विशेषसम्पादकीय

असर संपादकीय: “चक्का जाम” …

"आत्मनिर्भर सुवर्ण " हेमंत शर्मा की कलम से..

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छह बजे का अलार्म अपनी पूरी कठोरता से बज उठता है, ऑंखें मलते मलते आत्मनिर्भर अपनी सम्पूर्ण शक्ति जुटा बिस्तर को अलविदा कहता है और उसे दोबारा मिलने की उम्मीद में कमरे से बाहर निकल जाता है ! मार्च का महीना ठण्ड से अभी थोड़ी राहत मिली थी पर शायद उतनी नही जो नींद त्यागने में मदद कर सके ! बहरहाल कुछ भी हो, आत्मनिर्भर का विश्वगुरु की अर्थव्यवस्था को सुद्रढ़ बनाने की दिशा में आज का पहला कदम था ! अपनी पूरी उर्जा समेट वह बाथरूम की और बढ़ा और जैसे ही नल खोला तो पाया पानी नही है शायद और दिनों की तरह कुछ देरी से आये या न भी आये, राजधानी में अक्सर पानी की किल्लत तो रहती ही है और गर्मियों में और भी बढ़ जाती है ! आत्मनिर्भर ने सिर्फ हाथ मूंह धो कर जल्द से जल्द निकलने का निर्णय लिया मन में तयशुदा समय पर बाकी साथियों से मिल कर यात्रा शुरू करने का प्रयास था ताकि दिन का उत्तम इस्तेमाल हो सके कार्यक्षेत्र में और विश्वगुरु की तरक्की सुनिश्चित हो सके और गृहस्थी भी बिना किसी अवरोध के चल सके ! रास्ते में बंदरों के आतंक का भी भय था जो के अक्सर राजधानी में आमजन को परेशान करते देखे जा सकते थे ! सभी संघर्षों को साधता हुआ आखिरकार व्यापारिक यात्रा का प्रारंभ हुआ, खाली सड़क, स्कूल बस का इंतज़ार करते बच्चे छावनी में तब्दील हुआ शहर, शायद आज कोई आन्दोलन था ! हवा को चीरती कार राजधानी से बाहर निकली ! विकास के एक जीवंत उदाहरण राष्ट्रीय राजमार्ग पर अपनी पूरी गति से फुल्ली आटोमेटिक कार प्रगति की साक्षी बन अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगी, कुछ किलोमीटर चलने के बाद एकाएक वाहनों की लम्बी कतार ने कार्यक्षेत्र की ओर बढ़ रही आत्मनिर्भर की कार को रोक दिया ! पहिये थम गये, नारे सुनाई देने लगे, पूछताछ करने पर पता चला विश्वगुरु के समाज गाँव का सुवर्ण नाम का शिष्ट नागरिक अपनी किसी मांग को लेकर आज आत्मनिर्भर को रोकने पर अमादा है ! अपनी ही धुन में सवार आज सुवर्ण उपचार के लिए जाते मरीज़ में सहनुभूति और शिक्षा ग्रहण करने जाते हुए छात्र में सुनेहरा भविष्य नही देख पा रहा था तो आत्मनिर्भर की तो किसे परवाह थी ! वह तो बस किसी एक विशेष दर्जे की महत्वकांक्षा रखते हुए समय की गति को पूर्ण विराम लगाने पर तुला था ! क्या DC क्या SP, सभी अपने पुरे दलबल के साथ स्थिति नियंत्रित करने में लगे थे पर सब विफल, और लोकतंत्र बेबस ! आखिरकार आत्मनिर्भर को हताश हो कर लौटना पड़ा ! विश्वगुरु की अर्थव्यवस्था को सशक्त करने का एक अवसर नष्ट हो चूका था ! आत्मनिर्भर इसी उधेड़बुन में था के आखिर क्यूँ विश्वगुरु का समाज गाँव बंटने की ओर अग्रसर है ! अहंकार और अलगाव का झंडा उठाये सुवर्ण क्यूँ इतना प्रखर हुआ चला जाता है, संभव है कोई नैतिक मांग भी रही होगी परन्तु प्रक्रिया उन मांगों पर संदेह करने पर विवश कर रही थी, आत्मनिर्भर भ्रमित था, के आन्दोलनकर्ता सुवर्ण, राजा सुवर्ण, व्यवस्था में सुवर्ण, न्यायपालिका में सुवर्ण, कुछ एक शौचालय के रखरखाव तथा मुन्सिपलिटी के के बुनियादी कार्यों को छोड़ हर जगह सुवर्ण था, और यदि सुवर्ण के साथ कोई अन्याय हुआ भी था तो यह समझ नही आता था के न्यायलय के बजाय वह सड़कों पर क्यूँ उतरा था, देखने में तो समृद्ध नज़र आता था ! बहरहाल समय के रूप में, मानव शक्ति के रूप में संसाधन को अराजकता की भेंट चढ़ता देख आत्मनिर्भर घर लौट गया !
हेमंत शर्मा

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Deepika Sharma

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