सम्पादकीय

असर संपादकीय: श्रीराम मंदिर से राष्ट्रमंदिर निर्माण  

 हितेन्द्र शर्मा की कलम से...

 

मंदिर हमारी धार्मिक आस्थाओं को सुरक्षित रखने के सबसे बड़े स्रोत हैं, मंदिरों से हमारी भावनाएं जुड़ी होती हैं। हम अपने ईश्वर को साक्षी मानते हैं और सर्वदा अपनी संस्कृति के अनुसार मनुष्य के श्रेष्ठ आचरणों को अपनाने के लिए सर्वदा संकल्पित रहते हैं। भारतीय संस्कृति में धर्म की अवधारणा मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने की रही है। पूरा विश्व सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्।। इस अत्यंत पवित्र और उत्तम विचारधारा के समक्ष नतमस्तक होता है। भारतीय संस्कृति में मंदिरों के निर्माण की परंपरा विश्व भर की परंपराओं में सबसे प्राचीन है। हम अपने देवता को मंदिर में स्थापित कर उसे साक्षी मानते हैं उसके समक्ष हम यह संकल्प लेते हैं कि हम अपने धर्म, अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता और अपनी परंपरा का सर्वदा पालन करेंगे। इसी परंपरा को सुरक्षित रखने के लिए भारत में राम का मंदिर होना आवश्यक है।   

 

राम भारतीय संस्कृति के प्राण हैं। विश्व में राम जैसा चरित्र कहीं देखने को नहीं मिला है। हम राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहते हैं और भगवान भी कहते हैं। पिछले 500 वर्षों से राम जन्मभूमि में जो बाबरी मस्जिद थी उसे गिरा कर भगवान राम का गृह निर्माण करना अपनी  संस्कृति की ओर लौटने जैसा है। राम मंदिर के निर्माण से हमारे भीतर यह भावना जागृत हुई है कि हमने अपने देश में अपने धर्म और अपनी संस्कृति को सुरक्षित करने के लिए एक कदम बढ़ाया है। राम इस भावना के प्रतीक हैं कि हम भारतीय अब भारतीय संस्कृति के अनुकूल ही अपना आचरण करेंगे। भगवान राम ने जिस मर्यादा को राष्ट्र में प्रतिस्थापित किया है उसी के अनुसार हम भारतीय अपना आचरण बनाएंगे। राम के द्वारा स्थापित मर्यादाओं के कारण ही भारत सर्वदा यह सपने देखता रहा है कि भारत में रामराज्य होगा। यही रामराज्य प्राप्त करने के लिए राम मंदिर का होना आवश्यक है। जिस दिन यह रामराज्य इस देश में स्थापित हो जाएगा उस दिन हमारा देश राष्ट्र मंदिर के रूप में जाना जाएगा, जहां केवल धर्म के अनुकूल आचरण होगा। सभी, सभी से प्रेम करेंगे, सभी सबके कल्याण की बात करेंगे, संगच्छध्वं संवदध्वं की जो उत्कृष्ट भावना वैदिक वांग्मय में कही गई है उसका प्रचार प्रसार पूरे विश्व में होगा। यह भाव जो देश पूरे विश्व को देगा वही राष्ट्रमंदिर बनेगा इसीलिए इस राम मंदिर से हम राष्ट्र मंदिर की ओर आगे बढ़ेंगे।

 

राष्ट्र मंदिर का तात्पर्य उस भावना से है जो राष्ट्र को केवल धर्म की ओर मनुष्य को उत्तम आचरण की ओर प्रवृत्त करने वाला होगा। जिस दिन पूरे विश्व में मनुष्य के अनुकूल आचरण भारतवर्ष में होने लगेगा जो उत्तम आचरण भगवान राम ने हमें करने के लिए बताया है वह आचरण जिस दिन हमारे चरित्र में, हमारे राष्ट्र में आ जाएगा उस दिन यह राष्ट्र मंदिर के रूप में गिना जाएगा तो इस राम मंदिर के माध्यम से हम उस राष्ट्रमंदिर की कल्पना कर रहे हैं जो आने वाले समय में विश्व गुरु के रूप में हम सबके समक्ष प्रतिष्ठित होगा। मंदिर केवल धार्मिक आस्था को ही ध्यान में रखकर नहीं बनाए जाते हैं। भारतीय परंपरा में मंदिर हमारी समस्त मर्यादाओं के साथ सांस्कृतिक विरासतों को भी अंकित करके समाज के समक्ष प्रस्तुत करने के साधन है। मंदिरों का यदि हम अध्ययन करें तो भारत में बने प्राचीन मंदिरों में हमारी संस्कृति की संपूर्ण झलक देखने को मिलती है।  

