सम्पादकीय

असर संपादकीय: सर्वसमावेशी संस्कृति का प्रतीक महाकुंभ

गजेंद्र सिंह शेखावत , Union Minister of Culture and Tourism की कलम से..

सर्वसमावेशी संस्कृति का प्रतीक महाकुंभ

यदि आप भारत के गांव-कस्बों से गुजरें तो ऐसेअसंख्य लोग मिल जाएंगे. जो प्रातः स्नान करते समय ‘गंगेच यमुने चैव गोदावरी सरस्वती । नर्मदे सिंधु कावेरीजलेऽस्मिन् संनिधि कुरु॥‘ का मंत्रोच्चार कर रहे होंगेइसमंत्र का अर्थ है– हे यमुनागोदावरीसरस्वतीनर्मदासिंधुऔर कावेरीहमारे जल में उपस्थित होकर इसे पवित्र करोस्नान केनित्यकर्म में राष्ट्र की सभी पवित्र नदियों का आह्वान यहबताता है कि भारतभूमि के लोगों की नदियों के प्रति कितनीगहरी श्रद्धा है

विश्व की लगभग सभी सभ्यताओं का जन्म नदी तटोंपर हुआ है, लेकिन भारत तो नदी संस्कृति का ही देश हैउत्तर में सिंधु से लेकर दक्षिण में कृष्णा-कावेरी तक औरपूर्व में ब्रहमपुत्र से लेकर पश्चिम में नर्मदा तक भारत की येपुण्य सलिलाएं अनंतकाल से कोटि-कोटि भारतवासियों केजीवन का उद्धार करती रही हैं ये नदियां माँ कीतरह ही हमारा भरण-पोषण करती हैंहम जब भीसमस्याओं में उलझे होते हैं तो इन नदी रूपी माताओंके निकट आकर शांति की तलाश करते हैं और अपनीइहलौकिक यात्रा को समाप्त कर पारलौकिक यात्रा केलिए भी  इन्हीं नदियों की गोद में पहुंचते हैं। इन नदियों काकेवल हमारे धार्मिक-आध्यात्मिक जीवन में विलक्षणमहत्व है, अपितु ये सामाजिकआर्थिकवैज्ञानिक तथाअन्य कई रूप से भी सहायक मानी जाती हैं

यही कारण है कि हमारे धार्मिक ग्रंथों में नदियों कोमाता का दर्जा दिया गया हैऋग्वेद के नदी सूक्त से लेकरआधुनिक साहित्य तकनदियों की महिमा को व्यापक रूपसे दर्शाया गया हैमहाभारतमत्स्य पुराणब्रह्म पुराणऔर कालिदास के ग्रंथों में भी नदियों की पवित्रता कोरेखांकित किया गया है

कुंभ महापर्वनदियों के महात्म्य का ही महापर्व हैजोविविधतता में एकता प्रदर्शित करने में केंद्रीय भूमिकानिभाता है। कुंभ मेला भारत की सांस्कृतिक एवंआध्यात्मिक परंपराओं का सबसे बड़ा पर्व हैयह महापर्वखगोल विज्ञानआध्यात्मिकताकर्मकांड की परंपराओंऔर सामाजिक तथा सांस्कृतिक ज्ञान-विज्ञान कीबहुवर्णीयता से सभी को आकर्षित करता है

अथर्ववेद में उल्लेख मिलता है कि भगवान ब्रह्मा नेहरिद्वारप्रयागराजउज्जैन और नासिक चार कुंभ स्थापितकिएजिससे यह आयोजन पवित्र माना जाता है। स्कंदपुराण में कुंभ योग बताते हुए कहा गया है ‘मेषराशिंगतेजीवे मकरे चन्द्र भास्करीअमावास्या तदा योगःकुम्भाख्यस्तीर्थनायके ।।’ अर्थात ‘जिस समय बृहस्पति मेषराशि पर स्थित हो तथा चंद्रमा और सूर्य मकर राशि पर होंतो उस समय तीर्थराज प्रयाग में कुंभ-योग होता है।’

कुंभ का आयोजन समाजधर्म और संस्कृति केसमन्वय का प्रतीक हैइसमें प्रमुख अखाड़ों केसंतमहात्मा और नागा संन्यासी संसार के संपूर्ण कष्टों केनिवारण हेतु तथा समाजराष्ट्रऔर धर्म आदि केकल्याण के लिए अमूल्य दिव्य उपदेश प्रदान करते हैं।  प्रयाग में कुंभ के तीन प्रमुख स्नान होते हैंमकरसंक्रांतिमौनी अमावस्या और वसंत पंचमी पर। इन तीनोंस्नानों में सर्वप्रथम स्नान निर्वाणी अखाड़े काद्वितीय स्नाननिरंजनी अखाडे का और तृतीय स्नान जूना अखाडे काहोता हैइसके पश्चात् समस्त संप्रदाय के लोगों का होताहै

