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EXCLUSIVE: रेडिएशन सेफ्टी पर हिमाचल में पकड़ ढीली

कई अस्पताल में दरकिनार किए जा रहे नियम, पीजीआई की रेडियो सेफ्टी ऑफिसर रीना शर्मा से असर न्यूज की खास बातचीत

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भाग एक…..

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हिमाचल के कई अस्पतालों में रेडिएशन  सेफ्टी पर गंभीरता से काम नहीं किया जा रहा है। कई ऐसे मेडिकल कॉलेज है जिसमें रेडियशन सेफ्टी पर तय मापदंडों के अनुसार काम नहीं हो पा रहा है। ऑंकोलॉजी पर शिमला में चल रहे एक अहम सेमिनार में मौजूद पीजीआई की रेडिएशन सेफ्टी ऑफिसर रीना शर्मा ने असर न्यूज़ के साथ खास बातचीत की और कहा कि इस पर हिमाचल को गंभीरता से काम करना होगा। हालांकि आईजीएमसी और टांडा मेडिकल कॉलेज में रेडिएशन सेफ्टी की स्थिति मजबूत है लेकिन वह कुछ मेडिकल कॉलेज में गई थी जहां पर रेडियेशन सेफ्टी पर वह मापदंड के अनुसार काम नहीं कर पा रहे हैं। लिहाजा जिससे मरीज और अस्पताल स्टाफ को खतरा है।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पीजीआई में हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों से मरीज कैंसर का इलाज करवाने पहुंचते हैं । ऐसा इसलिए है क्योंकि हिमाचल में कैंसर मरीजों की ट्रीटमेंट में अभी भी हाईटेक तकनीक की कमी है।

जिसमें लगभग 30 से 40 फीसदी मरीजों को रेडियोथैरेपी की आवश्यकता पड़ती है।

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असर न्यूज के एक सवाल के जवाब में रीना शर्मा ने बताया कि यदि मरीज समय पर आते हैं तो उनका इलाज संभव है इसके लिए आवश्यक है कि जनता को भी जागरूक होना बेहद जरूरी है।

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पहले आईजीएमसी में सेवाएं दे रही थी रीना शर्मा

गौर हो कि रीना शर्मा पहले आईजीएमसी के कैंसर अस्पताल में कार्य  कर रही थी लेकिन वहां की आर्थिक व्यवस्था इतनी मजबूत नहीं थी। लिहाजा उन्हें पीजीआई वापस जाना पड़ा। अस्पताल में स्टाफ की भी काफी कमी है।

वह कहती है कि हिमाचल से डॉक्टरों के पलायन की वजह शायद यह कही जा सकती है कि हिमाचल के डॉक्टर और पैरामेडिकल के लिए आर्थिक व्यवस्था में मजबूती  कम है जो काफी मजबूत होनी चाहिए। और स्टाफ का ग्राफ भी बढ़ाया जाना बेहद आवश्यक है।

उन्होंने जनता से अपील की है कि मरीज समय पर अस्पताल आए और अपना इलाज करवाएं जिससे कैंसर के आंकड़े  कम हो सकते हैं।

रीना शर्मा कहती है कि अब आईजीएमसी के कैंसर अस्पताल में काफी हाईटेक उपकरण आ रहे हैं। यदि अस्पताल में स्टाफ की कमी भी दूर होती है तो पूरी उम्मीद की जा रही है कि अस्पताल में मरीजों का तेजी से इलाज होगा ।

Deepika Sharma

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