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असर संपादकीय: मेरा जिंदा रहना हर देशवासी के लिए जरुरी है

लेखिका निधि शर्मा की कलम से...

 

 

मैं सिर्फ एक हिंदी अखबार नहीं, बल्कि हर भारतीय की आवाज़ हूँ। हिंदी को स्थान दिलाने के लिए लड़ रहे, उन करोड़ों लोगों की आशा हूं, जो इक दिन इसे राष्ट्रीय भाषा का स्थान जरूर दिलवाकर रहेंगे। मैं भी आज पाठकों के लिए लड़ रही हूँ जो या तो पढ़ना ही नहीं चाहते या अंग्रजी को पढ़ना अपना स्टेट्स सिंबल मानते हैं। हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत उदन्त मार्तण्ड’ नाम के समाचारपत्र से हुई जिसे 30 मई 1826 को पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरु किया। इस पत्र को शुरु करने का उद्देश्य उस समय अंग्रेजों के खिलाफ जनता की इकट्ठा करना था। लेकिन कहते हैं कि हिंदी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल सके और एक साल के अंदर ही वो बंद हो गया। आज भी समय का चक्र कुछ ऐसा ही तो है। 

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    न तो पढ़ने वाले हैं और दूसरी तरफ नवाचार के नाम पर पेज का लेआउट व उसकी भाषा हिंगलिश हो गई है। करें भी तो क्या करें, हमें दूसरों की भाषा, दूसरों की थाली, दूसरों की संस्कृति बहुत पसंद है, अरे ये तो सिर्फ कागज का टुकड़ा है। इन समाचारपत्रों के नायक यानि की हमारे संवाददाता, भाषा की शुद्धता पर ध्यान दें कि बाबूओं या राजनेताओं को खुश करें या व्यवसायी करण की दौड़ मेंं खुद रेस लगाना सीखें। उनके कशमकश की सूची इतनी लंबी है कि पत्रकारिता का उद्देश्य उसे चलाने भर तक ही सीमित रह गया है। लेकिन मेरा ये मानना है कि हमारे देश में जब तक हिंदी को उचित स्थान नहीं मिलता तब तक हिंदी पत्रकारिता पाठक भी ढूंढेगी और अपने उचित स्थान के लिए लड़ती भी रहेगी। क्योंकि अब ये लड़ाई पहचान से कहीं आगे निकलकर व्यवसाय और उसूलों, पठन व पाठक एवं भाषाई अहम के बीच फसकर रह गई है।

                     निधि शर्मा 

                    स्वतंत्र लेखिका

Deepika Sharma

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