स्वास्थ्य

अलर्ट: जानें क्या है रेबीज

 

स्वास्थ्य विभाग के मुराबिक गत वर्षों की भांति आज दिनांक 28 सितंबर को प्रदेश भर में विश्व रेबिज़ दिवस मनाया गया । विश्व रेबिज़ दिवस का इस वर्ष का थीम “वन हेल्थ – जीरो डेथ्स” है । भारत में वर्ष 2013 से राष्ट्रीय रेबिज़ नियंत्रण कार्यक्रम लागू किया गया है ।

रेबिज़ आर.एन.ए. वायरस के कारण होता है। जो पागल जानवर की लार में मौजूद होता है। यह रोग हमेशा एक पागल जानवर के काटने के बाद फैलता है। जिससे घाव में लार और वायरस जमा हो जाता है। यह एक जानलेवा रोग है। समय पर एंटी रेबिज़ वैक्सीन लगाने पर इसका इलाज सम्भव है। जानवर के काटने पर रोगी के शरीर पर घाव से वायरस को जल्द से जल्द हटाना जरूरी है जिसे पानी और साबुन से धोना और इसके बाद विषाणुनाशक एंटीसेप्टिक्स का उपयोग किया जाना जरूरी है । जिससे रोगी के शरीर में संक्रमण की संभावना कम/समाप्त हो जाती है।

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जानवर के काटने पर रोगी में रेबिज़ के लक्षण होने के बीच का समय 4 दिनों से लेकर तीन महीने तक होता है। समय पर टीकाकरण न लगाने पर पर इसका इलाज़ असम्भव हो जाता है और रोगी की मृत्यु होनी निश्चित है।

हिमाचल प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते राज्य के सभी अस्पतालों में एंटी रेबीज़ वैक्सीन और एंटी रेबीज सीरम (इम्युनोग्लोबुलिन) पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं । रेबिज से पीड़ित सभी रोगियों को निः शुल्क रेबिज के टिके लगाये जाते हैं । प्रदेश सरकार ने हाल ही में जूनोसिस की चुनौती और एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) की अध्यक्षता में राज्य एवं जिला स्तर पर जूनोटिक समिति का गठन किया है।

स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता ने जन साधारण से आग्रह किया है कि किसी भी जानवर के काटने की स्थिति में घबराने की आवश्यकता नहीं है। अपितु उपचार हेतु अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में संपर्क करें।

Deepika Sharma

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