
भृतहरि के ज्ञान सूत्र (6)

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
स्वाभिमान के इसी सूत्र को आगे बढ़ाते हुए,मान और शौर्य की व्याख्या करते हुए भृतहरि मानव के स्वाभिमान की भी बात करते हैं। वह स्वाभिमानी व्यक्ति के गुणों को इस प्रकार से बताते हैं। भृतहरि फूलों के गुच्छे का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि फूलों के गुच्छों का उपयोग सजावट के रूप में किया जा सकता है और साथ ही देखने में भी आनंददायक हो सकता है। हालाँकि, फूलों का वही गुच्छा यूं ही तोड़ कर फेंक भी दिया जाता है। इसलिए, फूलों का उपयोग ही अंतर पैदा करता है और इसके मूल मूल्य को बढ़ाता या घटाता है। इसी प्रकार, मनुष्य का जीवन या तो उपयोगी और गौरवपूर्ण हो सकता है या फिर वह अपना जीवन केवल अंधकार और अलगाव में बिता सकता है। उनका कहना है कि उसी व्यक्ति का जन्म उचित और सार्थक है जो ऐसे कार्य करता है जिससे उसका पूरा खानदान का नाम दुनिया में रोशन होता है। जानवर और इंसान के जीवन में क्या अंतर है? अंतर मूलतः केवल कर्मों का है जो स्वयं बोलते हैं। चूंकि मनुष्य के पास दिमाग है, सोचने और बोलने की शक्ति है, तर्कसंगत और विश्लेषणात्मक निर्णय लेने की बुद्धि है, इसलिए उसके कर्म ही उसके और एक जानवर के बीच अंतर पैदा करते हैं। इस संसार में हर शरीर नाशवान है लेकिन जो व्यक्ति सम्माननीय व्यक्ति की तरह जीवन जीता है वही जीने योग्य है। सम्मान व्यक्ति को अपने कर्मों से अर्जित करना पड़ता है और यदि व्यक्ति में आत्म-सम्मान नहीं है तो उसका जीवन बेकार है। एक शेर का बच्चा आकार में बहुत छोटा हो सकता है लेकिन उसका अंतर्निहित चरित्र तब सामने आता है जब वो एक हाथी को देखता है और उस पर हमला करने के लिए उत्सुक हो जाता है। उस समय वह शावक न तो चिंतित होता है और न ही डरता है बल्कि वह अपनी काबिलीयत दिखाने के लिए उत्सुक रहता है जो कि एक स्वाभाविक बात है। यह एक स्वाभिमानी व्यक्ति का चरित्र और अंतर्निहित गुण है। यही उसका चरित्र है और इसी प्रकार एक स्वाभिमानी इंसान के भी ये लक्षण होने चाहिए।
दूसरा उदाहरण सूर्यकान्त मणि का दिया जाता है। भर्तृहरि कहते हैं कि एक सूर्यकांत मणि एक ठोस वस्तु और जड़ पदार्थ होते हुए भी आग की तरह जलने लगती है जब उसमें सूर्य की जलती हुई किरणें पड़ती हैं; इसी प्रकार एक स्वाभिमानी व्यक्ति दूसरों द्वारा किये गये अपमान अवहेलना को कैसे सहन कर सकता है? वह अपने सिद्धांतों से समझौता करने के बजाय खुद को खत्म कर लेगा। उनके लिए सिद्धांत और सम्मान किसी भी अन्य चीज़ से अधिक महत्वपूर्ण हैं। वह जलते हुए सूर्यकान्त मणि के समान हो जाता है। भर्तृहरि बृहस्पति ग्रह का भी उदाहरण देते हैं।
वह क्या कहते हैं कि सौर मंडल में 5-6 बड़े आकार के ग्रह और हैं जो आकार में बृहस्पति के लगभग बराबर हैं. लेकिन राहु दूसरों पर आक्रमण नहीं करता, बल्कि उसका लक्ष्य बृहस्पति ही है। क्योंकि राहु की रुचि उच्च वर्ग, शक्तिशाली और सम्मानित ग्रहों को ध्वस्त करने में है और पूरे दौर मंडल में मूलतः दो ही ऐसे उपग्रह हैं – सूर्य और चंद्रमा, जिन पर वह आक्रमण करता है। यह राहु का जन्मजात गुण है और वह इससे समझौता नहीं करेगा, दूसरे शब्दों में खुद को नीचा नहीं दिखाएगा। ये उदाहरण देकर भृतहरि अपनी बात पर जोर देने की कोशिश कर रहे हैं.




