सम्पादकीय
असर संपादकीय: तब इलेक्शन नहीं थेे…

तब इलेक्शन नहीं थे
सत्ता स्थिर थी
दंभ चर्म पर था
बुद्धि पराजित थी
विवेक शून्य था
प्रशासक उदंड था
वज़ीर चुप थे
चाटुकार प्रबल थे
मीडिया संतुष्ट था
विपक्ष परास्त था
विचारधारा तुच्छ थी
उद्देश्य दूषित था
विचार क्षीण थे
संवेदनशीलता मूर्छित थी
तब इलेक्शन नहीं थे