असर संपादकीय: वोट दूसरों के लिए नहीं देश के लिए डालें
- डॉ. निधि शर्मा (स्वतंत्र लेखिका) की कलम से..

– डॉ. निधि शर्मा (स्वतंत्र लेखिका)
अक्सर लोगों को बोलते हुए सुना होगा कि वोट डालने से क्या होगा ? मेरे एक वोट डालने से कौन सा
कोई फर्क पड़ने वाला है। अगर वोट डाल भी दें तो कौन सा कोई हमारे लिए काम करेगा ? ऐसे बहुत से सवाल हैं जो जनता को वोट डालने से रोकते हैं। इस कशमकश में कैसे लोगों का लोकतंत्र में विश्वास पैदा होगा । बेशक चुनाव योग द्वारा चुनावी महाकुंभ में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए स्वीप कार्यक्रम के तहत कई सैमिनार, प्रमोशन गतिविधियाँ स्कूल, कॉलेजों व सोसायटियों के कम्यूनिटी हॉल में आयोजित की गई हो, लेकिन इन गतिविधियों का जमीनी स्तर पर कितना प्रभाव पड़ता है यो ते आने वाला समय ही बताएगा । हालांकि 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनावों में 499 सीटों के लिए 61.2 प्रतिशत वोट जनता द्वारा डाले गए। वहीं 2019 में हुए 542 निर्वायन क्षेत्रों में 67.11 प्रतिशत मतदान हुआ जो अब तक का सर्वाधिक मतदान था। देखना ये होगा कि 18वीं लोकसभा के चुनावों में वोट का कितना प्रतिशत बढ़ेगा ।
जब हम आपस में बैठकर विचार-विमर्श करते हैं कि किस राजनैतिक पार्टी या व्यक्तिगत तौर पर किस उम्मीदवार को वोट करें तो सिर्फ इतना ही दिमाग में आता है किस ने देश के लिए अच्छा काम किया हालांकि व्यक्तिगत मुद्दे हमारे
देश में वोट डालने के लिए अधिक लोकप्रिय है। किसने मेरे घर में रोज़गार दिया,
किसने मुफ्त सुविधाएँ दी या किसने मेरे उच्च जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए काम
किया ? ऐसे कई भ्रामक विचार समाज में अक्सर सुनने को मिल जाते हैं। इन
सवालों के जवाब या तो व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर मिल जाते हैं या
मीडिया के विभिन्न साधनों के माध्यम से जानकारी हासिल करने की कोशिश
करते हैं। हालांक समाज में एक ऐसा तबका भी है जो शिक्षा की कमी के कारण
वोट डालते हुए न समझता है और न ही सोचता है बस बिक कर मतदान ज़रूर
करता है। एक तबका ऐसा भी है जो शिक्षित होने के बावजूद अपने तार्किक ज्ञान
में फंसकर इतना उलझ जाता है कि मतदान का प्रयोग करना उचित नहीं समझता
। इसी वर्ग के कारण भी मतदान का प्रतिशत अधिक नहीं बढ़ता । तो क्या
लोकतंत्र ऐसे सवालों में ही उलझ कर रह जाएगा ?
अगर सकारात्मक तरीके से सोचें तो वोट डालना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि सरकार जनता के लिए और जनता के द्वारा बने। हालांकि कुछ कसूर जनता का भी है कि वो वोट डालकर भूल जाती है। इसका कारण यह है कि वोट किसे और क्यूँ डालें । इसकी स्पष्टता कुछ प्रतिशत जनता में ही होती है। ये जनता भी अपनी पसंद की सरकार बनने पर बस खुश होती है और नापसंद सरकार पर खामोश हो जाती है। हालांकि पंसदीदा सरकार के सभी निर्णय सही हो ये ज़रूरी नहीं, उस सरकार से सवाल पूछना बंद कर देती है। यही सबसे बड़ी भूल होती है।
जनता का सबसे बड़ा अधिकार चुनी हुई सरकार से सवाल पूछना है। यदि सवाल डर से या अनभिज्ञता से ना पूछे गए तो लोकतंत्र की नींव ज़रूर हिलेगी ।
समाज देश के विकासात्मक यात्रा का साथी तभी बन सकता है जब राजनैतिक विकास सही दिशा में बढ़े क्योंकि लोकतांत्रिक देश में टिकाऊ और निडर सरकार ही अतंर्राष्ट्रीय पहल पर शंकित व असंवेदनशील राष्ट्रों के बीच अपने देश का वजूद कायम कर सकती है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास राजनैतिक स्थिरता व विकास पर अधिक निर्भर करता है। ये सब तभी संभव है जब हम सब अपने मत का प्रयोग करें। आइए बिना डरे, बिना रूके और बिना थके देश के विकास ले लिए काम करें ।