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कुंभ-पर्व की प्राचीनता के संबंध में तो किसी संदेहकीआवश्यकता ही नहींकिंतु यह बात अवश्य महत्त्वपूर्ण हैकि कुंभ मेले का धार्मिक रूप में श्रीगणेश किसनेकिया ? विद्वानों ने यह सिद्ध किया है कि कुंभ मेले केप्रवर्तक आदि शंकराचार्य हैंउन्होंने कुंभ-पर्व के प्रचार कीव्यवस्था धार्मिक संस्कृति को सुदृढ़ रखने के लिए तथाजगत कल्याण की दृष्टि से की थीउन्हीं के आदर्शानुसारआज भी कुंभपर्व के चारों सुप्रसिद्ध तीर्थों में सभी संप्रदायके साधु-महात्मागण देश-काल-परिस्थिति अनुरूपलोककल्याण की दृष्टि से धर्म-रक्षार्थ धर्म का प्रचार करतेहैंजिससे सर्वजन कल्याण होता है

कुंभ का इतिहास कान्यकुब्ज के शासक सम्राटहर्षवर्धन के साथ भी जुड़ा हैहर्षवर्धन कुंभ के अवसर परप्रयाग में ही रहकर सर्वधर्म सम्मेलन का आयोजन करतेऔर सभी मतावलंबियों के विचार सुनते थेधार्मिकसहिष्णुता के साथ-साथ महाराज हर्षवर्धन इस अवसरपर अपनी दानशीलता का भी परिचय देते थे। चीनी यात्रीह्वेनसांग के यात्रा विवरण के अनुसार कुंभ में वह अपनासर्वस्व मुक्तहस्त से दान कर देते थे। सम्राट् हर्षवर्धन नेअपना समूचा कोष प्रयाग कुंभ के अवसर पर दान करदियाजब दान के लिए कुछ और शेष नहीं रहातब उन्होंनेअपने वस्त्राभूषण तथा मुकुट तक उतार कर दे दिएजबशरीर पर वस्त्र भी नहीं बचे तो उनकी बहन राज्यश्री ने उन्हेंपहनने के लिए वस्त्र दिए। । महाराज हर्षवर्धन के त्यागऔर दान की यह प्रेरक परंपरा कुंभ में अब तक अक्षुण्णचलीरही है

कुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहींबल्कि इसकावैज्ञानिक और ज्योतिषीय पक्ष भी महत्त्वपूर्ण हैजब सूर्यमकर राशि में और गुरु कुंभ राशि में होते हैंतब स्नान करनेसे व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य परसकारात्मक प्रभाव पड़ता हैसंगम के जल में प्राकृतिकखनिज और औषधीय गुण होते हैंजिससे यह स्नान शरीरकी शुद्धि का माध्यम बनता है

करोड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं के आने के बावजूदयहां आधुनिक तकनीक के प्रयोग और कुशल प्रबंधन नेकुंभ मेले को विश्व का सबसे बड़ा और व्यवस्थितआयोजन बना दिया हैस्वच्छतासुरक्षा और सुविधा काऐसा संगम शायद ही कहीं और देखने को मिलेसरकारऔर प्रशासन ने इसे पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिएविशेष प्रयास किए हैंजिससे यह आयोजनकेवलधार्मिकबल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय संदेश भी देताहै

कुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहींबल्किसामाजिक समरसता और वैश्विक भाईचारे का प्रतीक भीहैयह ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को साकार करताहैजहाँ जातिधर्म और वर्ग से परे सभी श्रद्धालु एक समानहोते हैंयह पर्व हमें आत्मशुद्धिपरोपकार और सामाजिकसद्भाव का संदेश देता हैकुंभ के माध्यम से भारतीयसंस्कृति और जीवन-दर्शन को वैश्विक स्तर पर पहचानमिलती हैविदेशी पर्यटक यहां भारतीय परंपराओं कोसमझने और आत्मसात करने आते हैं

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति की गहराईसहिष्णुता औरएकता का अद्भुत संगम हैयह केवल पवित्र स्नान का पर्वनहींबल्कि जीवन के गूढ़ रहस्यों को जाननेआत्मचिंतनकरने और मानवता के प्रति समर्पण व्यक्त करने का एकअवसर भी हैभारत की सनातन परंपरा में यह आयोजनअनूठी आस्थासंस्कृति और दर्शन का परिचायक बना रहेगा 

Deepika Sharma

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