
विदुर नीति (5)
विदुर की तीन बातें

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
राजा धृतराष्ट्र से अपनी बातचीत को आगे बढ़ाते हुए विदुर ने तीन चीजों, तीन कर्म, तीन लोग और तीन मुद्दों के बारे में बताया। विदुर कहते हैं कि तीन प्रकार के लोग और तीन प्रकार के कार्य होते हैं। उत्तम, मध्यम और निम्न प्रकार के लोग होते हैं और उनके कार्य भी इसी प्रकार के होते हैं, उत्तम, मध्यम और नीच। किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसके कर्मों के अनुसार ही किया जाता है। तीन प्रकार के लोग होते हैं जो अपनी कमाई हुई संपत्ति का शायद ही आनंद लेते हैं, स्त्री, पुत्र और दास, वे वास्तव में इसे दूसरों के लिए कमाते हैं और खुद पर शायद ही कुछ खर्च करते हैं। व्यवहारिक रूप से देखें तो ऐसा ही होता है, महिलाएं वास्तव में बचत करना पसंद करती हैं और अपने बच्चों और परिवार पर खर्च करती हैं, बच्चे भी बचत करते हैं और अपने माता-पिता, पत्नी, परिवार की ओर ही उनका अधिक ध्यान रहता है और दास तो स्वंय पर खर्च नहीं कर पाते हैं। हालाँकि समय के साथ बदलाव हुए हैं लेकिन सार एक ही है। तीन प्रकार की गतिविधियाँ हैं जो किसी के जीवन में विनाश लाती हैं। विदुर आगे बताते हैं कि तीन प्रकार के कर्म होते हैं जो मनुष्य के जीवन, उसके धर्म और उसकी प्रतिष्ठा को छोटा कर देते हैं। उनका कहना है कि ये तीन प्रकार के कर्म हैं – नीच कर्मों द्वारा दूसरों की संपत्ति छीन लेना, चरित्रहीन स्त्रियों के साथ अनैतिक संबंध बनाना और शुभचिंतकों की मित्रता और संगति से दूर रहना। यदि हम अपने चारों ओर देखें तो आधुनिक समय में भी यह बिल्कुल सत्य है। जो धन कुटिल तरीकों से इकट्ठा किया जाता है वह कभी भी व्यक्ति के पास टिकता नहीं है और वह समय के साथ चला जाता है और हमने देखा है कि जो लोग अपना अधिकांश समय चरित्रहीन महिलाओं के साथ बिताते हैं, उनका पारिवारिक जीवन और उनके बच्चों के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों का जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है। जो मित्र हितैषी होते हैं और सहानुभूति रखते हैं वे भी दूर हो जाते हैं और दुष्ट लोगों की संगति हानि के अतिरिक्त और कुछ नहीं करती। नरक के तीन दरवाजे हैं, अत्यधिक काम वासना, अत्यधिक क्रोध और अत्यधिक लालच। महत्वपूर्ण बात यह है कि विदुर इनकी अधिकता पर जोर देते हैं क्योंकि एक सीमा तक धन, काम और क्रोध की प्राप्ति आवश्यक भी है और स्वाभाविक भी है लेकिन अति मनुष्य को बुरे तरीकों और साधनों की ओर खींच ले जाती है जो खतरनाक है। राजाओं के लिए विदुर ने एक बात कही है कि तीन चीजें राज्य प्राप्त करना, पुत्र प्राप्त करना और इच्छित वस्तु प्राप्त करना – ये तीन चीजें शत्रु से छुटकारा पाने के बराबर हैं। और तीन चीजें हैं जो किसी को भी अपने जीवन में कभी नहीं छोड़नी चाहिए – खुद को लोगों का सेवक मानना, हमेशा अपने को मानवता का प्रेमी सोचना और उस अदृश्य शक्ति से संबंधित होना।
वस्तुतः विदुर ने जो कुछ कहा है वह सर्वथा सत्य एवं सर्वमान्य है। उनका जोर कर्म पर विशेष रूप से अच्छे कर्म पर है, उन्होंने अति पर नियंत्रण करने का मतलब खुद पर संयम रखने और इंद्रियों का गुलाम न बनने की ओर इशारा किया है – ये समय-परीक्षित शब्द और कर्म हैं। जिस संदर्भ में विदुर धृतराष्ट्र से इन शब्दों का उल्लेख कर रहे हैं, वह संदर्भ भी समझने योग्य है क्योंकि वे परोक्ष रूप से कौरवों के आचरण और व्यवहार की ओर इशारा कर रहे हैं। वह परोक्ष रूप से कौरवों को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें खुद पर नियंत्रण रखना चाहिए, अपने आचरण में सुधार करना चाहिए और धर्मनिष्ठ बनना चाहिए। इसलिए, आचरण, कर्म और व्यवहार, ये तीन चीजें हैं जिनका ध्यान रखना जरूरी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे जीवन में बहुत सारे प्रलोभन हैं और खुद को नियंत्रित करना आसान नहीं है, लेकिन बच्चों के उचित पालन-पोषण से, अच्छी आदतें देकर और उचित अनुष्ठान करके कोई भी ऐसा कर सकता है। आधार घर से शुरू होता है और फिर स्कूल से। माता-पिता और शिक्षकों को अनुकरणीय बनना होगा तभी विदुर द्वारा बताई गई बातों पर अमल करने के बारे में सोचा जा सकता है। लेकिन क्या ऐसा हो रहा है? लोग दिशाहीन और संवेदनहीन जीवन के विभिन्न रंगों में जी रहे हैं और अपना समय और ऊर्जा बर्बाद कर रहे हैं। लोग अपने कर्मों और विचारों में दिखावटी और कृत्रिम हो गये हैं तथा आचरण और व्यवहार से कोसों दूर हो गये हैं।



