EXCLUSIVE: हैरत: दवा जांच रिपोर्ट आने से पहले एक्सपायर्ड हो गई दवाएं
शिमला का मामला , समय पर आती रिपोर्ट तो अस्पताल को मरीजों के इस्तेमाल के लिए फ्री में दे दी जाती दवा
यदि समय पर दवा जांच रिपोर्ट आती तो शायद शिमला में हजारों की दवाई एक्सपायर होने से बच जाती। यह मामला जिला शिमला का सामने आया है जिसमें वह दवाएं एक्सपायर हो गई हैं जिनके जांच सैंपल को कंडाघाट लैब भेजा गया था। जानकारी के मुताबिक जिला शिमला के विभिन्न केमिस्ट और अस्पतालों से इन जरूरी दवाओं को इसलिए उठाया गया था कि उनकी दवा गुणवत्ता की जांच आसानी से की जा सके लेकिन दवा गुणवत्ता की जांच तो दूर लेकिन समय पर रिपोर्ट नहीं आने के कारण जो सैंपल उठाए गए थे वह भी रखे रखे एक्सपायर हो गए। एक्सपायर हुई दबाव में पेन किलर, खरीश खासी की दवाएं सबसे ज्यादा है।
प्रदेश सरकार के पास कई बार यह मामला प्रकाश में लाया गया है लेकिन अभी तक सरकार इसकी सुध नहीं ले पा रही है कि आखिर फिर उन दवा के सैंपल लिए ही क्यों जा रहे हैं जब उसकी रिपोर्ट समय पर नहीं आ पाती है और दवाएं बिना जांच के ही एक्सपायर हो जाती है।
ऐसा शिमला में ही नहीं बल्कि अन्य जिलों में भी देखने में आ रहा है
दवा सैंपल रिपोर्ट आने से पहले ही हिमाचल में लाखों की दवाएं एक्सपायर्ड हो रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हिमाचल के सभी जिलों से जो भी दवा सैंपल जांच के लिए लैब भेजे जा रहे हैं उसकी रिपोर्ट आने में 5 से 6 माह तक लग रहे हैं लिहाजा यह हो रहा है कि जिस भी सैंपल
को लैब जांच के लिए भेजा जा रहा है। उसकी एक और कॉपी सैंपल भी लिया जाता है। यही नहीं बल्कि कई दवा के बैच को भी इस्तेमाल पर तब तक रोक लगा दी जाती है। जब तक उसकी रिपोर्ट न आ जाए। अब हिमाचल में दवा सैंपल की जांच इतनी ढीली है कि जिले में कई दवाएं इस बीच एक्सपायर्ड हो रही है।
गौर हो कि हिमाचल में समय पर दवा जांच रिपोर्ट नहीं मिल पा रही है। हिमाचल की ही नहीं बल्कि हिमाचल से बाहर भेजे जाने सैंपल की रिपोर्ट भी काफी लंबित हो रही है।
ऐसा ही एक मामला आईजीएमसी का भी सामने आया है जिसमें इंजेक्शन से इंफेक्शन होने के कुछ सैंपल पहले पुणे लैब को भेजा गया उसके बाद वहां से रिपोर्ट नहीं आई और सैंपल वापिस शिमला को भेज दिया गया था ,उसके बाद उस सैंपल को दोबारा कोलकाता भेजा गया है लेकिन अभी तक वहां से भी रिपोर्ट नहीं आ पाई है।
इससे बड़ी हैरानी की बात क्या हो सकती है कि 100 दिन से ज्यादा समय हो जाता है लेकिन हिमाचल में दवा जांच रिपोर्ट भी समय पर नहीं मिल पाती है। बताया जा रहा है कि आईजीएमसी में उक्त इंजेक्शन से इंफेक्शन होने की शिकायत की गई थी लेकिन इस गंभीरता पर आगामी कदम भले ही दवा निरीक्षकों के तहत छापेमारी को लेकर उठाया गया लेकिन इससे बड़ी दयनीय दशा क्या हो सकती है कि अभी तक जांच रिपोर्ट नहीं आ पाई है।
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क्या कर रही सरकार
अब सवाल यह उठा रहा है कि आखिर सरकार यह क्या कर रही है कि समय पर जांच रिपोर्ट ही नहीं आ पा रही है कंडाघाट लैब को अपग्रेड नहीं किया गया है वहां पर स्टाफ भी अधूरा है।
दवा गुणवत्ता
स्वास्थ्य में काफी अहम किरदार दवा उठता है , जिसमें यदि दवा गुणवत्ता युक्त नहीं हुई तो मरीज स्वस्थ नहीं हो सकता है लेकिन उसकी जांच समय पर करना भी आवश्यक रहता है लेकिन हिमाचल में ऐसा नहीं है और जो भी सैंपल केमिस्ट और सरकारी सप्लाई से उठाए जाते हैं उसकी रिपोर्ट बहुत ही लंबे समय बाद आ रही है। जिसमें 5 से 6 माह तक जांच रिपोर्ट आने में लग रहे हैं।
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15 दिन में आनी चाहिए रिपोर्ट
हिमाचल तो वह डेकोरम भी पूरा नहीं कर पा रहा है कि यह समय मैं रिपोर्ट आ जाए और उस पर कार्रवाई हो पाए। दवा इस्तेमाल हो कर मरीजों द्वारा निगल भी जाती है और 15 दिन नहीं बल्कि 100 से 200 दिन ऊपर हो जाता है और दवा की जांच रिपोर्ट नहीं आ पाती है।
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फिर दवा निरीक्षक का समय पर छापेमारी का क्या फायदा
हिमाचल में दवा निरीक्षकों को समय पर दवा गुणवत्ता की जांच के लिए छापेमारी के निर्देश दिए जाते हैं लेकिन उस छापेमारी का कोई भी औचित्य नहीं जब समय पर जांच रिपोर्ट ही ना आ पाए
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अधूरी व्यवस्था
कंडाघाट लैब के अलावा प्रदेश सरकार के तहत एक और लैब का निर्माण भी किया जा रहा है लेकिन आखिर वह कब सक्रिय हो पाएगी अब इस पर सवाल उठता नजर आ रहा है



