असर विशेष: दसवीं की बोर्ड परीक्षा ख़त्म, शिक्षा बोर्ड ने आज तक भी नहीं भेजा स्कूल खाते में पैसा

हिमाचल प्रदेश मुख्याध्यापक व प्रधानाचार्य संवर्ग जिला मंडी के प्रधान नरेश महाजन ने हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड की कार्यप्रणाली पर संदेह जताया है और कहा कि हर वर्ष हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड वार्षिक परीक्षा में तैनात समन्वयक, उपसमन्वयक, अधीक्षक, उपाधीक्षक,निरीक्षक व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को उनका मेहनताना मार्च के दुसरे सप्ताह तक स्कूल के खाते में डाल देता था लेकिन इस बार बोर्ड ने पुनर्निरीक्षण और पुनर्मूल्यांकन की दरें तो 50% बढ़ा दी
लेकिन मैट्रिक की परीक्षा 24 मार्च को समाप्त होने के बाद आज तक भी पैसा स्कूल खातों में नहीं डाला और परीक्षा में तैनात कर्मचारी बिना अपना मेहनताना लिए समाज सेवा करके अपने-अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गए।
इस बाबत बोर्ड में कार्यरत कर्मचारियों को दूरभाष के माध्यम से भी अवगत करवाया गया लेकिन इस कार्य को यह कह कर टाल दिया कि सचिव महोदय से बात करके आदेशानुसार अमलीजामा पहनाया जायेगा लेकिन आज तक न बोर्ड सचिव न बोर्ड कर्मचारियों ने पैसा स्कूल खाते में डालना उचित समझा। अब परीक्षा में तैनात अधीक्षक को लेखा जोखा संबंधी कार्य को अमलीजामा पहनाने के लिए दोबारा परीक्षा केंद्र पर आना होगा जिससे विद्यार्थियों की पढ़ाई का नुकसान भी होगा तथा अधीक्षक को भी अंतिम पैकेट पूरा करने के लिए कड़ी मशकत करनी पड़ेगी।
संघ के जिला प्रधान ने बताया कि बोर्ड परीक्षा में तैनात कर्मचारियों को उनके मेहनताना देने में देरी कर रहा है लेकिन विद्यार्थियों से परीक्षा सम्बन्धी फीस के लिए पैसा इकठ्ठा करने में अंतिम तिथि निर्धारित कर लेट फीस लेने में भी कोई छूट नहीं देता। बोर्ड के अधिकारी व बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की सदस्य सभी प्रकार की बोर्ड परीक्षा दरों को बढ़ाने में कोई देरी नहीं करते जिससे गरीब बच्चों के ऊपर मार पड़ रही है। बोर्ड की कार्यप्रणाली इस लिए भी संदेह के घेरे में आती है क्योंकि परीक्षा शुरू होने से चार दिन पहले एक कामरेड संघ से बेनतीजा बैठक करके उस संघ के चहेते अध्यापकों को वार्षिक परीक्षा में निरीक्षण विंग में तैनाती देना लेकिन वो संघ अध्यापक हित की बात नहीं करते हैं यह भी एक खेद का विषय है तो इन सब बातों को मद्देनजर रखते हुए संघ के प्रधान ने सचिव से मांग की है कि बोर्ड में तैनात कर्मचारियों को उनका मेहनताना जल्द से जल्द दिया जाए ताकी अध्यापक अपने आप को ठगा सा महसूस न करें।


