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“2024 का मानसून: प्रभाव, चुनौतियाँ और संभावनाएँ”

मानसून की शुरुआत और प्रगति:

भारत में मानसून का आगमन हर साल जून में होता है और यह सितंबर तक रहता है। यह मौसम भारतीय कृषि और जल संसाधनों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि अधिकांश खेती मानसून की बारिश पर निर्भर करती है। मानसून का प्रभाव न केवल कृषि बल्कि पूरे आर्थिक और सामाजिक जीवन पर पड़ता है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल मानसून ने केरल तट पर सामान्य समय के आसपास दस्तक दी है। मानसून की चाल धीमी रही है और कुछ राज्यों में सामान्य से कम बारिश हुई है। कुछ क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। केरल और कर्नाटक में सामान्य से कम बारिश हो रही है, जिससे कृषि पर असर पड़ा है। यहाँ मानसून सक्रिय है और सामान्य से अधिक बारिश हो रही है। महाराष्ट्र और गुजरात में मॉनसून का सामान्य प्रभाव है।

धान, मक्का, बाजरा आदि फसलों की बुआई पर मानसून की स्थिति का सीधा प्रभाव पड़ा है। कम बारिश के कारण किसानों को सूखे का सामना करना पड़ सकता है, जबकि अत्यधिक बारिश से फसलों का नुकसान हो सकता है। नदियों में जल स्तर बढ़ा है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में जलस्तर कम है। जलाशयों में पानी की मात्रा सामान्य से कम है, जिससे जल संकट की संभावना है।

मुंबई, पटना और गुवाहाटी जैसे शहरों में भारी बारिश से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई है। बाढ़ के कारण जन-धन हानि हुई है और जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ है।

मानसून पैटर्न में बदलाव देखे जा रहे हैं, जो जलवायु परिवर्तन का संकेत हो सकते हैं। सामान्य से अधिक या कम बारिश के पीछे जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है ।

मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की अनिश्चितता बढ़ रही है। कृषि विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि किसान बदलते मौसम के अनुसार फसलों की बुआई करें और जल संरक्षण के उपाय अपनाएँ।

सरकार के कदम

  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना: किसानों को फसल बीमा का लाभ दिलाने के प्रयास।
  • जल प्रबंधन: जल संरक्षण और प्रबंधन के लिए विभिन्न योजनाएँ।
  • आपदा प्रबंधन: बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत और बचाव कार्य।

वर्तमान मानसून की स्थिति और उसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझना और उसके अनुसार अपनी योजनाएँ बनानी होंगी। किसानों को वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के लिए प्रेरित करना और जल संरक्षण के उपायों को अपनाना आवश्यक है।

नदियों के अनुसार जलस्तर की जानकारी

भारतीय नदियों का जलस्तर मानसून के दौरान काफी बढ़ जाता है, जो नदियों के बहाव क्षेत्र और मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है। यहाँ प्रमुख नदियों के जलस्तर की जानकारी दी गई है:

  1. गंगा नदी: उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा नदी का जलस्तर मानसून के दौरान तेजी से बढ़ता है। वाराणसी और पटना जैसे शहरों में जलस्तर बढ़ने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। केंद्रीय जल आयोग (CWC) के अनुसार, कुछ क्षेत्रों में गंगा नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है।
  2. यमुना नदी: दिल्ली, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश में यमुना नदी का जलस्तर भी मानसून के दौरान बढ़ जाता है। दिल्ली में यमुना नदी के जलस्तर के बढ़ने से निचले इलाकों में बाढ़ की संभावना रहती है।
  3. ब्रह्मपुत्र नदी: असम और अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर मानसून के दौरान बहुत बढ़ जाता है, जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है। वर्तमान में, असम में ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर खतरे के निशान के करीब है।
  4. नर्मदा नदी: मध्य प्रदेश और गुजरात में नर्मदा नदी का जलस्तर मानसून के दौरान बढ़ता है। सरदार सरोवर बांध के जलस्तर में वृद्धि देखी गई है। इस वर्ष, नर्मदा नदी में सामान्य से अधिक पानी बह रहा है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ की स्थिति बन सकती है।
  5. गोदावरी नदी: महाराष्ट्र, तेलंगाना, और आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी का जलस्तर भी मानसून के दौरान बढ़ता है।

    इस साल गोदावरी नदी के निचले इलाकों में बाढ़ की संभावना बनी हुई है।

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    सतलुज, ब्यास और रावी में मानसून का प्रभाव और बाढ़ की स्थिति

