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EXCLUSIVE: हैरानी: संचायिका के नाम से लाखों रुपए दफन है विद्यालयों के डाकघर तथा बैंक खातों में

उठे सवाल: आख़िर क्या कर रहा है शिक्षा विभाग?

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स्कूली छात्रों में सेविंग (बचत) की आदत डालने के लिए 1970 में शुरू की गई  सांचायीका योजना को 1 अक्तूबर 2016 से बंद कर दिया गाया है अब आशंका यह है की आज भी संचायिका के नाम से विभिन्न बैंक अथवा डाकघर में काफी राशि दफन है।जानकारी के अनुसार अधिक संख्या वाले तथा पुराने विद्यालयों की यह राशि लाखो में हो सकती है ।

 

इस बारे में असर न्यूज़ ने जब राजकीय अध्यापक संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान से भी बात की तो उन्होंने कहा कि ये सत्य है कि संबंधित खातों में कई हज़ारों , लाखों की राशि हो सकती है जो नियम के तहत बच्चों को मिलनी चाहिए। यदि इसमें किसी ने घपला  किया है तो उस पर भी उचित कार्रवाई होनी चाहिए इस पर शिक्षा  विभाग को गंभीरता से क़दम उठाना चाहिए। 

विद्यार्थियों में बचत को आदत विकसित करने के लिए प्रारंभ में यह योजना इतनी लोकप्रिय हुई की 15 सितंबर को प्रतिवर्ष संचायिक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

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इस योजना के तहत छठी से बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थी प्रति माह फीस के साथ कुछ अमाउंट संच्यिका में भी जमा किया करते थे।। इस अमाउंट को पोस्ट ऑफिस में जमा कर दिया जाता था तथा विद्यालय छोड़ने के दौरान विद्यार्थियों को 2 फीसदी ब्याज के साथ संचायिका के अमाउंट को लौटाया जाता था। स्कूल ही पैसे जमा करने से लेकर विदड्रॉ करने का कार्य करते थे। अधिक राशि होने पर कुछ विद्यालय इसे फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में भी जमा करते थे ताकी अधिक ब्याज मिल सके।

संचायिका योजना को शुरू करने का मकसद बच्चों में सेविंग की आदत डालना था।अमाउंट को लेकर कई बार बदलाव किया गया। पांच और दस रुपए भी इसमें तय किए गए। लेकिन कुछ स्टूडेंट्स दस रुपए नहीं दे पाते थे अतः बाद में इस राशि को पांच रुपए कर दिया गया । 

विद्यार्थी के अकाउंट को उचित तरीके से अपडेट किया जाता था।

 

हर स्टूडेंट के संचायिका का अलग अकाउंट होता था। परंतु योजना बंद होने के बाद स्ञ्चायिका का अधिकतर पैसा अभी भी विद्यालयों के खाते में दफ्न है क्योंकि अधिकतर पूर्व विद्यार्थियों ने पैसा वापस नहीं लिया है ।

 

यदि उसे पैसे का उपयोग हेतु वित्त विभाग द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए जाए तो यह धन विद्यालयों के विकास में काम आ सकता है अन्यथा यह राशि अनुपयोगी रहेगी इसके रिकॉर्ड को अधिक समयबतक विद्यालय संभाल नहीं पाएंगे फलस्वरूप इसके दुरुपयोग को संभावना बढ़ जाएगी।

Deepika Sharma

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