सम्पादकीय

असर सम्पादकीय : ट्रान्सफर प्रमोशन और पेंशन

आत्मनिर्भर कर्मचारी

आज दफ्तर में कुछ ख़ास चहल पहल थी, बधाइयों का सिलसिला थमता नही था, चपरासी अपनी पूरी इमानदारी से मिठाई का डब्बा ले सबकी मेजों पर टहल रहा था, शायद ही ऐसी उर्जा कभी सरकारी फाइल्स की गति में देखने को मिलती हो ! थोड़ी देर में पुरे दफ्तर में खबर फ़ैल चुकी थी के हेड क्लर्क दीदी अब अधीक्षक के पद पर प्रमोट हो गयी हैं, और इसी ख़ुशी के अवसर पर मिठाई बट रही है ! हेड क्लर्क दीदी की तनख्वाह अब साठ पैंसठ हज़ार से सीधे पिचहत्तर हज़ार होने वाली थी ! दीदी राजधानी के एक बड़े विभाग की नजदीकी उपनगर शाखा में पिछले कई वर्षों से कार्यरत थी जो के मुख्य शाखा से मात्र दस किलोमीटर की दुरी पर था ! मौका ख़ुशी का था पर न जाने क्यूँ दीदी उदास थीं, उलझन ये थी के इस छोटी शाखा में अधीक्षक की पोस्ट नही थी और सरकारी आदेशों के अनुसार अब उन्हें मेन ब्रांच जाना होगा ! दीदी का घर अभी उनके दफ्तर से कुछ ही दुरी पर था, बच्चे बड़े हो गये थे एक बड़े शहर में ख़रीदे फ्लैट में रहते थे, तो कोई ख़ास ज़िम्मेदारी भी नही थी ! सुबह शाम आराम से दीदी टहलते हुए दुकानदारों से राम सलाम करती घर पहुँच जाती थी और ऐसे में अब पंद्रह मिनट का सफ़र उन्हें एवेरेस्ट चढ़ने जैसा प्रतीत हो रहा था ! आखिरकार दीदी के पति जो के एक ए क्लास ठेकेदार थे और मंत्रियों संतरियों में उनकी काफी पैंठ थी, उन्होंने सरकारी नोट लगवा कर पुराने दफ्तर में ही पोस्ट क्रिएट करवा दी ! अक्सर सरकारी ठेके पाने के सिलसिले में उनका सचिवालय आना जाना रहता था और मिनिस्टर्स के साथ उठाना बैठना होता था ! दीदी की मुश्किल हल होती नज़र आ ही रही थी के अचानक किसी ने शिकायत कर दी, प्रमोशन के बाद अब मनमर्जी की पोस्टिंग वो भी पद न होने पर सहकर्मियों को शायद यह बात हज़म न हुई और सरकार को न्यायालय के डर से निर्णय वापिस लेना पड़ा और दीदी को घर से कुछ ही दुरी तय कर मेन ब्रांच तक जाने का कष्ट उठाना पड़ा ! सरकारी नौकरी में ट्रान्सफर किसी बुरे सपने से कम नही खासकर जब मनपसंद जगह पोस्टिंग हो और हर सुख सुविधा आपके द्वार पर हो ! समय के साथ साथ अब ट्रान्सफर का स्वरुप भी बदलने लगा ! अब किसी सामान्य व्यक्ति को छोड़ शायद ही किसी को ट्रान्सफर रुकवाने या करवाने में कोई मुश्किल पड़ती ! म्यूच्यूअल, मेडिकल, कपल केस और पहुंच, ऐसे कई रास्ते थे जिनसे एक ही जगह बने रहना बड़ा आसान था बस एक ही कंडीशन थी के सरकार के खिलाफ कोई प्रदर्शन न हो ! तीन वर्ष कार्यकाल या अन्य किसी निति का कोई मूल्य नही ! मज़े की बात के बड़े से बड़ा मंत्री हो या विधायक अपने हलके में छोटी से छोटी ट्रान्सफर में भी विशेष रूचि रखता, उसके नोट के बगैर यह सब असंभव, और वह भी पूरी इमानदारी से ट्रान्सफर में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करता, ऐसा प्रतीत होता मानो इसीलिए चुना गया हो, विभागीय अधिकारीयों और सचिवों के पास कोई पॉवर नही सिवाय आदेशों पर अमल करने के ! अभी इस गंभीर विषय पर कुछ हद तक कर्मचारी और व्यवस्था राष्ट्र प्रगति को ताक पर रख काबू पाने में समर्थ हुए ही थे के एक और नयी पेंशन रूपी समस्या कर्मचारियों को सताने लगी ! सेवानिवृति पश्चात् कुछ एक नियमित वार्षिक लाभों को छोड़ पैसा इसमें भी खूब था परन्तु जहाँ जीवन का कोई भरोसा नही वहां पुरानी पेंशन कर्मचारी के लिए पुन्र्चेतन के समान है, ऐसा कर्मचारियों का मत था ! सरकारी क्षेत्र में कर्मचारी मंचों और संघों के गठन के लिए इतनी सी वजह काफी होती है और जो सरकारी कर्मचारी