    मानसून के दौरान, उत्तरी भारत की नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है, जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। सतलुज, ब्यास और रावी नदियों में मानसून के प्रभाव और बाढ़ की स्थिति निम्नलिखित है:

    सतलुज नदी

    1. मानसून का प्रभाव:
      • मानसून के दौरान सतलुज नदी में भारी बारिश के कारण जलस्तर तेजी से बढ़ता है।
      • हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फ पिघलने और बारिश के कारण सतलुज नदी में पानी की मात्रा बढ़ जाती है।
    2. बाढ़ की स्थिति:
      • पंजाब और हरियाणा में सतलुज नदी के आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • भाखड़ा-नांगल बाँध का पानी छोड़ने पर निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
      • 2019 में, पंजाब के कई जिलों में सतलुज नदी में जलस्तर बढ़ने के कारण बाढ़ आई थी, जिससे हजारों लोग प्रभावित हुए थे।

    ब्यास नदी

    1. मानसून का प्रभाव:
      • मानसून के दौरान ब्यास नदी में जलस्तर बढ़ जाता है, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश और पंजाब के क्षेत्रों में।
      • हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण नदी का जलस्तर बढ़ सकता है।
    2. बाढ़ की स्थिति:
      • ब्यास नदी के किनारे बसे गाँवों और कस्बों में बाढ़ का खतरा रहता है।
      • पोंग बाँध का जलस्तर बढ़ने पर जल छोड़ने की स्थिति में निचले इलाकों में बाढ़ आ सकती है।
      • 2018 में, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में ब्यास नदी में जलस्तर बढ़ने के कारण कई क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित हुए थे।

    रावी नदी

    1. मानसून का प्रभाव:
      • मानसून के दौरान रावी नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ता है, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश और पंजाब के क्षेत्रों में।
      • पाकिस्तान में भी मानसून के दौरान रावी नदी का जलस्तर बढ़ जाता है।
    2. बाढ़ की स्थिति:
      • रावी नदी के किनारे बसे गाँवों और शहरों में बाढ़ का खतरा रहता है।
      • रणजीत सागर बाँध का जलस्तर बढ़ने पर जल छोड़ने की स्थिति में निचले इलाकों में बाढ़ आ सकती है।
      • 2020 में, जम्मू-कश्मीर और पंजाब के कुछ क्षेत्रों में रावी नदी में जलस्तर बढ़ने के कारण बाढ़ की स्थिति बनी थी।

        सरकार के कदम और उपाय

        1. मानसून पूर्व तैयारी:
          • सरकार और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण मानसून के आगमन से पहले नदियों के किनारे बसे लोगों को जागरूक करते हैं और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने के लिए तैयारियाँ करते हैं।
          • बाढ़ की स्थिति में राहत और बचाव कार्यों के लिए राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की टीमों को तैनात किया जाता है।
        2. बाँध और बैराज प्रबंधन:
          • भाखड़ा-नांगल बाँध, पोंग बाँध और रणजीत सागर बाँध जैसे महत्वपूर्ण बाँधों के जलस्तर को मॉनिटर किया जाता है और आवश्यकतानुसार जल छोड़ने की योजना बनाई जाती है।
          • बाँधों के गेटों को समय पर खोलकर बाढ़ के प्रभाव को कम करने के प्रयास किए जाते हैं।
        3. बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली:
          • भारतीय मौसम विभाग (IMD) और केंद्रीय जल आयोग (CWC) द्वारा नदियों के जलस्तर की नियमित निगरानी और बाढ़ पूर्वानुमान जारी किए जाते हैं।
          • स्थानीय प्रशासन और आम जनता को बाढ़ की स्थिति से अवगत कराने के लिए सतर्कता जारी की जाती है।

        सतलुज, ब्यास और रावी नदियों में मानसून के दौरान जलस्तर बढ़ने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। सरकार और विभिन्न एजेंसियों द्वारा बाढ़ की स्थिति को नियंत्रित करने और प्रभावित लोगों को राहत पहुँचाने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं। इन नदियों के जलस्तर की निगरानी और बाँध प्रबंधन के माध्यम से बाढ़ के प्रभाव को कम करने के प्रयास किए जाते हैं।

        IMD ने संकेत दिए हैं कि मानसून के शेष महीने में सामान्य से अधिक बारिश हो सकती है।

Deepika Sharma

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