

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी …
हनुमान जी के बारे में हमारी जानकारी का स्तर अत्यंत सिकुड़ा हुया है।हनुमान को हम एक अत्यंत शक्तिशाली, वीर और महाबली के रूप में ही जानते हैं|
वीर बजरंगबली हनुमान श्रीराम के परम भक्त थे, यह भी हमें भली भाँती ज्ञात है. एक तरह से रामायण हनुमान जी के बिना अधूरी भी कही जा सकती है। लेकिन हमें हनुमान जी के व्यक्तित्व की उन विशेषताओं के बारे में ज्ञान बहुत कम है, जिस के बारे में वाल्मीकि रामायण में वर्णन किया गया है।
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उनके जीवन के बारे और उनमें विराजमान अनेकों खूबियों के बारे हमारी जानकारी अत्यंत कम है जो एक असाधारण व विलक्षण प्रतिभा वालों में ही हो सकती हैं।

वाल्मीकि रामायण में ऐसे अनेकों प्रसंग आते हैं जब हमें हनुमान जी के विलक्षण चरित्र के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।जब श्रीराम की भेंट सर्वप्रथम हनुमान जी से हुई तो उन्होंने उनकॊ देखते ही व उनसे बात करते ही पहचान लिया कि हनुमान में ऐसी विशेषताएं विद्यमान हैं जो कि किसी अन्य में नहीं हो सकती|
हालांकि हनुमान भेष बदल कर श्रीराम को मिलने जाते हैं लेकिन श्रीराम उनको पहचान लेते है|
वाल्मीकि रामायण में किष्किन्धाकाण्ड के सर्ग ३, शलोक २६,२७,२८,२९,३०,३१,३२,३३,३४,३५, में इन का उल्लेख किया गया है।

महाज्ञानी हनुमान
श्री राम लक्ष्मण को बताते हैं कि ये जो यहाँ सुग्री।व के दूत के रूप में मुझसे मिलने के लिए आया है वह सभी वानरों का नेता है.और अत्यंत ही मधुर व मीठे शब्दों में बात कर रहा है।

लक्ष्मण, उसे इस बात का अच्छा ज्ञान है कि कब और कैसे बात करनी चाहिये और साथ ही अपने दुश्मनों पर कैसे जीत हासिल करनी चाहिये।। इस प्रकार बातचीत करते समय उसने जो कुछ भी कहा वैसा किसी के लिए संभव नहीं है जिसने कि ऋग्वेद को समझने हेतु उसका पूर्णतया अध्ययन न किया हो, जिस ने यजुर्वेद को कंठस्थ न किया हो और जिसे सामवेद का ज्ञान न हो।