सरकारी नौकरी पा कर स्वयम को सुरक्षित महसूस करता है भयभीत हो सहकर्मियों के साथ इकठा हो फिर से संघर्ष की राह पर चल पड़ता है ! शायद यही वह भय होता है जो सरकारी कर्मचारी को पूरी उर्जा के साथ कार्य करने में बाधक सिद्ध होता है और सरकारी महकमों में कार्यशैली निरंतर गिरती चली जाती है और तनख्वाह उसी रफ़्तार से बढ़ती ! इसी कड़ी में अब पुरानी पेंशन पाने के लिए संघर्ष तो बनता था ! आम जनता को दिखाने का समय आ गया था के कर्मचारी की पुरानी पेंशन कितनी ज़रूरी थी सो राजधानी में विधानसभा के घेराव की तिथि निर्धारित हुई ! आन्दोलन उग्र हुआ और जनजीवन अस्तव्यस्त, सरकार असमंजस में थी के जिस विपक्ष ने सत्ता में रहते हुए इसे लागू किया आज वही इसकी निंदा कर रही है और खुद को करमचारियों का हितेषी बता रही है ! बहरहाल सरकार और सूबे के मुखिया ने विवेक से काम लेते हुए समस्या का हल खोजने का प्रयास किया ! सरकार ने नौजवान नवनियुक्त सचिव जिसकी अभी पहली नियुक्ति थी, श्री आत्मनिर्भर को हल खोजने का ज़िम्मा सौंप दिया ! आत्मनिर्भर भी अपनी सम्पूर्ण उर्जा शक्ति से समाधान ढूँढने लगा ! दो दिनों के अथक प्रयासों के बाद आत्मनिर्भर ने सरकार के मुखिया के समक्ष स्थिति स्पष्ट कर दी, आत्मनिर्भर के अनुसार पुरानी पेंशन आवश्यक थी और उसने इसका समर्थन किया और साथ ही साथ कुछ नैतिक सुझाव सलंग्न किये ! मुख्य सचिव आत्मनिर्भर की नयी निति के अनुसार पुरानी पेंशन के साथ साथ, पूरी पारदर्शिता से नियुक्तियां योग्यता अनुसार, तीन वर्ष का कार्यकाल विभाग के विस्तार के अनुरूप कहीं भी प्रत्येक कर्मचारी के लिए अनिवार्य, मनमर्जी के स्थानों पर डटें रहने वाले कर्मचारियों द्वारा दिए गये स्पष्टीकरणों और दस्तावेजों की जांच के लिए एक स्वतंत्र बोर्ड का गठन, देश की तरक्की में सहायक हर विभाग तथा कर्मचारी की सालाना परफॉरमेंस रिपोर्ट के आधार पर वेतन वृद्धि, ऐसे अनेकों प्रगतिशील नीतियों के साथ सचिव आत्मनिर्भर का मत था के विभाग अपने अपने कार्यक्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करंगे जनता को लाभ होगा शिक्षा स्वास्थ्य के साथ साथ हर राज्य स्तरीय सेवाओं के क्षेत्र में बेहतर कार्य होगा और देश विकास करेगा राजकोषीय घाटा घटेगा और सामाजिक सुरक्षा के स्थापित होने पर केवल सरकारी कर्मचारी को ही नहीं बल्कि हर नागरिक भविष्य को लेकर निश्चिंत होगा, और पुरानी पेंशन हो या किसी भी क्षेत्र में नौकरी कोई बड़ी समस्या नहीं रह जाएगी ! सुझाव नए थे पर कारगर थे, कैबिनेट में सुझावों पर बैठक बुलाई गयी सभी मंत्री अपने अपने पूर्वानुमान गिनाने लगे, अगर ऐसी कोई निष्पक्ष निति तैयार हो गयी तो मंत्रिमंडल का क्या अस्तित्व रह जायेगा, चाटुकार वर्ग का क्या होगा, किसी को वोट बैंक की चिंता तो किसी को मान सम्मान लुटने की चिंता सताने लगी ! एक वृस्त्रित चर्चा के बाद एकमत से निर्णय लिया गया के ऐसे किसी भी बदलाव की कोई आवश्यकता नहीं व्यवस्था को सत्ता और सत्त्धारियों के अनुरूप ही चलना होगा व्यवस्था स्वावलंबी नही बन सकती, और प्रणाली पारदर्शी नही हो सकती यह लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध हो सकती है ! अंतत अन्दोलाकारियों के मुखियाओं के ट्रान्सफर के आदेश दिए गये और विभाग को इन मुखियाओं के खिलाफ FIR के निर्देश दिए गये, बदलाव की उम्मीद लगाए सचिव आत्मनिर्भर को एक बार फिर बिना किसी आशा के घर लौटना पड़ा !
हेमंत शर्मा

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Deepika Sharma

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