

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शोरी की कलम से..
नशे का धंधा- कब होगा मंदा
वर्तमान में हमारा राष्ट्र अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है और एक सबसे बड़ी समस्या लोगों के बीच बढ़ रही नशे की लत है। नशीले पदार्थों का सेवन कोई नई बात नहीं है , सुरापान का सेवन तो देवता और असुर भी किया करते थे। हम सभी ने देखा है सिगरेट और हुक्के का सेवन तो घरों में बुज़ुर्गों द्वारा खुले आम किया जाता था, हाँ शराब का सेवन ऐसे नहीं होता था। समय के साथ अफीम, गांजा, चरस आदि भी प्रचलित होने लगे हालांकि इनका सेवन भी कुछ लोग ही किया करते थे। यहाँ मैं एक अंग्रेजी फिल्म गॉडफादर (जिस पर एक हिंदी फिल्म धर्मात्मा भी बनी थी) का एक दृश्य बताऊंगा, जिसमें गॉडफादर अन्य डॉन के साथ मीटिंग कर रहा है, और अन्य डॉन उसे सलाह दे रहे हैं क़ि उन्हें नशे वाले मादक पदार्थों के धंधे को शुरू करना चाहिए क्योंकि शराब, कैसिनो, जुआ घरों और वेश्या वृति के धंधों में पैसा सीमित है लेकिन नशीले पदार्थों के धंधे में पैसा भी बहुत अधिक होगा और जल्दी भी आएगा। डॉन इस प्रस्ताव को सख्ती से मना कर देता है क्योंकि वह इस दृढ़ विश्वास का है कि लोग शराब पीते हैं, जुआ खेलते हैं, खुद को तनाव से बचाने के लिए, आनंद मनाने के लिए , लेकिन ड्रग्स व्यवसाय पीढ़ियों को भ्रष्ट कर देगा।
वर्तमान में जो हो रहा है वह उल्टा है क्योंकि लोग इस व्यवसाय में केवल पैसा बनाने के लिए हैं और वे इस धारणा से बिल्कुल भी चिंतित नहीं हैं कि इससे युवा तबाह होंगे, घर उजड़ जाएंगे और इससे यह भी पता चलता है कि अपराधियों के दिल में भी किसी प्रकार की नैतिक जिम्मेदारी थी। आजकल जब नैतिकता और नैतिक मूल्य दुर्लभ वस्तु हैं, तो यह इस तरह नहीं है और लोगों ने ड्रग व्यवसाय को सबसे आकर्षक और फलने -फूलने के रूप में बना लिया है। नशा स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है और यहां तक कि स्कूली बच्चों को भी एक योजनाबद्ध तरीके से आपूर्ति की जा रही है। यह भी एक ज्ञात तथ्य है कि सीमा पार से तस्करी होती है और दुनिया भर में और हमारे देश में ड्रग्स की खरीद और आपूर्ति करने के लिए गिरोह काम कर रहे है। तथ्य सभी की जानकारी में हैं, व्यापार की चालें भी ज्ञात हैं, इसे जांचने के लिए भी यत्न भी किए जाते हैं, इरादे भी हैं, राजनीतिक इच्छाशक्ति भी है, फिर भी इसका कोई अंत नहीं है और इस व्यवसाय में कोई कमी नहीं है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि नशा का व्यवसाय फल -फूल रहा है और कोई भी नहीं जानता कि यह कैसे और कब नीचे आएगा। इसे नीचे लाना भी आसान नहीं है और यह कुछ वर्षों में या किसी के भी एक या दो राजनीतिक कार्यकाल में भी नीचे नहीं आ सकता है। फिर ऐसे में क्या करना होगा ?
