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असर विशेष: ज्ञान गंगा” सुग्रीव – एक आदुत्तीय व्यक्तित्व” 

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी की कलम से..

 

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी…

सुग्रीव – एक आदुत्तीय व्यक्तित्व 

सुग्रीव एक बहादुर वानर होने के साथ-साथ अपने नियमों के प्रति पूर्णतया प्रतिबद्ध था और उसका बौधिक ज्ञान भी उच्च स्तर का था। उसने समय समय पर श्रीराम को न केवल उचित व सही परामर्श दिए, बल्कि हमेशा एक सच्चे दोस्त का फ़र्ज़ भी पूरी तरह से निभाया, विशेष कर उस समय जब श्रीराम सीता की याद में अनायस उदास हो जाया करते थे। श्रीराम के साथ प्रथम भेंट के दौरान ही सुग्रीव की उन संग बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी थी। दोनों ने महसूस किया कि वे एक ही दुःख यानी पत्नी – विछोह से ग्रस्त हैं।

इसी कारण दोनों की दोस्ती जल्द ही प्रगाड़ हो गयी। सुग्रीव ने अत्यंत दार्शनिक तौर से श्रीराम के साथ अपनी पीड़ा, विचारों और भावनायों को समय समय पर साँझा किया, जिसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह से दर्शाया गया है। (किष्किन्धा काण्ड सर्ग ७, शलोक ६,७,८,९,१०,११,१२,१३)

सुग्रीव की श्रीराम प्रति भक्ति  

सुग्रीव श्रीराम को सम्बोधित कर कहते हैं कि अपनी पत्नी से बिछुड़ जाने के उपरान्त मंस भी आप ही की तरह अत्यंत पीड़ा से गुजर रहा हूँ। लेकिन, फिर भी मैं न तो इतना शोक में डूबा हुआ हूँ और न ही मैंने अपना साहस खोया है, जिस तरह से आप दिख रहे हो। यधपि मैं एक साधारण बन्दर हूँ, लेकिन मैं अपनी पत्नी के लिए इतना शोकग्रस्त नहीं हूँ, तो ऐसे में आप को कैसा होना चाहिये? आप तो इतने सुन्स्कृत होने के साथ- साथ अत्यंत उदार, साहस से भरपूर और उच्च श्रेणी की आत्मा हो। धैर्य व शान्ति का सहारा लेते हुए आप को अपने आंसुओं को काबू में करना चाहिए, जो कि साफ़ दिखाई दे रहे हैं।

आपको अपने चरित्र में विधमान अच्छे व्यवहार और स्वंय पर वश रखे रखने की विशेश्तायों को छोड़ना नहीं है। अपने विचारों को सम्मुख रखते हुए (कि कैसा आचरण करना चाहिए) विशेषकर ऐसी परिस्थितयों में जब कि अथाह दुखों ने घेर रखा हो (अपने प्रिये से जुदाई की वजह से) अथवा वित्तीय मुसीबतों में घिरने पर या ऐसे खतरे में घिर जाने पर जिसमें जान का ख़तरा हो, ऐसा मानव जो हमेशा शांत व धीर स्वभाव का हो, उसका दुःख व विषाद में घिर जाना उचित नहीं है। एक मूर्ख मानव जो कि बहुधा मानसिक दुर्बलता कारण मजबूर हो कर शोकग्रस्त हो जाता है, उसकी अवस्था उस नाव की तरह हो जाती है, जो अधिक भार हो जाने पर पानी में डूब जाती है। मैं आपके समक्ष दोनों हाथ जोड़ कर आपसे अन्यंत प्यार व स्नेह से प्रार्थना करता हूँ कि आप पुरुशोत्व के द्योतक हो, आप को अपने मन में शोक की एक भी लहर को भीतर नहीं आने देना है। ऐसे लोग जो शोक को अपने उपर आने देते हैं, उन के अंदर खुशी कभी भी नहीं आती। इसलिए आपको शोक नहीं करना चाहिए। ऐसा शख्स जो शोक में डूबा रहता है, उसके प्राणों को गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है। इसलिए हे राजायों के राजा, आप शोक को तुरंत त्याग दें और शांत चित्त में रहें।

