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असर विशेष : क्या आप मिलना चाहेंगे ,हिमाचल की वादियों को बचाने वाले इंवायरमेंट वारियर्स से….

कोविड काल में भी निभा रहे विशेष भूमिका

पर्यावरण बचाव को लेकर एक तरफ जहां आम जन को भी जागरूक होना जरूरी है लेकिन इस बीच इंवायरमेंट वारियर का भी सतर्कता से काम करना जरूरी है। इसे लेकर हिमाचल में काम कर रहे उन इंवायरमेंटल वारियर को सामने लाने की कोशिश की गई है कि जो पर्यावरण बचाव को लेकर अपना काम कर रहे हैं। भले ही

इनका स्तर काफी विस्तारित न हो लेकिन आजकल के समय में इस तरह के warriors का होना बहुत ही ज्यादा आवश्यक है

इसमें से एक है ग्रीन मैन एवं प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण विद किशन ठाकुर और लाहौल की नन्ही बेटी पर्यावरणविद कल्पना ठाकुर प्रेस क्लब ऑफ कुल्लू की ब्रांड एंबेसडर 5400m सियाचिन ग्लेशियर के चढ़ाई चढ़ते वहां सफाई करने जा रही है। अभी तक किसी भी environment warrior ने ऐसा कदम नहीं उठाया है।

बातचीत के दौरान किशन ठाकुर ने बताया कि इस दल का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण व बेटी बचाओ का संदेश एवं ग्लेशियर को बचाने का संदेश लोगों तक पहुंचाना है।

पेड़ों को भाई मानकर 13 साल से राखी बांध रही है कल्पना।कल्पना ना केवल पेड़ की देखभाल करती है बल्कि उन्हें हर साल राखी भी बांधती है इसके साथ ही वे दूसरों को भी पर्यावरण और पेड़ पौधे लगाने के लिए जागरूक करती हैं। लाहौल के मूलिंग गांव की रहने वाली कल्पना पिछले 13 वर्षों से इस अनूठी परंपरा को निभा रही है। साथ ही उनके पिता किशन ठाकुर भी पिछले 35 वर्षों से पर्यावरण के लिए कार्य कर रहे हैं।लाल ने बताया कि कल्पना महज 3 साल की उम्र से देवदार के पेड़ों को अपना भाई मानते आ रही है और उन्हें राखी बांधे आ रही है। जिसमें उसने सैकड़ों पौधों को राखी बांधी है , और उसकी देखभाल भी कर रही ही। कल्पना का कहना है की सभी को ये आसान बात लग रही है कोई लड़की पौधों को राखी बांधती है। लेकिन आज के इस समय में युवा वर्ग की इस ओर जरा भी दिलचस्पी नहीं  दिखाते है। बड़े स्तर पर कई प्रोजेक्ट तो चलाए जाते हैं कई वैज्ञानिक भी शुद्ध करते हैं लेकिन आधार स्तर पर इस तरह के एनवायरनमेंट वॉरियर्स का होना बहुत ही ज्यादा आवश्यक है। इसे लेकर कोशिश की गई है कि एनवायरमेंट warriors को सामने लाया जाए जो लोगों को भले ही छोटे स्तर पर लेकिन बड़ा  संदेश दे रहे हैं कल्पना का कहना है कि

एक पौधे का भी संरक्षण सभी के लिए बड़ी बात होनी चाहिए।

कल्पना को वर्ष 2011 में वन्य प्राणी सुरक्षा संस्थान की ओर से ट्री ऑफ लाइफ अवार्ड दिया गया है। हिमाचल पर्यावरण एवं वन्य प्राणी संस्थान की ओर से  वृक्ष मित्र ,स्कूल की ओर से एप्रिसिएशन अवार्ड ,  प्रेस क्लब कुल्लू , ओर से पर्यावरण प्रेस क्लब कुल्लू की ओर से पर्यावरण मित्र अवार्ड, प्रेस क्लब कुल्लू की ओर से पर्यावरण मित्र अवार्ड , भारत सरकार वन मंत्रालय एवं पर्यावरण की ओर  ग्रीनभारत सरकार  की ओर से ग्रीन ब्रांड एंबेसडरभारत सरकार वन मंत्रालय एवं पर्यावरण की ओर से ग्रीन ब्रांड एंबेसडर भारत का खिताब दिया गया है।

इनसे भी मिलिए……..

