

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शोरी
देशभक्ति के मुखौटे
26 जनवरी का दिन हाल ही में बीता है और उस दिन देश में हर जगह देश भक्ति का ऐसा एहसास था, ऐसी उमंग थी कि सभी देश के प्रति अपने प्यार को दिखाने के लिए दूसरों से आगे बढ़ और कुछ अलग दिखने की कोशिश कर रहे थे। इस दिन कई चैनलों में देश भक्ति की फिल्में दिखाई जाती हैं, देश भक्त गीतों को भी साथ -साथ प्रसारित किया जाता है और कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी स्कूलों, कॉलेजों और अन्य कई स्थानों पर आयोजित किए जाते हैं। यह स्वाभाविक है क्यों कि दशकों की गुलामी के बाद हमें स्वतंत्रता मिली, हमारा स्वयं का संविधान हमारी अपनी पहचान, व्यक्तित्व और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को दर्शाता है। यह आत्म सम्मान की भावना को भी जीवित रखता है। इसी तरह का माहौल 15 अगस्त को भी होता है। लेकिन इससे मन में एक सवाल भी उठता है। क्या हम केवल प्रतीकात्मक दिनों में देश भक्त हैं? क्या हम पूरे साल देश भक्त नहीं बन सकते? इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि एक देश भक्त बनने के लिए क्या करना होता है? क्या देश के लिए प्यार और स्नेह केवल एक विशेष दिन के लिए है? क्रिकेट मैचों के दौरान गालों पर तिरंगे झंडे के रंग जैसी गाल रंग लेना, समस्त शरीर को रंग लेना ही देश के लिए किसी के प्यार और सम्मान को व्यक्त करने का एकमात्र तरीका है? क्या ट्रैफिक सिग्नल पर लोगों से छोटे आकार का फ्लैग खरीद कर और फिर अपने वाहनों पर झंडे को फहराना तक ही हमारी देश भक्ति सीमित है ? क्या देशभक्ति केवल इंस्टाग्राम और फेसबुक पर साझा करने तक सीमित है?
ये और ऐसी अनेक गतिविधियाँ और प्रदर्शन सच्ची देशभक्ति नहीं हैं, ये प्रतीकात्मक देशभक्ति हैं। ये आयोजन मुख्य रूप से स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर लोगों द्वारा किए जाते हैं। एक बार दिन चला जाने के बाद, जोश और उत्साह भी दूर हो जाता है। यहां तक कि इन दिनों भी हम केवल प्रतीकात्मक देशभक्ति करते हैं। मैंने माता -पिता को देखा है ट्रैफिक सिग्नल पर रुकते हुए, तिरंगे झंडे खरीदते हुए जब वे अपने बच्चों को स्कूल ले जा रहे थे, वे अपने बच्चों को झंडा सौंप रहे थे और तुरंत ट्रैफ़िक संकेतों का उल्लंघन करते हुए जल्दी से आगे निकल रहे थे, यह देशभक्ति है? वे अपने बच्चों को क्या संदेश देंगे और बच्चे क्या सोच रहे होंगे? कुछ भी नहीं क्योंकि बहुधा लोग इस प्रकार से इतने उदासीन हो गए हैं, इतने आत्म -केंद्रित और मानसिक रूप से स्वार्थी हो गए हैं कि वे कानून, नियम, कायदों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। किसी भी स्टेडियम में जब भी भारत और किसी अन्य देश के बीच क्रिकेट मैच होता है, या कोई भी संगीत कार्यक्रम होता है या जैसा कि हिमाचल प्रदेश व् अन्य स्थानों पर भी सांस्कृतिक उत्सव मनाये जाते हैं, तो उत्सव के दौरान और बाद में कूड़ा कर्कट, पानी की बोतलें, लिफ़ाफ़े, सिगरेट, शराब व् बियर की खाली बोतलें , इन सब से वो स्थान भरा रहता है, क्यों? क्या हमारी देशभक्ति केवल राष्ट्रगान के लिए खड़े होने तक सीमित है?
