
प्रदेश में इससे बड़ी हैरानी की बात और क्या हो सकती है कि दवा गुणवत्ता पर नजर रखने वाले प्रमुख अधिकारी को ही संबंधित विभाग द्वारा नजर अंदाज किया जा रहा है। हैरानी है यह है कि प्रदेश सरकार द्वारा चयनित आठ दवा निरीक्षकों को विभिन्न जिला में नियुक्ति दी गई है लेकिन कई जगह हाल तो ऐसे हैं कि ना तो ड्रग इंस्पेक्टर को उचित कमरे में बैठने की व्यवस्था है और कई जगह तो डीटीपी का काम भी स्वयं ड्रग इंस्पेक्टर कर रहे हैं। यही नहीं बल्कि दवा सैंपल को लेने के लिए भी इसी तरह के वाहन की व्यवस्था संबंधित प्रशासन द्वारा नहीं की जा रही है
वहीं गौर करने वाली बात तो यह है कि संबंधित ड्रग इंस्पेक्टर्स को बिन ट्रेनिंग की ही नियुक्ति दे दी गई है। अब यह परेशानी काफी ज्यादा खड़ी हो गई है कि कार्यक्षेत्र संबंधित कई अहम चीजें ड्रग इंस्पेक्टर्स को मालूम ही नहीं हो रही कि किस तरीके से उक्त क्षेत्रों में कार्य को कार्यान्वित किया जाना है। गौर हो कि दवा निरीक्षक का काम काफी अहम होता है जनता के स्वास्थ्य से संबंधित भी इनकी जिम्मेदारी बहुत ज्यादा होती है। दवा निरीक्षक को दवा का निरीक्षक ही नहीं बल्कि उन तमाम दवा बेचने वाले निजी और सरकारी क्षेत्र के अस्पतालों पर भी नजर रखनी पड़ती है जो मरीजों को दवाएं दे रहे हैं। उन दवाओं पर समय दर समय में छापेमारी भी करनी पड़ती है और सैंपल उठाकर उसे कंडाघाट लैब तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी देखनी पड़ती है लेकिन यदि संबंधित दवा निरीक्षकों को एक तय समय अवधि में ही ट्रेनिंग नहीं दी जाएगी तो यह कार्य किस तरीके से होगा इस पर सवाल उठते नज़र आ रहे हैं।
ये हालत है राजधानी शिमला की
शिमला की ही बात की जाए तो यहां पर बहुत ही छोटा कमरा दिया गया है यहां पर पहले भी दो दवा निरीक्षक कार्य कर रहे हैं लेकिन कमरा इतना संकरा है कि वहां पर दवाओं के सैंपल और फाइल्स इस कदर इकट्ठी हुई है कि लगता ही नहीं कि जिला दवा निरीक्षक और साथ में नवनियुक्त हुए दवा निरीक्षक का यह कमरा हो। जिससे कार्य के क्रियान्वयन में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।



