पर्यावरण

खास खबर:उपग्रह देते हैं जंगल की आग और संभावित खतरों की सूचना

उमंग के वेबिनार में सीसीएफ अनिल शर्मा ने कहा   ;    उपग्रह देते हैं जंगल की आग और संभावित खतरों की सूचना

 

अंतरिक्ष में तैनात 2 उपग्रह जंगल की आग की सूचना तुरंत वन विभाग तक पंहुचाते हैं। इसके अलावा वन-अग्नि पोर्टल पर डेंजर रेटिंग सिस्टम हर हफ्ते बताता है कि आग के खतरे वाले स्थान कौन से हैं। जंगलों को आग से बचाने के लिए वन विभाग बहुआयामी प्रयास करता है जिससे बेहतर परिणाम मिलते हैं। इसके अलावा विभाग के कर्मचारी, अधिकारी और ग्रामीण अपनी जान पर खेलकर आग पर काबू पाने की कोशिश करते हैं। प्रदेश के 26 फॉरेस्ट डिवीजनों में आग का खतरा सबसे ज्यादा है।

 

उमंग फाउंडेशन के वेबिनार में यह जानकारी भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी अनिल कुमार शर्मा ने दी। वह हिमाचल के मुख्य अरण्यपाल (वन संरक्षण एवं अग्नि नियंत्रण) के साथ ही बिलासपुर के सीसीएफ भी हैं। वह “आग से वनों की सुरक्षा एवं सामाजिक दायित्व” विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने बताया कि देश का 36% वन क्षेत्र आग के खतरे की जद में रहता है। 

 

कार्यक्रम के संयोजक, साहित्कार एवं सामाजिक

 

कार्यकर्ता नरेश देओग के अनुसार आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में मानवाधिकार जागरूकता मुहिम के अंतर्गत उमंग फाउंडेशन का यह 32 वां वेबीनार था। फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि वनों को बचाने की मुहिम से युवाओं को जोड़ना आवश्यक है क्योंकि यह मनुष्य के अस्तित्व से जुड़ा है।

 

अनिल कुमार शर्मा ने बताया कि जंगल में आग आसमानी बिजली से लगने के अलावा अनजाने में अथवा कुछ स्वार्थी लोगों द्वारा जानबूझकर लगाई जाती है। आग भड़कना इस बात पर निर्भर करता है कि जंगल कौन सा है, पहाड़ी ढलान कैसी है और मौसम क्या है। गर्मियों की तुलना में सर्दी के मौसम में आग कम नुकसान करती है। 

WhatsApp Image 2025-08-08 at 2.49.37 PM

 

उन्होंने कहा कि कभी-कभी की तुलना में बार-बार एक ही स्थान पर लगने वाली आग अधिक हानिकारक होती है। उससे मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और वनों की प्रकृति बदल जाती है। पशु-पक्षी, सांप एवं अन्य कीड़े मकोड़े बुरी तरह प्रभावित होते हैं। वहां परंपरागत वृक्षों की जगह दूसरी प्रजाति के वृक्ष उगने लगते हैं।

 

सीसीएफ ने बताया की भीषण आग से धरती की नमी खत्म हो जाती है और मिट्टी शुष्क होने से पेड़ पौधे जोखिम में आ जाते हैं। ऋतु चक्र बदल जाता है और आग वाले क्षेत्रों में बारिश भी कम हो जाती है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से भीषण और लंबे समय तक रहने वाली आग का खतरा बढ़ जाता है।

 

उन्होंने कहा कि वनों को आग से बचाने के लिए विभाग स्थानीय लोगों को जागरूक करता है। प्रदेश में लगभग 10 हज़ार वॉलिंटियर्स का पंजीकरण किया गया है जिन्हें देहरादून का फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया मुकेश से आग की सूचना मिलते ही सीधे मैसेज भेजता है। यह जानकारी अंतरिक्ष में तैनात दो उपग्रहों से मिलती है। 

 

एक उपग्रह लगभग एक किलोमीटर के दायरे की आग की जानकारी देता है तो दूसरा उच्च शक्ति का उपग्रह 375 मीटर परिधि तक की आग का पता बता देता है।

 

उपग्रह वनों का अध्ययन करके उन खतरे वाले स्थानों की जानकारी भी देता है जहां का तापमान अधिक हो और ज्वलनशील सामग्री का एकत्रीकरण हो।

 

अनिल कुमार शर्मा ने कहा कि चीड़ की ज्वलनशील पत्तियों के वैकल्पिक उपयोग और वैज्ञानिक प्रबंधन के प्रयास भी किए जा रहे हैं। उनसे शो-पीस एवं अन्य उपयोगी सामग्री को प्रोत्साहन दिया जाता है। इसके अतिरिक्त चीड़ की पत्तियां एकत्र कर सीमेंट फैक्ट्री में ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कुछ स्थानों पर उनसे कोयला भी बनाया जाता है। 

 

कार्यक्रम के संचालन में प्रदेश विश्वविद्यालय के पीएचडी के विद्यार्थियों अभिषेक भागड़ा और मुकेश कुमार के अलावा उदय वर्मा एवं संजीव कुमार शर्मा ने भी सहयोग दिया।

 

Deepika Sharma

Related Articles

Back to top button
Close