इसमें कोई शक नहीं है कि इन्होने कई तरीकों से संस्कृत भाषा का अच्छी तरह से अध्ययन भी किया हुआ है, क्योंकि बातचीत की शैली से पता चलता है कि उनके मुख से कुछ भी गलत उच्चारण नहीं आया जबकि उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ था भी और कहा भी। उसके चेहरे के भावों से किसी तरह का भी कोई दोष नहीं पाया गया और न ही उसकी आँखों से ऐसा कुछ भी पड़ पाया, न ही उस के माथे की लकीरों से न ही उसकी भावों से और न ही शरीर के किसी भी ऐसे अंग से. उसके ह्रदय से निकल रही वाणी और गले से आ रहा उच्चारण हर प्रकार के दोष से मुक्त था|
उसकी भाषा व आवाज़ में किसी तरह का बनावटीपन नहीं देखा और न ही कानों से ऐसा आभास हुआ कि वह कुछ गलत कह रहा हो।वह स्पष्ट, साफ़ और प्रभावित करने वाले वचन बोलता है, जिसकी व्याकरण शुद्ध व सुन्दर होने के साथ-साथ सुनने में भी मधुर है|
ऐसी शानदार वाणी सुनने के बाद ऐसा कौन होगा जो मंत्रमुग्ध न हो जाए, ऐसी बातें जो कि ह्रदय, गले व दिमाग से निकल रहीं हों? दूसरों की तो मैं क्या ही बात करूं, ऐसा दुश्मन जिसके हाथ में तलवार हो, वो भी उसके साथ मित्रता करने के लिए आतुर हो जाएगा। ऐसे दूत की याचना सुन लेने के उपरान्त एक शासक का कैसा भी उदेश्य हो, कैसे पूर्ण नहीं हो सकता जिसके पास ऐसी अनेकों विशेषताओं वाला सेवक हो|
दूरदर्शी हनुमान
अशोक वाटिका में एक ऐसा समय भी आता है जब हनुमान प्रस्थान के लिए तैयार हैं। तभी उनके मन में ऐसा विचार आता है कि जाने से पहले उन्हें शत्रु की ताकत का अच्छी तरह से आकलन कर लेना चाहिए। ऐसा वो स्वंय से विचार कर रहे है जिसके बारे में वाल्मीकि रामायण में इस तरह से बताया गया है,(सुन्दरकाण्ड सर्ग ५१,शलोक २,३,४,५,६,७,८,९). हनुमान जी मन में स्वंय से कह रहे है कि इस सुन्दर आँखों वाली स्त्री ( सीता) को तो मैंने देख लिया है और मेरा यहाँ आने का असली कारण भी यही था|
लेकिन मेरे यहाँ आने का एक और भी मकसद है, जिसे पूरा करना भी आवश्यक है|
विजय प्राप्ति के तीन तरीकों (बातचीत, इनाम या भेंट देना और दुश्मन के खेमे में शक के बीज बो देना) के इलावा एक चौथा (दंड देना) भी होता है, जिसकी इस समय अति आवश्यकता है।असुरों के साथ बातचीत करने से कुछ हासिल नहीं होता, उन्हें भेंट देने से भी कुछ नहीं होता क्योंकि उनके पास पहले ही अपार दौलत होती है|।
जो सत्ता के मद में चूर हो चुके हों, उनमें शक के बीज बो कर भी उन पर काबू नहीं पाया जा सकता. इसलिए शक्ति प्रदर्शन करना उचित भी है और समय की मांग भी।
इन परिस्थितियों में ताकत का परिचय दिए बगैर और कोई भी ऐसा मार्ग दिखाई नहीं दे रहा जिससे कि मैं (असुरों की शक्ति का अनुमान लगा सकूं) अपना कार्य पूर्ण कर सकूं, क्योंकि असुर युद्ध जैसी परिस्थिती उत्पन्न होने पर ऐसा व्यवहार भी कर सकते हैं अगर उनके हीरो उस क्षण में मारे जाएँ. अपना लक्ष्य वही पूरा कर सकता है जो असली कार्य संपन्न होने के साथ-साथ और भी छोटे- मोटे कार्य समाप्त कर ले, बिना अपनी पहली सफलता को नुक्सान पहुंचाए। इसमें कोई शक नहीं है कि अपना कार्य पूर्ण कर लेने के कोई अलग से तरीके नहीं हो सकते, चाहे कार्य कितना भी हल्का क्यों न हो। बल्कि, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने वाला वही हो सकता है जिसको अपने कार्य को कर लेने के अनेकों तरीके आते हों|
अगर मैं सुग्रीव के राज्य में आज वापिस चला जाता हूँ इस सच्चाई को जान लेने के पश्चात कि शत्रु व हमारे मध्य युद्ध होने पर कौन किस पर हावी हो सकता है और भविष्य में कैसी रणनीति बनानी है, इस बात का भी पूरा ज्ञान हो जाए तभी मैं अपने स्वामी के दिए हुए आदेश की पालना कर सकूंगा|

मेरी यहाँ तक की यात्रा किस प्रकार से सफल हो सकती है? मेरा असुरों के साथ द्वन्द कब और कैसे हो सकता है? और, इसी तरह से दस सिरों वाला राक्षस (रावण) मेरी और अपनी प्रशंसा किस तरह से करेगा जब हमारे बीच द्वन्द हो रहा होगा? इस तरह, रावण(दस सिरों वाला राक्षस) , उसके मंत्रीगण, सैनिक अन्य योधागणों से मिल कर, उनकी पूरी योजना को मन में रख कर, उनकी ताकत का पूर्णतया आकलन कर के, मैं अपने स्थान को लौट चलूँगा।




