बदलते जलवायु में बागवानी की नई दिशा — हिमाचल में मधुमक्खी पालन बना टिकाऊ खेती का आधार”
पर्यावरण संरक्षण और किसानों की आय बढ़ाने का माध्यम बना मधुमक्खी पालन — बागवानी विभाग हिमाचल”

बदलते जलवायु परिवेश में बागवानी व पर्यावरण संरक्षण के लिए मधुमक्खी पालन एक महत्वपूर्ण कदम — बागवानी विभाग, हिमाचल प्रदेश
बागवानी विभाग, हिमाचल प्रदेश द्वारा बदलते जलवायु परिवेश में बागवानी को टिकाऊ बनाने, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने तथा किसानों की आय में वृद्धि के उद्देश्य से सात दिवसीय वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण शिविर का सफल आयोजन किया गया। यह शिविर राष्ट्रीय मादवी परिषद (National Bee Board) द्वारा राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन (National Beekeeping and Honey Mission) योजना के अंतर्गत बागवानी विभाग, हिमाचल प्रदेश को प्रायोजित किया गया था। यह प्रशिक्षण सप्तरिशि एफपीओ, ठियोग के सदस्यों के लिए 27 अक्टूबर से 2 नवम्बर 2025 तक आयोजित हुआ, जिसमें एफपीओ के किसान सदस्यों ने अत्यंत उत्साह और समर्पण के साथ भाग लिया।
शिविर का संचालन विभाग के अनुभवी विशेषज्ञ अधिकारियों द्वारा किया गया, जिन्होंने मधुमक्खी पालन के तकनीकी और व्यावहारिक पहलुओं पर विस्तृत जानकारी दी। डॉ. दलीप सिंह नरगेटा, विषय विशेषज्ञ (मधुमक्खी पालन), पूर्वी क्षेत्र, ने मधुमक्खी पालन के मूल सिद्धांतों, छत्ते के प्रबंधन, मधुमक्खियों की नस्लों एवं व्यवहार पर वैज्ञानिक जानकारी दी। वहीं, डॉ. ज्ञान वर्मा, सेवानिवृत्त उपनिदेशक (उद्यान विभाग), ने मौसमी प्रबंधन, रोग नियंत्रण एवं छत्तों की देखभाल से संबंधित व्यावहारिक उपाय साझा किए। शिविर के प्रायोगिक सत्रों में श्री दमेश कुमार एवं श्री राणा ने प्रतिभागियों को छत्ते की संरचना, रानी, नर और श्रमिक मधुमक्खियों की पहचान, उनके कार्य विभाजन तथा शहद निष्कर्षण की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया।
डॉ. कुशाल सिंह मेहता, विषय विशेषज्ञ (उद्यान विभाग, जिला शिमला), ने मधुमक्खी पालन के आर्थिक एवं व्यवसायिक अवसरों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मधुमक्खी पालन केवल शहद उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे मोम, रॉयल जेली, पराग (Pollen) और प्रोपोलिस (Propolis) जैसे उत्पाद भी प्राप्त होते हैं जिनकी उच्च बाजार मांग है। उन्होंने शहद की ब्रांडिंग, गुणवत्ता परीक्षण (Testing), ट्रेसबिलिटी (Traceability) तथा बाजार में पहचान बनाने की प्रक्रिया पर भी जानकारी दी। डॉ. मेहता ने कहा कि मधुमक्खियाँ प्राकृतिक परागणकर्ता (Pollinators) हैं, जिनकी सक्रियता से बागवानी फसलों की उत्पादकता में 20 से 30 प्रतिशत तक वृद्धि होती है, जिससे किसानों की आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी संभव है।
वहीं, डॉ. जगदीश शर्मा, विषय विशेषज्ञ (उद्यान विभाग, ठियोग), ने विभाग द्वारा संचालित मधुमक्खी पालन योजनाओं और सब्सिडी प्रक्रियाओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा मधुमक्खी बक्सों, उपकरणों, प्रशिक्षण और अन्य आवश्यक सुविधाओं पर आकर्षक अनुदान दिया जाता है, जिससे इच्छुक किसान इस व्यवसाय को अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में डॉ. सतीश शर्मा, अतिरिक्त निदेशक (बागवानी विभाग, हिमाचल प्रदेश), मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने सभी अधिकारियों, प्रशिक्षकों एवं प्रतिभागियों को प्रशिक्षण के सफल आयोजन पर बधाई दी और कहा कि यह पहली बार है जब किसी एफपीओ को विभाग द्वारा मधुमक्खी पालन पर व्यवसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। उन्होंने कहा कि मधुमक्खी पालन आज के समय की आवश्यकता है, जो न केवल शहद उत्पादन का माध्यम है बल्कि बागवानी फसलों के परागण को बढ़ाकर उत्पादन एवं गुणवत्ता सुधारने का वैज्ञानिक तरीका भी है। यदि हर बागवान अपने खेत या बाग में कुछ छत्ते स्थापित करे तो यह उसकी आय बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण और जैव विविधता के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाएगा।
शिविर में डॉ. दुर्गा दत्त शर्मा, सेवानिवृत्त वैज्ञानिक (डॉ. वाई.एस. परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौनी), ने भी प्रेरणादायक भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल एफपीओ के 25 सदस्य किसानों को प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया बल्कि स्वयं भी सभी सत्रों में सक्रिय रूप से सहभागी रहे। उन्होंने कहा कि विभाग द्वारा दी गई जानकारी अत्यंत उपयोगी है और यह प्रयास रहेगा कि हर खेत और हर घर तक मधुमक्खी पालन पहुंचे ताकि यह क्षेत्र “मधु उत्पादन क्षेत्र” के रूप में अपनी पहचान बना सके।
इस अवसर पर विभाग के अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी भी उपस्थित रहे। प्रशिक्षण का समापन धन्यवाद प्रस्ताव के साथ किया गया