यात्रा करते समय हम नियमों का पालन नहीं करते हैं, हम चिढ़ जाते हैं यदि हमें एक कतार में खड़े होना पड़ता है, यहां तक कि धार्मिक स्थलों में भी हम जल्दी से कतार से आगे निकल कर भगवान से मिलने की जल्दी में हैं, हम लेन ड्राइविंग का पालन नहीं करते हैं, हम यातायात नियमों का पालन नहीं करते हैं, हम ओवर स्पीड करते हैं, ट्रैफिक सिग्नल पर इतने उतावले हो जाते हैं कि पीली बत्ती पर ही हॉर्न बजाना शुरू कर देते हैं, ये और बात है कभी भी कहीं भी समय पर नहीं पहुंचते, हम ड्राइविंग करते समय सड़कों पर थूकते हैं, सूची अंतहीन है और हम खुद को देशभक्त कहते हैं। हम हमेशा सरकारी काम करते और करवाते समय संपर्क और जानने वाले लोगों की तलाश में रहते हैं ताकि किसी प्रकार से कुछ जुगाड़ लगाया जा सके और हमारा काम जल्दी से हो जाय। हम शासकीय प्रणाली की आलोचना करते हैं, अक्षमता और अव्यवस्था के लिए राजनेता और सरकारी अफसरों को दोषी ठहराने में तो माहिर है लेकिन जब समय आता है तो हम ईमानदार, कर्त्तव्बध और साफ़ सुधरी छवि वाले लोगों के बनिस्बत जाति, धर्म, जनजाति के आधार पर नेताओं का चुनाव करते हैं जो बेशक अनपढ़ व जुर्म की दुनिया से हों लेकिन बाद में सारा दोष भी उन पर डाल देते हैं।
जब लोग आपस में फुरसत के समय बैठ कर बातचीत करते हैं, तो वे आमतौर पर हमेशा जापान और इज़राइल के बारे में बात करते हैं कि कैसे वहां के लोग कितने देश भक्त हैं , कैसे वहां लोग स्वंय क़ानून की पालना कैसे करते हैं, कैसे वहां समय की कितनी महत्ता है, लेकिन जब हमारे अपने देश की बात आती है तो हमारे पास सौ बहाने होते हैं, हालांकि हम स्वतंत्रता और गणराज्य के दिनों का जश्न मनाने के लिए बहुत उत्साही होते हैं। यहां तक कि जब लोग विदेश जाते हैं तो वे नियमों और विनियमों का पालन करते हैं, कोई यातायात पुलिस भी नहीं होती है, लेकिन वे यातायात नियमों का पालन करते हैं। कभी कभी ऐसा लगता है कि एक राष्ट्र के रूप में हम कई चीजों, कार्यों और दृष्टिकोण में विफल रहे हैं। हम वास्तविक कार्यों की तुलना में दिखावे की ज़िंदगी जीने मैं माहिर हो गए हैं। स्वतंत्रता संग्राम के शूरवीरों का भी उपयोग ही किया जाता है, उनकी शिक्षाऐं और मार्ग चिन्हों व विचारों का पालन करने के बजाय विशेष अवसरों पर भाषण देने के समय ही उनका इस्तेमाल किया जाता है या फूल माला चढ़ाते समय। देश भक्ति को केवल प्रतीकों और जलसों के लिए प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए। देश भक्ति का मतलब यह नहीं है कि हर कोई सेना में शामिल हो जाय, देश भक्ति को हमारे दैनिक जीवन में, हमारे व्यक्तिगत और प्रोफेशनल जीवन में शामिल किया जाना है, जिसके लिए किसी तरह की टॉनिक की आवश्यकता नहीं है और न ही ये किसी कोचिंग क्लास में जा कर मिल सकती है।
एक सच्चे देशभक्ति बनने के लिए पहले हमें अपने अंदर देखने की जरूरत है, माता -पिता को खुद को हिला देने की जरूरत है, शिक्षकों को खुद को ओवरहाल करने की आवश्यकता है, नेताओं को अपनी दुनिया से बाहर निकलने की जरूरत है। सक्रिय खेल जीवन से अब सेवानिवृत्त हो चुके वाले महान खिलाड़यों को खेल संघों के पदाधिकारी बनने की बजाय स्कूल, कॉलेजों का दौरा करके, अगली पीढ़ी में नई जान फूकनी होगी। सामाजिक सुधारकों को अपनी रणनीतियों को फिर से शुरू करना चाहिए जो धर्म, अंधविश्वास पर आधारित न हो बल्कि समाज को सभय बनाने की और हो। धार्मिक नेताओं को भी इस बात पर जोर देने की आवश्यकता है कि इस जीवन को दूसरे जीवन से बेहतर कैसे बनाया जाए। यह वास्तविक देशभक्ति है जिस की हम सब को आवश्यकता है।


