विविध

सबूतों के माध्यम से किस तरह अपराधी का पता लगाया जा सकता है

फॉरेंसिक जाँच के क्षेत्र में प्रगति विषय पर एपीजी शिमला विश्वविद्यालय में सेमिनार आयोजित 

 

एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ साइंस की ओर से डीन प्रो. डॉ. रोहिणी धरेला और विभागाध्यक्ष डॉ. मनिंदर कौर के तत्वावधान में फॉरेंसिक जाँच के क्षेत्र में प्रगति विषय पर दो दिवसीय सेमिनार आयोजित किया गया जिसमें प्रदेश व देश के प्रसिद्ध फॉरेंसिक वैज्ञानिकों, पुलिस अधिकारियों, डॉक्टरों, फॉरेंसिक विज्ञान के प्रोफेसरों और लॉ के प्रोफेसरों ने विशेष व्याख्यान दिए। इस सेमिनार में एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के फॉरेंसिक विज्ञान और लॉ की पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं ने भाग लिया और सभी विषय विशेषज्ञों से फॉरेंसिक जाँच पर अपना ज्ञानवर्धन किया कि किस तरह फॉरेंसिक साइंस के जरिए समाज में बढ़ रहे अपराधों पर कंट्रोल और ठोस सबूतों के माध्यम से अपराधी का पता लगाना और इन्वेस्टिगेशन जाँच टीम और कानून की सहायता की जा सकती है। छात्र-छात्राओं ने यह भी जाना कि अपराध क्यों होते हैं और इसके पीछे अपराधी की मानसिकता क्या होती है। इस दो दिवसीय सेमिनार में आईजीएमसी शिमला से फॉरेंसिक मेडिकल विभाग के विभागाध्यक्ष व राज्य मेडिको लीगल एडवाइजर प्रो. डॉ. आदित्य कुमार शर्मा, फॉरेंसिक साइंस लैब मुरादाबाद से वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. उदय प्रताप सिंह, नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी शिमला से सहायक प्रो. नवदित्या तनवर, राज्य फॉरेंसिक लैब जुन्गा हिमाचल प्रदेश के पूर्व निदेशक और वर्तमान में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में विजिटिंग फैकल्टी डॉ. अरुण शर्मा, सीबीआई दिल्ली से डीएसपी सुभाष पांडेय और पुलिस विभाग शिमला से डीएसपी बलवीर सिंह ने फोरेंसिक जाँच के विषयों, डीएनए टेस्ट व टेक्नोलॉजी सहित अपराध प्रवृतियों, अपराधों के कारण, अपराधों के प्रकार, अपराधी का पता लगाना और अपराधों को रोकना आदि कई महत्वपूर्ण बिंदिओं पर गहन चर्चा की गई। सेमिनार के आरंभ से पहले एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. रमेश चौहान, कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार पॉल, मुख्य सलाहकार इंजीनियर विक्रांत सुमन, परीक्षा नियंत्रक अफ़ज़ल खान ने सभी मुख्य विषय विशेषज्ञों का हिमाचली टोपी, शॉल व स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया। वहीं इससे पहले विश्वविद्यालय के एनसीसी यूनिट के कैडेटों ने मुख्य विषय विशेषज्ञों को गार्ड ऑफ ऑनर दिया। कुलपति प्रो. चौहान ने सेमिनार में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों, शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि अपराधी टेक्नोलॉजी के साथ होशियार हो रहे हैं और उनकी अपराध कार्यप्रणाली बदल गई है और यह जांचकर्ता के लिए एक चुनौती बन गया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर आपराधिक मामलों से निपटने के लिए न्याय प्रदान करने के लिए फोरेंसिक साइंस की पूरी क्षमता का उपयोग करने की आवश्यकता है और यह फॉरेंसिक साइंस और मेडिकल साइंस के साथ आधुनिक तकनीकों ने साबित भी किया है कि अपराधों पर काबू पाया गया है लेकिन इस दिशा में अभी और अध्ययन व खोज की जरूरत है और समाज को भी जागरूक करने की जरूरत है ताकि समाज को अपराधमुक्त किया जा सके। इस सेमिनार मरीन में दो सौ से अधिक