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सुग्रीव का वाली प्रति प्रेम जब वाली का श्रीराम के हाथों वध हो गया, तो सुग्रीव अत्यंत शोकग्रस्त हो गया और स्वंय को कोसना शुरू कर दिया। ऐसे में एक भाई के प्रति उसकी भावनाएं दिल से उभर कर बाहर आयी, जिसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह से दर्शाया गया है।( किशिकंधा काण्ड सर्ग २४, शलोक ९,१०,११. सुग्रीव कह रहे हैं कि हे शूरवीर श्रीराम, एक भाई प्रभुसत्ता को केन्द्रित कर (जिसे उसने अपने भाई का वध कर हासिल की हो) और शोकग्रस्त हो कर ( उसकी मृत्य होने पर) अपनी लालसा को आगे कर के, कैसे प्रसन्न रह सकता है जिसने अपने उस भाई का नाश कर दिया हो, जो कि असीम शक्तियों का स्वामी था? मेरा अपने ही भाई का सर्वनाश कर देना, मैंने कभी ऐसा विचार अपने मन में लाया ही नहीं था। अपने भाई की महानता को भुलाते हुए, अपनी अक्ल पर मिट्टी डाल कर, मैंने ऐसा अपराध कर दिया जो कि मेरे लिए घातक है। एक वृक्ष की टहनी से मुझे ज़ख़्मी कर देने के उपरान्त और मुझे डांटने के बाद उसने मुझे ऐसा कह कर दिलासा दिया था कि “ मुझे ऐसी गलती दोहरानी नहीं चाहिए” 

सुग्रीव का श्रीराम को मित्रता भरा परामर्श 

हनुमान जब लंका से वापिस आ गए तो एक बार फिर से श्रीराम शोकग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे में सुग्रीव उनके पास आ कर, बहुत ही स्नेह के साथ एक सच्चे दोस्त की भान्ति उन को परामर्श देते हैं, जिसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह दर्शाया गया है (युद्ध काण्ड सर्ग २, शलोक २,३,४,६,८,९,१४,१५)

हे वीर, आप एक साधारण मानव की भान्ति शोकग्रस्त क्यों होते हो? आप को ऐसा नहीं करना चाहिए। आप इस शोक के बोझ को अपने उपर से तुरंत उतार कर इस तरह से फ़ेंक दीजिये, जिस तरह एक क्र्त्घन मानव सभी अच्छाईयों को हवायों के हवाले कर देता है। सबसे बड़ी बात यह है कि मैं आप की निराशा का कोई भी कारण उचित नहीं समझता हूँ, हे रघु के वंशज। सीता की सूचना प्राप्त हो चुकी है और शत्रु के ठिकाने के बारे में भी पता चल चुका है। हे रघु के वंशज, आप कोई भी कदम पूर्ण सोच- विचार कर ही उठाते हो, आप ज्ञान से भरपूर हो और अत्यंत बुद्धिमान और सुलझे हुए हो। इस लिए, आप ने अपने मन को काबू किया हुआ है,आप इस साधारण सूझ-बूझ को त्याग करें जो आप को अपने लक्ष्य से हटा रही है। ऐसा मानव जिसमें जोश की कमी हो,जो दुखी रहता हो और जिसका मन शोक ग्रस्त होने कारण चकरा गया हो, वो कुछ भी हासिल नहीं कर सकता और उसे निराशा व हार मिलती है। आप को परिस्थितियों को इस प्रकार से घुमाना चाहिए कि मैं रावण व उसके पापों का अंत कर, सीता को वापिस ला सकूँ। इसलिए हे रघु वंशज, आप इस समय ऐसे पग उठायें जिनसे हमारी बाधा बने हुए इस समुन्दर पर एक सेतु बनाया जा सके और हम असुरों के राज्य में घुस सकें। एक मानव को हमेशा बहादुरी का मार्ग ही अपनाना चाहिए क्योंकि यही एक ऐसा रास्ता है जिस पर चल कर कामयाबी हासिल हो सकती है। साहस का परिचय देते हुए, हे बुद्धिमान व चतुर राजर्षि, इस समय जब कि आप बहादुरी से भरपूर हो, किसी खोयी हुयी वस्तु का शोक मनाना आप जैसे बहादुर व शूरवीरता से भरपूर मानव के लिए ठीक नहीं है।

Deepika Sharma

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