

यक्ष ने युधिष्ठिर से अगला प्रश्न पूछा कि कोई किससे विद्वान बनता है? वह किससे बुद्धिमत्ता प्राप्त करता है. जो बहुत महान है? कोई दूसरा कैसे हो सकता है? और, हे राजा, कोई बुद्धि कैसे प्राप्त कर सकता है? इस पर युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि श्रुतियों के अध्ययन से ही व्यक्ति विद्वान बनता है; तपस्या से ही महान् वस्तु को प्राप्त किया जाता है; बुद्धि से ही व्यक्ति को ज्ञान मिलता है और वृद्धों की सेवा करने से ही वह बुद्धिमान होता है।
आइए इसे थोड़ा विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं। केवल फालतू बातें करने, गपशप करने और सांसारिक बातों में अपना समय बर्बाद करने से कोई बुद्धिमान नहीं बन सकता। बुद्धि प्राप्त करने के लिए बहुत कठिन अध्ययन करना पड़ता है, वो भी विस्तार से। अध्ययन के अलावा, व्यक्ति को स्वयं के साथ-साथ और अन्य विद्वानों के साथ भी बातचीत व् विमर्श करने की आवश्यकता होती है। ज्ञान व् तर्क के समावेश से ही साफ़ व् निष्पक्ष विचारधारा का जन्म होता है, और इसी को तपस्या कहते है।
वर्तमान समय में जो हो रहा है वह यह है कि लोग बहुत अधिक जानकारी एकत्र कर रहे हैं और यह ज्ञान का पर्याय बन गया है। ज्ञान तक पहुँचने के लिए गहराई तक जाने की जरूरत है, लेकिन व्हाट्सअप तकनीक के वर्तमान युग में, जो भी जैसी भी सूचना आ जाए, उसे तुरंत आगे भेजने वाले को अत्यधिक, तेज व् बुद्धिमान माना जा रहा ह। नकली और अधूरी सोचना को ज्ञान के स्रोत के रूप में माना जा रहा है। ज्ञान प्राप्त करने के शॉर्टकट तरीकों से ज्ञान नहीं मिल सकता, उसके लिए अध्ययन, निरंतर अध्ययन, फिर उस पर विचार, विमर्श, आदि अनेकों सोपान हैं, जिन पर चल कर ही ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है. फिर, उसके बाद अगली प्रक्रिया प्रारम्भ होती है, जो है, उस ज्ञान का सदुपयोग।
यक्ष ने पूछा, “ब्राह्मणों की दिव्यता क्या है? उनका आचरण भी साधुओं जैसा क्या है? ब्राह्मणों का मानवीय गुण भी क्या है? और उनका कौन-सा आचरण अधर्मियों के समान है?” युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, “वेदों का अध्ययन उनकी दिव्यता का गठन करता है: उनके तप से ऐसा व्यवहार होता है जो पवित्र लोगों के समान होता है; उनकी मृत्यु का दायित्व उनका मानवीय गुण है और बदनामी उनकी अधर्म है।
यहाँ इसका अर्थ यह है कि शास्त्रों का अध्ययन करना ब्राह्मणों का मुख्य कार्य है या हम कह सकते हैं कि जिस व्यक्ति ने ज्ञान की पुस्तकों को पढ़ा और समझा है, उसे ही ब्राह्मण कहा जाना चाहिए। इसका अर्थ यह भी है कि ज्ञान का जन्म से संबंध नहीं है, बल्कि यह अध्ययन , तार्किक सोच और दूसरों के लिए इसके उचित उपयोग के साथ है, ये सभी व्यक्ति को ज्ञानवान बनाते हैं।




