स्वास्थ्य

चमयाना सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स को बाहर करने के आदेश पर विवाद — HPMRA बोला, “वैज्ञानिक संवाद रोकना कानून के खिलाफ”

“सरकार का उद्देश्य अनुशासन बनाए रखना है, लेकिन वैज्ञानिक संवाद को रोकना समाधान नहीं

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शिमला असर मीडिया हाउस रिपोर्ट

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हिमाचल सरकार के हालिया निर्देश ने दवा उद्योग और स्वास्थ्य क्षेत्र में नई बहस छेड़ दी है। प्रदेश सरकार द्वारा चमयाना स्थिति सुपर स्पेशलिटी अस्पताल को जारी आदेश के अनुसार,

अब फार्मा कंपनियों के मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स (MRs) को चम्याना सुपर स्पेशलिट  अस्पताल में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है

सरकार का कहना है कि यह कदम अस्पतालों में अनुशासन और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए उठाया गया है।
लेकिन दवा प्रतिनिधियों के संगठन फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन्स ऑफ इंडिया (FMRAI)
ने इस निर्णय को “अवैधानिक, अनुचित और डॉक्टरों के हितों के ख़िलाफ़” बताया है।


⚖️ FMRAI का कड़ा विरोध

FMRAI के महासचिव संतनु चटर्जी ने स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजे पत्र में कहा —

“मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स दशकों से डॉक्टरों तक नई दवाओं की वैज्ञानिक जानकारी पहुँचाते आए हैं।
उन्हें रोकना न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि यह श्रमिक अधिकारों और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर भी हमला है।”

संघ का तर्क है कि मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स को
Sales Promotion Employees (Conditions of Service) Act, 1976 के तहत
वैधानिक दर्जा प्राप्त है।
इसलिए उनके कार्यक्षेत्र में प्रवेश रोकना “क़ानून को दरकिनार करने” जैसा कदम है।


📜 वैज्ञानिक संवाद क्यों आवश्यक है

भारत में करीब 12 लाख मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स सक्रिय हैं,
जिनका मुख्य कार्य डॉक्टरों को नई दवाओं, खुराक, दुष्प्रभाव और शोध परिणामों की जानकारी देना होता है।
यह कार्य केवल बिक्री नहीं, बल्कि फार्मा एजुकेशन कम्युनिकेशन का हिस्सा है।

विशेषज्ञों का कहना है —

“यदि डॉक्टरों तक नई दवाओं की अद्यतन वैज्ञानिक जानकारी समय पर न पहुँचे,
तो मरीजों के उपचार की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है।”


🧪 कानूनी और नैतिक आधार

Drugs and Cosmetics Act, 1940 और
Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act, 1954
भ्रामक प्रचार पर रोक लगाते हैं,
लेकिन वैज्ञानिक जानकारी साझा करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

वहीं WHO Ethical Criteria for Medicinal Drug Promotion (1988) में कहा गया है —

“दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है कि वे चिकित्सकों को
सही, वैज्ञानिक और तथ्यपरक जानकारी प्रदान करें।”

इस दृष्टि से, यदि मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव नैतिक और पारदर्शी रूप में जानकारी साझा करते हैं,
तो यह सार्वजनिक स्वास्थ्य संवाद (Public Health Communication) का हिस्सा है।

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🏛️ सरकारी अस्पतालों की चिंताएँ भी वाजिब हैं

कई सरकारी मेडिकल कॉलेजों में यह देखा गया कि
कुछ कंपनियों के प्रतिनिधि प्रचारात्मक लाभ के लिए डॉक्टरों से संपर्क करते हैं।
इसी कारण कई प्रशासनिक इकाइयों ने पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया।

लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्ण रोक समाधान नहीं,
बल्कि नियंत्रित और पारदर्शी प्रवेश प्रणाली अधिक व्यावहारिक विकल्प हो सकता है।


💡 संभावित समाधान

  • Designated Visiting Hours:
    मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स के लिए अस्पतालों में निश्चित समय और स्थान तय किया जाए।

  • Permission System:
    केवल पंजीकृत और स्वीकृत प्रतिनिधियों को प्रवेश की अनुमति दी जाए।

  • No Gift Policy:
    कंपनियाँ लिखित रूप में दें कि कोई उपहार या आर्थिक लाभ नहीं दिया जाएगा।

  • Pharmacology Monitoring:
    प्रत्येक मुलाक़ात अस्पताल की फ़ार्माकोलॉजी यूनिट या डीन की अनुमति से हो।


⚠️ FMRAI की चेतावनी

FMRAI ने कहा है कि यदि सरकार ने यह आदेश वापस नहीं लिया,
तो इससे हज़ारों मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स की रोज़ी-रोटी पर संकट आ जाएगा।
संघ ने इसे औद्योगिक विवाद की शुरुआत बताया और चेताया कि
यह निर्णय फार्मा सेक्टर में असंतोष फैला सकता है।


🧭 नीति बनाम व्यवहार: संतुलन की ज़रूरत

सरकार का तर्क:

  • अस्पतालों में प्रमोशनल गतिविधियों पर नियंत्रण

  • अनुशासन और पारदर्शिता सुनिश्चित करना

FMRAI का पक्ष:

  • वैज्ञानिक संवाद को रोकना मरीजों के हित में नहीं

  • ईमेल प्रमोशन व्यवहारिक नहीं

  • रोजगार और दवा अद्यतनता दोनों पर असर


🧩 असर व्यू (संपादकीय टिप्पणी):

“सरकार का उद्देश्य अनुशासन बनाए रखना है, लेकिन वैज्ञानिक संवाद को रोकना समाधान नहीं।
पारदर्शी और नियंत्रित नीति से न केवल मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है,
बल्कि डॉक्टरों तक सही और अद्यतन जानकारी भी पहुँचती रहेगी।
दवा प्रतिनिधि विक्रेता नहीं, बल्कि चिकित्सा जगत के सूचना वाहक हैं।”


📍निष्कर्ष:
सरकार और उद्योग दोनों को मिलकर एक एथिकल कोलैबोरेशन मॉडल बनाना चाहिए —
जहाँ वैज्ञानिक जानकारी निर्बाध रूप से डॉक्टरों तक पहुँचे,
और प्रचार के नाम पर किसी प्रकार का व्यावसायिक हस्तक्षेप न हो।


Deepika Sharma

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