प्रतिनिधियों व छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। कानून की सहायक प्रो. नवदित्या तनवर ने अपराधों के पीछे मानसिकता का अध्ययन व जाँच पड़ताल जरूरी है। तनवर ने कहा कि इसके लिए तकनीक के साथ मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है जो अपराधों पर कंट्रोल कर सके और पीड़ित को न्याय मिले। उन्होंने अपराधों से जुड़े कानूनों बारे छात्रों को विस्तार से बताया। प्रो. आदित्य कुमार शर्मा ने अपने व्याख्यान में कहा कि मेडिकल साइंस में अपराधों के कारण, मृत्यु के कारण आदि विषयों पर अध्ययन किया जाता है। प्रो. शर्मा ने कहा अधिकतर दुर्घटनाएं और अपराधों के कारण नशाखोरी के कारण होते हैं। वहीं डॉ. अरुण शर्मा ने कहा कि फोरेंसिक की जड़ें बहुत पुरानी हैं। फोरेंसिक शब्द और इसकी तकनीक वर्षों से अपराध और न्याय में मदद कर रहे हैं और कहा कि मृत्यु के पीछे के वैज्ञानिक कारण की जांच की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति, जनसंख्या में वृद्धि और अपराध के नए तरीकों के साथ, फोरेंसिक का महत्व बढ़ रहा है। डॉ. अरुण शर्मा ने अपने व्याख्यान में कहा कि अपराध की जांच में फोरेंसिक वैज्ञानिक महत्व को समझना जरूरी है। डॉ. अरुण ने कहा कि समकालीन कानून प्रवर्तन ने फोरेंसिक तकनीकों और प्रक्रियाओं को अपनाकर अपराधों को सुलझाने की अपनी क्षमता का काफी विस्तार किया है। डीएसपी सीबीआई सुभाष पांडे ने सीबीआई की स्थापना से लेकर इसकी कार्यप्रणाली पर प्रकाश डाला कि सीबीआई कैसे अपराधों, अपराधियों, घोटालों का पर्दाफाश करती है और इस संगठन में फोरेंसिक एक्सपर्ट से लेकर अलग-अलग सैल काम करते है, एविडेंस एक्ट, एक्सपर्टों की भूमिका, अपराध स्थल पर इन्वेस्टिगेशन बारे बताया। उन्होंने केस स्टडी के तौर पर व्यापम घोटाले जैसे कई घोटालों का पर्दाफाश करने के उदाहरण देकर विद्यार्थियों को सीबीआई की प्रक्रिया बारे बताया। उन्होंने कहा कि आज, अपराध स्थल की विस्तृत जांच और फोरेंसिक सबूतों के विश्लेषण से अक्सर अपराधों को सुलझाया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि फोरेंसिक वैज्ञानिकों का काम न केवल आपराधिक जांच और मुकदमों में महत्वपूर्ण है, बल्कि नागरिक मुकदमों, प्रमुख मानव निर्मित और प्राकृतिक आपदाओं और वैश्विक अपराधों की जांच में भी महत्वपूर्ण है। फोरेंसिक साक्ष्य के विश्लेषण की सफलता एक ऐसी प्रणाली पर आधारित है जो टीम वर्क पर जोर देती है, उन्नत खोजी कौशल और उपकरण और सभी प्रासंगिक भौतिक साक्ष्यों को पहचानने, एकत्र करने और संरक्षित करके अपराध के दृश्य को ठीक से संसाधित करने की क्षमता। सेमिनार के अंतिम चरण में कुलपति प्रो. रमेश चौहान, फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. अरुण शर्मा ने सेमिनार प्रतिभागी विद्यर्थियों द्वारा तैयार प्रदर्शिनी के लिए पुरस्कृत भी किया । डॉ. अरुण ने यह कहते हुए व्याख्यान का समापन किया कि फोरेंसिक विज्ञान को और भी अधिक मूल्यवान बनाने और न्याय की उच्च गुणवत्ता बनाए रखने के लिए एक उभार आ रहा है जिसका यह समाज हकदार है। सेमिनार के अंत में विद्यार्थियों ने रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं। डॉ. मनिंदर कौर ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और सभी प्रतिभागियों और विषय विशेषज्ञों का सेमिनार को सफल बनाने के लिए धन्यवाद किया।

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Deepika Sharma

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