 

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भारतीय परंपरा में पुरुषार्थों की सिद्धि हम सब का परम लक्ष्य होता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों की सिद्धि के लिए मंदिर बहुत बड़े उपदेशक होते हैं घर से निकलना मंदिर को पहुंचना धर्म की प्रथम सीढ़ी है। मंदिर का बाह्य स्वरूप उसकी चित्रकला आदि देखना अर्थ का स्वरूप है और मंदिर के भीतर अनेक प्रकार की कलाकृतियां जिनमें कामसूत्र आदि में बताई गई कलाकृतियों का अंकन के माध्यम से शिक्षण और संस्कृति की मर्यादा को बताने के लिए होती है। इस प्रकार धर्म से शुरू होकर अर्थ के रास्ते काम की परीक्षा को पार करके मोक्ष जिसका स्वरूप अंदर गर्भगृह में स्थापित होता है वहां प्राप्त होता है। धर्म, अर्थ और काम इन तीनों को जब हम पार कर लेते हैं तभी हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर इस सिद्धांत को अभिव्यक्त करने के लिए भी निर्मित होते रहे हैं। भारत के प्राचीन मंदिरों में इस भावना को भी अभिव्यक्त करने का सर्वोत्तम प्रयत्न किया गया है चाहे वह अजंता एलोरा के मंदिर हों, चाहे कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या जो कोई भी भारत के प्राचीन मंदिर है वे सभी इन पुरूषार्थो की सिद्धि के लिए ही निर्मित किए गए। हमारी संस्कृति में जो हमारी सांस्कृतिक परंपराएं हैं उन परंपराओं को अनेक मंदिरों के बाहर दीवारों पर चित्रित करने का प्रयत्न किया गया है।  

 

हिमाचल प्रदेश के रामपुर बुशैहर में बना अयोध्यानाथ का मंदिर इस दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। रामपुर बुशैहर के राजा राम सिंह का विवाह अयोध्या की राजकुमारी से हुआ था विवाह की जो सांस्कृतिक परंपरा है उस पूरी परंपरा को राजा राम सिंह ने इस मंदिर के दीवार पर चित्रित करने का प्रयत्न किया है। आज जब हम इस मंदिर को सांस्कृतिक दृष्टि से देखते हैं तो उस काल की समस्त घटनाओं को स्पष्ट रूप में किताब की तरह पढ़ सकते हैं। राम सिंह ने अपने काल की समस्त सांस्कृतिक मर्यादा को अभिव्यक्त करने के लिए ही इस मंदिर का निर्माण कराया है। इस प्रकार एक मंदिर अपने काल की समस्त संस्कृतियों को, मर्यादाओं को, अपनी सभ्यताओं को अपने भीतर समेट लेता है जो आने वाली अनंत पीढ़ियों को यह उपदेश देता रहता है कि आपको भी अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता, अपनी मर्यादा और अपनी परंपरा को जानना भी है और अपने जीवन में उसे लाना भी है ।

 

इसी प्रकार कण-कण में बसने वाले भगवान राम का मंदिर जब अयोध्या में बनकर तैयार होगा तब भारत में रहने वाले भारतीयों को या विश्व में कहीं भी रहने वाले भारतीयों को जिनको अपनी सनातन संस्कृति, हिंदू संस्कृति में विश्वास है आस्था है और उस संस्कृति के अनुसार अपना आचरण रखते हैं वे सभी एक बार फिर अपनी सनातनी परंपरा की ओर लौटेंगे और उस परंपरा से ही हम अपने देश को सभ्यताओं का देश कह पाएंगे। जो मानव सभ्यता का उच्चतम शिखर है उस शिखर को अपना पाएंगे। जिस कारण यह देश आदर्श देश के रूप में जाना जाएगा जिस प्रकार भगवान राम का मंदिर पूरे विश्व में एक आदर्श मंदिर के रूप में जाना जाएगा ठीक उसी प्रकार राम के द्वारा स्थापित आदर्श और मर्यादा के अनुसार आचरण करने से भारतीयों का देश राष्ट्रमंदिर के रूप में विख्यात होगा। हम सभी भगवान राम की मर्यादा को अपने जीवन में अपनाएं और रामराज्य की भारतीय कल्पना को साकार करें।

  

✍ हितेन्द्र शर्मा 

गांव व डाकघर किंगल  

तहसील कुमारसैन, शिमला, हि.प्र.

Deepika Sharma

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