सम्पादकीय

असर संपादकीय: भ्रष्टाचार – सर्वव्यापी, सदैव जीवित

रिटायर्ड मेज़र जनरल एके शोरी की कलम से

रिटायर्ड मेज़र जनरल एके शोरी …

भ्रष्टाचार हर जगह है, रिश्वत के बिना कुछ नहीं होता, पूरी व्यवस्था भ्रष्ट है – ये सामान्य बातें हैं जो लोग आम तौर पर एक-दूसरे के साथ बातचीत करते समय करते हैं भ्रष्टाचार धारणा सूचक रैंकिंग (सीपीआई रैंकिंग) एक गैर-सरकारी संगठन, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित की जाती है।

किसी देश या क्षेत्र की रैंक सूचकांक में अन्य देशों और क्षेत्रों के सापेक्ष उसकी स्थिति को दर्शाती है। 2024 में प्रकाशित इसकी रिपोर्ट के अनुसार, भारत 93वें स्थान पर है। ऐसा क्यों है? वह देश जो संतों, देवताओं, उपदेशकों की भूमि है, जहाँ नदियाँ, वृक्ष और पर्वत भी ईश्वर के तुल्य माने जाते हैं, वह देश भ्रष्ट आचरण से क्यों जूझ रहा है? हमारे देश में जहां सैकड़ों बाबा हर दिन उपदेश देते हैं कि हमारे जीवन को कैसे नियंत्रित किया जाए और उनके करोड़ों अनुयायी हैं, वहां इतना भ्रष्टाचार क्यों है? लोग अपने दैनिक जीवन में या जब भी स्थिति की मांग होती है, रिश्वत लेते भी हैं और देते भी हैं और साथ ही कुढ़ते भी रहते हैं, ये दूसरी बात है कि रिश्वत देते समय ही वे खीझते हैं, लेते समय नहीं। सवाल यह उठता है कि आखिर हमारे देश में ऐसा क्यों हो रहा है? आइए हम दूसरे देशों के मामलों में अपनी टाँग न अड़ायें, बल्कि अपने देश के भ्रष्ट परिदृश्य पर विचार करें।

किसी लंबित चीज़ या कार्य के लिए अनु ग्रह मांगना या दूसरे पक्ष द्वारा किए जाने वाले किसी कार्य के बदले में कोई चीज़ प्रदान करना हर इंसान के साथ होता है और वह भी बचपन से ही। यदि हम किसी भी धार्मिक दृष्टिकोण के बिना, स्वतंत्र और खुले दिमाग से समझने का प्रयास करें तो देखते हैं, कि एक बच्चे को शुरू से ही माता-पिता द्वारा किसी देवता के सामने झुकने और कुछ मांगने के लिए कहा जाता है। यह ठीक है क्योंकि आस्था और अच्छी भावनाएँ हमें सर्वशक्तिमान का सम्मान करने के लिए प्रेरित करती हैं; लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब वही बच्चा अपनी इच्छा पूरी होने पर उसके बदले में कुछ वापस करने का वचन देता है। उदाहरण के लिए, जब यह वादा किया जाता है कि यदि मैं परीक्षा में पास हो जाऊँगा या यह काम हो जाएगा तो बदले में मैं यह चीज़ या वह चीज़ पेश करूँगा, तो ऐसा वादा क्या हुआ, इसे रिश्वत कहा जाय या नहीं? यह जीवन के विभिन्न चरणों में होता है और देवता के सामने वादे किए जाते हैं, प्रतिबद्धता मांगी जाती है कि आप मुझ पर यह उपकार करें और बदले में मैं आपके लिए यह काम करूंगा। यह और कुछ नहीं बल्कि एक प्रकार की आध्यात्मिक रिश्वत है जिसे आस्था, सम्मान, आदर की दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता; क्योंकि सर्वशक्तिमान, समस्त सर्वोच्च शक्ति कभी किसी से कुछ नहीं माँगती। वह शक्ति जो ब्रह्माण्ड का संचालन कर रही है उसे किसी से किसी भौतिक वस्तु की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यह सदियों से होता आ रहा है और इसका नतीजा यह है कि एहसान माँगना और उस एहसान के बदले में कुछ वापस देने का वादा करना हमारे जीन में है। और जब हम समाज में व्यावहारिक रूप से चीजों से निपटते हैं तो हम इसे वास्तविक शब्दों में बदल देते हैं जो हैं सेवा पानी, बच्चों के लिए मिठाई, खातिरदारी आदि।