पतों से पत्तल बना कर प्रदूषण को कम करने वाले एनवारमेंटल वारियर्स

 

पत्तल में भोजन करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। किसी भी प्रकार के शुभ कार्य जैसे शादी, पूजा-पाठ या किसी भी प्रकार के मंगल कार्य हो सभी में पत्तल पर भोजन करना ही शुभ माना जाता है। पहले लोग पत्तों से बनी पत्तल में भोजन किया करते थे,लेकिन समय के साथ-साथ लोग अब प्लास्टिक से बनी पत्तल में भोजन करते हैं। जिन्हे डिस्पोजल कहा जाता है।

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इस विषय में हमारी बात हरीराम से हुई।जो की अर्की तहसील के पंचायत हनुमान-बडोग,गांव रणोह के रहने वाले हैं। जो पत्तों से बनी पत्तल बनाने का कार्य करते हैं।उनका कहना है कि बदलते समय के साथ ऐसा लगता है कि लोगों को पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से शर्म आती है। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।

सभी को वह जागरूक करते हे कि पत्तल का इस्तेमाल करें। इससे प्रदूषण का स्तर गिरेगा। वह हर शादी में कोशिश कर रहे हैं कि लोग इन पतलों का इस्तेमाल करें। उनका कहना है कि पत्तल में भोजन करना जितना सेहतमंद है डिस्पोजल में भोजन करना उतना ही नुकसानदायक है। हर विवाह में वह ये बताते है।

उनके परिवार में सभी लोग ये कार्य कर लेते है।

 

हरीराम का कहना है की वह शादियों में  भी बताते है कि पत्तों की पत्तल बनाने में काफी मेहनत लगती है।उनका कहना है कि प्लास्टिक से बनी पत्तलो को जलाने से वायु में प्रदूषित हो रही है तथा जो हमारी मिट्टी नदियों तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है यदि इन पत्तलो को कोई जानवर या पशु खा ले तो वे भी बिमार हो सकते हैं। लेकिन पत्तों से बनी पत्तल से किसी को भी किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा। उनका कहना है कि कोरोना महामारी के चलते उम्मीद है कि  अब लोग अब दोबारा पतो से बनी पत्तल में ही भोजन करना शुरू कर 

इस युवा वारियर का क्या कहना……इनसे भी मिलिए

कोविड में इंवायरमेंट वारियर्स का सतर्क होना जरूरी

 

देश में बढ़ रही ऑक्सीजन की कमी ,  पेड़ों को ज्यादा लगाने की है आवश्यकता…..

देश में कोरोना वायरस संक्रमण के कारण अस्‍पतालों में बेड से लेकर ऑक्‍सीजन तक की कमी को लेकर गंभीर संकट की स्थिति बनी हुई है। इसके चलते लोगों के मन में ऑक्सीजन के प्रति भय की स्थिति पैदा हो गई है।

यह तो सभी लोगों को पता होता है कि पेड़ों से हमें ऑक्सीजन प्राप्त होती है लेकिन कौन कौन से पेड़ है जिनसे हमें अधिक मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त होती है इस बात से अधिकतर लोग अज्ञात हैं।वन विभाग के मुताबिक बड़, शीशम, पीपल व आम इन पेड़ों से सबसे ज्यादा ऑक्सीजन प्राप्त होती है ऑक्सीजन बनाने का काम पेड़ की पत्तियां करती हैं जो एक घंटे में पांच मिलीलीटर ऑक्सीजन बनाते हैं। इसलिए जिस पेड़ में ज्यादा पत्तियां होती हैं वो पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन बनाता है।

इस विषय में हमारी बात पूर्णिमा गुप्ता से हुई जो कि गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज दाडलाघाट के NSS (National Service Scheme ) की लीडर हैं। उनका कहना है कि उन्होंने इस कैंप के जरिए पर्यावरण से संबंधित कई कार्य किए हैं जिसमें इन्होंने पेड़ लगाने को सबसे ज्यादा महत्व दिया है। इनका कहना है कि कॉलेज में एनएसएस कैंप के दौरान इन्होंने काफी अधिक मात्रा में पेड़ पौधे लगाए हैं इसके अलावा इन्होंने कॉलेज के परिसर ने सफाई की।

लॉकडाउन के चलते कॉलेज बंद होने के बाद भी इन्होंने यह कार्य बंद नहीं किया इन्होंने अपने घर के आस-पास पेड़ पौधे लगाए और ज्यादातर जड़ी बूटियों तथा ज्यादा ऑक्सीजन प्राप्त करने वाले पेड़ पौधे लगाएं। इनका कहना है कि देश के लिए इस मुश्किल घड़ी में अगर कुछ भी ना कर सके तो कम से कम अपने घरों के आसपास दो-दो ऐसे पेड़ लगाएं जिन पेड़ों से ज्यादा ऑक्सीजन प्राप्त होती है कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी होने पर देश के लिए यह चीज सबसे जरूरी है।

 

 

 

Deepika Sharma

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