आइए हम इसका विश्लेषण विस्तार से करते हैं। इस तथ्य से इनकार नहीं है कि प्रत्येक राजनीतिक दल कम से कम नशा व्यवसाय के खिलाफ होने का दावा करता है। हालांकि यह एक अलग कहानी है पार्टियां एक -दूसरे को दोषी ठहराती हैं जब एक या दूसरा सत्ता में या विरोध में होता है। इसलिए, सत्ता में पार्टी को पहल करनी होगी यदि उनका उद्देश्य पीढ़ियों को बचाना है। विरोधी पार्टी को भी आगे आना होगा और सत्तारूढ़ पार्टी का समर्थन करना होगा यदि उनका उद्देश्य भी समान है। पहले चरण में सभी राजनीतिक दलों का एक सांझा मंच बने जिसकी पहल सत्ताधारी दल करे और सभी विरोधी दलों को कहे कि वे अपने प्रतिनिधि इसमें नामज़द करें। राज्य स्तर के अलावा, इसी तरह के सामान्य संयुक्त फ्रंट हर ज़िले यहां तक कि पंचायत स्तरों पर भी बनाये जाए । लेकिन इस दिशा में पहला कदम उठाने से पहले, सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों दोनों के नेताओं को एकमत होने की जरूरत है एक ही तरंगिका पर यह सुनिश्चित करने के लिए कि उन्हें लगता है कि उनके बीच कुछ काली भेड़ें हैं जिन्हें वे साइड लाइन भी करेंगे। विचारधारा में अंतर होने के कारण दोनों के विचार अलग हो सकते हैं, तरीकों में थोड़ा बहुत मतभेद हो सकता है, लेकिन नशे के खिलाफ लड़ने के लिए, दोनों को इनसे परे और पार्टी राजनीति से ऊपर उठना होगा और दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि यदि वे सफल हों तो कोई भी स्व -क्रेडिट नहीं लेता है और अगर कमियां हो तो कोई भी एक दूसरे को दोषी नहीं ठहराएगा।
पाठक सोच रहे होंगे कि यह असंभव है, यह नहीं है बशर्ते नेता स्वार्थी नहीं हैं और देश व् राज्य के हित में एक दूसरे का हाथ थामने को तैयार हैं। अगर ऐसा हो सकता है तो सभी नेताओं के नाम इतिहास में सुनहरी अक्षरों में लिखे जा सकते हैं। दरअसल हो यह रहा है कि हर दल, हर नेता प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहा है कि वह एकमात्र ही संरक्षक है जनता का, और इसी चक्र में दूसरे की सही बात को गलत साबित करने,दूसरे की छवि धूमल करने में अपना जीवन निकाल देता है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि विपक्षी पार्टी अधिक लोकप्रिय तो नहीं हो रही है, नेता भी भीत घाट करने की कोशिश करते हैं। आम तौर पर लोग बात करते हैं कि नेताओं और अधिकारियों की मिली भगत के बिना कुछ भी संभव नहीं है। यह भी सही है और समाज में सभी प्रकार के लोग हैं, इसलिए तथाकथित ऐसी गुटबंदी को आसानी से तोड़ा जा सकता है यदि शीर्ष स्तर पर सत्तारूढ़ और विपक्षी नेता नशा के खिलाफ युद्ध में एकजुटता दिखाते हैं।
मैंने जो भी कहा है, वह एक आदर्श स्थिति हो सकती है जो व्यावहारिक रूप से शायद पूर्णतया संभव नहीं है, लेकिन कम से कम प्रयास तो किया जा सकता है और अगर कोई प्रयास किया जाता है और सार्वजनिक रूप से आम जनता के सामने इसे रखा जाता है तो कम से कम लोगों को राजनीतिक नेताओं के स्तर और इरादों का पता तो चल जाएगा। राजनीतिक मोर्चे के अलावा, नशा के खिलाफ लड़ाई घर और स्कूल स्तर पर भी लड़ी जानी है। माता -पिता को , मैत्रीपूर्ण, अधिक संवादात्मक और चौकस भी होना चाहिए ताकि बच्चे परिवार के करीब रहें, वे अलग -थलग न हों और माता -पिता भी उनके दोस्तों व् समय पर नज़र रख सकें। माता -पिता ,तकनीकी रूप से बच्चों के सामने खुद को असहाय न समझें , बच्चों के साथ उनके भविष्य, उनकी योजनाओं, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों के बारे में बात करें जो समाज और देश को झेलनी पड़ रही हैं, खुद भी पड़ें और बच्चों में भी पड़ने की आदत डालें, उनको खेल कूद, नियमित व्यायाम करने के लिए प्रेरित करे।
दूसरा स्थान स्कूल है जहां एक बच्चा अपना अधिकांश समय बिताता है। शिक्षक बच्चों के भविष्य के निर्माता हैं, उन्हें बच्चों द्वारा एक आदर्श के रूप में देखा जाता है और वे उन्हें अधिक सुनते हैं, उनकी बात को अधिक महत्व भी देते है। शिक्षकों को पाठ्यक्रम कवर से बाहर आना पडेगा, उन्हें बच्चों के चरित्र, नैतिक मूल्यों, अखंडता, दृढ़ संकल्प और समग्र रूप से काम करने के कौशल को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। एक और महत्वपूर्ण बात है कि स्कूल में बच्चों के लिए खेल सुविधाएं हों, उन्हें खेलने के लिए प्रेरित किया जाये, शारीरिक गतिविधियां हो ताकि उनके हार्मोन तदनुसार विकसित हों। स्कूलों को चाहिए एक उदाहरण बनाने के लिए स्पोर्ट्स में सफल लोगों को स्कूलों में बुलाएं ताकि बच्चे उनसे प्रोत्साहित हो सकें। रास्ता लंबा है, समस्याएं कई हैं, निहित स्वार्थी बहुत हैं और समर्पित लोग सीमित हैं, लेकिन अगर इच्छा है तो सफलता मिल सकती है, और अगर सिर्फ समय बिताना है तो वो तो ऐसे भी निकल ही जायेगा।