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एक और दिलचस्प बात यह है कि रिश्वत या भ्रष्टाचार पैसे तक ही सीमित नहीं है, यह विभिन्न प्रकार के एहसानों के रूप में है जिनका कोई अंत नहीं है। परिवार के सदस्यों के विविध खर्चों की देखभाल, आउट-ऑफ-टर्न आवंटन, पसंदीदा पोस्टिंग में लाभ आदि सूची अंतहीन है। जो वर्तमान व्यवस्था भ्रष्ट है उसकी उत्पत्ति शून्य में नहीं हुई है, बल्कि इसे भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाहों और बड़े पैमाने पर जनता द्वारा भ्रष्ट बना दिया गया है। पैसे के प्रति दीवानगी या लालच अंतहीन है, इंतजार करने का धैर्य सीमित है और दिखावे का शोर मार रहा है। चूँकि धन-बल के कारण अमीरों का सम्मान किया जाता है और गरीबों को दोयम दर्जे का समझा जाता है, इससे हर किसी में धन इकट्ठा करने की भूख पैदा होती है। दैनिक जीवन की जरूरतें और आवश्यकताएं सीमित हैं लेकिन हर कोई दैनिक जीवन की जरूरतों पर भी खुलकर खर्च करना चाहता है, ताकि उपयोग कम और दिखावा अधिक किया जा सके। जीवन यापन की बढ़ती लागत और अनिश्चित भविष्य भी लोगों को धन संचय करने के लिए अनुचित तरीके अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। मशहूर हस्तियों की भव्य जीवन शैली दिखाने वाले विज्ञापन ईर्ष्या और उनके जैसा बनने की भूख पैदा करते हैं, जो अन्यथा ईमानदारी से जीने से संभव नहीं है, इसलिए रातों रात अमीर बनने के तरीके अपनाए जाते हैं। अपराधियों का ग्लैमर और सत्ता में उनका उदय भी गलत छवि पेश करता है।

उपरोक्त सभी से यह संकेत मिलता है कि भ्रष्टाचार विभिन्न रूपों और आकृतियों में हर जगह मौजूद है और हमारी प्रणाली, जीवन शैली, आदतों, आचरण और व्यवहार का हिस्सा है। क्या यह हमेशा ऐसा ही रहेगा जैसा यह है? क्या कभी इसमें कोई राहत मिलेगी या इसका अंत होगा? क्या लोग हमेशा इसका हिस्सा बनकर शिकायत ही करते रहेंगे अथवा इससे निजात भी पाना चाहेंगे? क्या भ्रष्टाचारी लोगों का ही बोल बाला रहेगा? क्या कभी हमारा देश भी डेनमार्क, स्वीडन , स्विट्ज़रलैंड और ऐसे ही अनेकों देश जो कि हम से बहुत ऊपर हैं, उनमें शामिल हो पायेगा? इसमें कई प्रश्न, किंतु-परंतु हैं और मैं इस लेख में कोई तैयार समाधान भी नहीं दे सकता। मैं केवल आशा और प्रार्थना करता हूं कि हमारी तथाकथित चेतना हमें बार-बार प्रेरित करती रहे। हमें न तो कोई गलत प्रवृत्ति स्थापित करनी चाहिए और न ही अपनी अगली पीढ़ियों को गलत मार्गदर्शन और सलाह देनी चाहिए। ईमानदारी, समर्पण ही ऐसी चीजें हैं जो लंबे समय तक हमारे साथ चलती हैं। इसका मतलब यह भी नहीं है कि व्यक्ति को मूर्ख होना चाहिए, बल्कि व्यक्ति को स्पष्ट सोच वाला और साफ-सुथरा होना चाहिए। जिंदगी छोटी है लेकिन यादें लंबी हैं, लोग जीते हैं और मर जाते हैं लेकिन उनके कर्म हमेशा यहीं रहते हैं। आइए हम जीवन के प्रति अपने आचरण, व्यवहार और दृष्टिकोण में ईमानदार और सच्चा होने के लिए प्रतिबद्ध हों।

Deepika Sharma

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