
शहरों की तर्ज पर अब गांव के लोग भी मोबाइल गेम की लत की चपेट आ गए है। यही नही कोविड काल में बच्चों को लगातार फोन पर रहना उन्हें कई मानसिक रोग दे रहा है।
प्रदेश के दोनों बड़े मेडिकल कालेज आईजीएमसी और टीएमसी की मनोविज्ञान मेडिसिन और न्यूरोसर्जरी की ओपीडी के आंकड़ों ने यह चौकाने वाला खुलासा किया है। इसमें हर वर्ष 200 ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जो गेम्स एडिक्शन की गिरफ्त में हैं। वही उसने बच्चों के द्वारा ऑनलाइन क्लासेज लगाने के मामले सामने आ रहे हैं
इनमें चार से पांच वर्ष के बच्चे भी शामिल हैं। सबसे पहले मेडिसिन ओपीडी में बच्चों को इलाज के लिए लाया जा रहा है, जिसमें अभिभावकों की यह शिकायत है कि उनके बच्चे को नींद बेहद हो कम आ रही है। वहीं चिड़चिड़ा भी हो गया है। अभिभावकों ने यह भी कहा है कि उनका बच्चा भोजन भी कम ही खा रहा है। मनोविभाग में आने वाले प्रभावितों को सबसे कम तीन वर्ष और सबसे ज्यादा 20 वर्ष तक की उम्र देखी जा रही है। हालांकि इनके केस को साइकोलॉजिस्ट के हवाले किया जा रहा है, जिसमें बच्चों को मोबाइल नहीं देने की खासदतें जारी की जा रही हैं। यह आकडें भी सामने आ रहे हैं कि शहर के बच्चे ही नहीं, बल्कि गावों से भी ऐसे केस सामने आ रहे हैं। शिमला, कांगडा, सोलन, बिलासपुर, ऊना से ऐसे मामले आईजीएमसी और टीएमसी में सबसे ज्यादा देखने में आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि यदि समय रहते विशेषता गेम्स खेलने को लेकर अभिभावक गंभीर हुए तो यह प्रदेश के स्वास्थ्य को लेकर एक बड़ा खतरा हो सकता है।
● युवाओं की हालत तो और भी बदतर..
आंकड़ों पर गौर करें तो युवाओं को भी मोबाइल एडिक्शन की गिरफ्त में देखा जा रहा है। दोनों मेडिकल कालेज में हर वर्ष 120 ऐसे मरीज आ रहे हैं, जिनकी उम्र 20 से 30 वर्ष की है। डाक्टरों का कहना है कि आजकल फोन पर मूवी देखना प्रचलित हो रहा है। इसमें देर रात तक क्लीयर नेट लाइन से जुड़ने के लिए युवा घंटों फोन देख रहे होते हैं और उनकी नींद पूरी नहीं हो पा रही है। इसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।


