहते हैं.
इन शब्दों के ज़रिये, इस धरा के सभी जीव उनकी स्तुती करते हैं. अपनी इन्द्रियों और मन पर काबू बनाये रखना, दूसरों को क्षमा करना, हमेशा सच के मार्ग पर चलना, शूरवीर बनना और बुराई करनेवालों को दण्डित करना, ये सभी एक राजा के गुण होते हैं|
यह सब जानते हुए और इन सभीको मानते हुए कि यह विशेषताएं आप में विधमान हैं, मैंने सुग्रीव को द्वन्द युद्ध के लिए ललकारा, हालांकि तारा ने मुझे ऐसा करने के लिए मना भी किया था. मैंने तो आप को देखा भी नहीं था और मेरे मन में ऐसा विचार भी नहीं आया कि आप मुझ पर प्रहार करने से रुकेंगे नहीं जबकि मैं तो पूर्णतया जोश के साथ अपने दुश्मन के साथ युद्ध में लगा हुआ था. अब(जबकि) मुझे पता चल गया है कि ये आप हैं जिन्हों ने आत्मा का वध किया है ( यानि अंतरात्मा के विपरीत कार्य करने कारण ), जान लीजिय कि जो नेकी करने का दिखावा करता है लेकिन अंदर से साफ़ व पवित्र नहीं होता, वो ऐसे कुएं की भांति होता है जिसका मुख कुशा यानी घास-फूस से ढका होता है. मैं नहीं जानता था (अब तक) कि आप नेकी का चोला तो पहने हुए हो, लेकिन अंदर से आप दुराचारी हो|
आपने सहानुभूति का नकाब अपने चेहरे पर लगा रखा है जिससे आप एक छुपे हुए वृक्ष लगते हो. जब मैंने आपके राज्य में किसी भी प्रकार का दुराचार कृत्य नहीं किया, न ही मैंने आप के प्रति किसी तरह के दुर्वचन बोले, ऐसे में आप ने मुझे क्यों मारा? मैं तो एक वानर हूँ जो कि फल-फूल ही खा कर अपने निर्वाह करता है, और जो न तो आपका किसी प्रकार का विरोध कर रहा था, और यहाँ पर किसी और के साथ युद्ध में लगा हुआ था?
आप एक प्रभुसत्ता संपन्न राजा के पुत्र हो, इसलिए विशवास के योग्य हो और अत्यंत प्रसन्नचित भी दिखते हो. आपने अपने शरीर पर ऐसे वस्त्र व आभूषण धारण किये हुए हैं जिनसे आपके शालीन होने का आभास भी होता है, हे राजन! जिसने क्षत्रिय कुल में जन्म लिया हुआ हो और जिसमें अत्यंत ज्ञान हो, जिसके मन में उठ रहे संदेह कि क्या उचित है और क्या अनुचित, ऐसे ज्ञान से दूर हो चुके हों, जिसने दूसरों के प्रति दया व स्नेह का भाव अपना रखा हो, वो ऐसे निर्दयी व्यवहार कैसे कर सकता है|
जैसा कि आपने किया है? हालांकि आपने रघु वंश में जन्म लिया है और चहुँ और आपके नेक कार्यों की चर्चा है, फिर भी आप निर्दयी हो. ऐसे में आप शराफत का चोला पहनकर क्यों घूम रहे हो? दूसरों को अपनी बातों से मनवा लेना, उदारवादी होना, क्षमाकर्ता बनना, न्याय के पथ पर चलना, सच्चाई के मार्ग पर रहना, स्वंय पर काबू करे रखना, शूरवीर होना व बुरे लोगों को दण्डित करना, ये सभी एक शासक की विशेषतायें होती है. धरा, स्वर्ण और चांदी तो जीतने के लिए होते हैं, लेकिन हे राजन, इस वन में आपको ऐसी कौन सी वस्तु ने आकर्षित किया कि आप यहाँ विचरित कर रहे हो? उन फलों के लिए जो कि मेरे लिए हैं?
प्रजा पर शासन करना व व दयालुता दिखाना, सजा देना और पुरस्कार देना, एक राजा के कर्तव्य होते हैं, जिन्हें अलग अलग मौक़ों पर एक राजा को अपने व्यवहार से दिखाने होते है, न कि ऐसा व्यवहार कि जो राजा को पसंद हो. जबकि आप को इच्छायो ने काबू किया हुआ है, आप बहुत जल्द क्रोधित हो जाते हो, आप स्थिर नहीं हो|
आप एक राजा के कर्तव्य का पालन करते हुए भेद-भाव करते हो और आप ने अपना लक्ष्य बना रखा है कि जब आप का मन हो आप तीर चला दें. हे लोगों पर शासन करने वाले, आप में न तो नेकी के लिए किसी प्रकार का सम्मान है और न ही ऐश्वर्य को हासिल करने हेतु आपका मन स्थिर है|
आपका जैसा मन चाहे आप अपनी इन्द्रियों के वश में आकर वैसे ही व्यवहार करते हो. मुझे समझ में नही आ रहा कि,आप जो कि धोखेबाज़, शरारती, छोटे विचारों वाले, पापी और दिखावी शांत मन वाले हो, दशरथ जैसे पुण्यात्मा ने आपको कैसे पैदा कर दिया? इतना घोर अनर्थ कर चुकने के बाद, जिसकी हर कोई नेक इंसान भर्त्सना करेगा, आप किस प्रकार अपने व्यवहार को उचित ठहरा सकोगे जब आप पवित्र लोगों का संग करोगे?
बाली का अंगद को आख़िरी परामर्श म्रत्यु से पहले बाली अंगद को सलाह देते है, जिसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह से बताया गया है (किष्किन्धा काण्ड सर्ग २२, शलोक २०,२१,२२,२३)
अंगद, समय और स्थान का पूरा सम्मान करते हुए (कैसा भी कार्य करते समय) सहमति व असहमति को एक समान देखते हुए, हर्ष व विषाद को एक किनारे करते हुए, जैसा भी समय आये, सुग्रीव के साथ ही रहना.
ऐसा भी हो सकता है कि सुग्रीव तुम्हे सम्पूर्ण सम्मान न दे, जब कि तुम वैसा ही व्यवहार कर रहे हो जैसा कि तुम्हे मैंने करना सिखाया है, हे राजकुमार! तुम्हे उनके साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए जो उसके मित्र नहीं है अपने शत्रुयों पर विजयी होने वाले राजकुमार अपने स्वामी की इच्छायों अनुसार चलो और उसके प्रति वफादार बने रहना. स्वंय पर काबू कर के रखना और सुग्रीव के कहे अनुसार चलना. कभी भी तुम्हें अत्यधिक लगाव और स्नेह की कमी (किसी के भी लिए) नहीं दिखाना है, क्योंकि दोनों ही से नुक्सान होता है|
इसलिए, हमेशा अपने सुनहरे लक्ष्य पर केन्द्रित रहना.




