असर विशेष:बेनूर आंखों के संघर्ष व सफलता की कहानी
उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव की कलम से..

यह एक ऐसी बेटी की कहानी है जो अनेक बच्चों को प्रेरणा दे सकती है। उसने आंखों में रोशनी न होने, निर्धनता और अनुसूचित जाति में जन्म लेने को अपनी कमजोरी नहीं माना। सिर पर माता पिता का साया भी नहीं था। आर्थिक तंगी को उसने दूर से नहीं देखा बल्कि जिया। लेकिन प्रतिभा, मेहनत, लगन और ईमानदारी जैसे गुण तो ईश्वर ने उसे उपहार में दिए। बचपन से लेकर दसवीं तक की पढ़ाई अंजना ने सुंदरनगर स्थित राज्य सरकार द्वारा संचालित दृष्टिबाधित छात्राओं के विशेष विद्यालय से की। जब वह 9वीं कक्षा में थी, मुझे उसके विद्यालय में जाकर बच्चों को संबोधित करने का सौभाग्य मिला। वह मुझे मिली और बस मेरी प्यारी बेटी बन गई। उमंग फाउंडेशन ने दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद उसका दाखिला शिमला के प्रतिष्ठित पोर्टमोर स्कूल में करा दिया और अन्य दृष्टिबाधित छात्राओं के साथ ही उसकी पढ़ाई की जिम्मेवारी भी ले ली। हॉस्टल में रहकर उसने 12वीं की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास की। दृष्टिहीन युवाओं के लिए कंप्यूटर आंख का काम करता है। हमारा दुर्भाग्य कि प्रदेश में टॉकिंग सॉफ्टवेयर के माध्यम से कंप्यूटर डिप्लोमा कराने का कोई प्रबंध नहीं था। सुंदरनगर में विकलांग युवाओं के लिए स्थापित की गई आईटीआई मैं कंप्यूटर का 1 वर्षीय पाठ्यक्रम होता था। परंतु दृष्टिबाधित युवाओं को इसलिए दाखिला नहीं मिलता था क्योंकि सरकार के अनुसार यह लोग कंप्यूटर पर काम नहीं कर सकते। मैंने वर्ष 2016 में काफी प्रयास करके अंजना और पोर्टमोर स्कूल में उसके साथ पढ़ रही अन्य दृष्टिबाधित छात्राओं को ध्यान में रखकर उस आईटीआई में कंप्यूटर का कोर्स शुरू कराया। अंजना एक अन्य छात्रा के साथ अपने बैच की टॉपर बनी। फिर बिलासपुर जिले के घुमारवीं कॉलेज के हॉस्टल में रहकर उसने प्रथम श्रेणी में बीए किया। पिछले वर्ष हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एमए (इतिहास) में प्रवेश लिया। पिछले दिनों राज्य सरकार के चुनाव विभाग में उसका चयन लिपिक के पद पर हो गया। पहले सेमेस्टर की परीक्षा देने के बाद आज उसने अमृता नेगी के साथ जाकर घुमारवीं में ज्वाइन कर लिया। वह अपने सारे काम स्वयं करती है। कंप्यूटर पर उसे काम करता देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं। वह फेसबुक, व्हाट्सएप, टेलीग्राम एवं ऐसे ही अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय है। उसके संघर्षों में अनेक लोगों ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उमंग फाउंडेशन के महासचिव और मेरे मित्र यशवंत राय, मेरी पूर्व विद्यार्थी और घुमारवीं कॉलेज में पत्रकारिता की सहायक प्रोफेसर एवं हॉस्टल वार्डन डॉ. रीता दीवान, पत्रकार मनीष गर्ग तथा पोर्टमोर स्कूल की शिक्षिका सरिता चौहान की इसमें मुख्य भूमिका रही। इनके अलावा उमंग फाउंडेशन से जुड़े युवाओं- ज्योति गौतम, मोनिका राव, मीनू चंदेल, अमृता नेगी, सवीना जहां, यश ठाकुर, मुकेश कुमार, विशाल और बबिता देवी आदि ने समय-समय पर उसका साथ दिया। उसकी सहपाठी छात्राओं ने भी हमेशा उसकी चिंता की। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सिकंदर कुमार और इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अरुण सिंह भी इनमें शामिल हैं। एक बेटी की यह कहानी इसलिए शेयर कर रहा हूं कि कोई भी लड़की विकट से विकट परिस्थितियों में हिम्मत न हारे। गरीबी, जाति का दंश, विकलांगता और ऐसे ही अनेक कारण अक्सर युवाओं का हौसला तोड़ देते हैं। लेकिन जब वह हिम्मत करते हैं तो समाज का एक वर्ग उनका हौसला बढ़ाने के लिए भी आगे आता है। और अंजना जैसे बच्चे विपरीत परिस्थितियों को लाँघ कर अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं। निजी तौर पर मेरे लिए आज बहुत खुशी का दिन है।



