

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
लक्ष्मण की माता सुमित्रा रामायण का एक ऐसा पात्र है, जिसके बारे में बहुत कम लिखा गया है, लेकिन उस मां का दुःख और वेदना कौशल्या से कम नहीं है उसका अपना पुत्र भी वन में जा रहा है जबकि लक्ष्मण को तो वन में जाने के लिए तो कोई आज्ञा नहीं दी गयी थी? लक्ष्मण के ऊपर तो कैकेयी के कोई वरदान भी लागू नहीं होते थे, राजा दशरथ ने उसे किसी प्रकार का ऐसा आदेश भी नहीं दिया था। लेकिन लक्ष्मण ने श्रीराम के साथ वन में जाने का मन बना लिया और अपना निर्णय भी सुना दिया। उसने अपनी माता से न कोई बात की और न ही आगा माँगी।
उसने तो अपने भाई के प्रति अपने स्नेह, प्यार व आदर को सामने रखा. सुमित्रा बेचारी ऐसे में क्या करे?वह तो एक मूक दर्शक की तरह घटना क्रम को सिर्फ देख रही थी और उसके दिल पर क्या बीत रही था, ये वो ही जाने।
इसमें शक नहीं है कि सुमित्रा इस बात को जानती थी कि लक्ष्मण का श्रीराम के प्रति प्यार व स्नेह असीम है, लक्ष्मण श्री राम से अलग हो कर एक क्षण भी नहीं रह सकते। इसलिए भी उसे लक्ष्मण के वन में जाने पर कोई आपत्ती नहीं थी। वो इस बात को भली भांति जानती थी कि चौदह वर्ष का समय बहुत लम्बा समय है और अगर लक्ष्मण श्रीराम के साथ जाये तो उनकी रक्षा व सुरक्षा की दृष्टि से यह उचित ही ठहरेगा। इसलिए उर्मिला लक्ष्मण के वन में जाने के प्रस्ताव का तुरंत अनुमोदन कर देती है लेकिन अपने दिल पर पत्थर रख कर। लेकिन क्या उस माता के मन में अपने पुत्र से बिछुड़ने का कोइ दुःख नहीं है? मन ही मन में पुत्र विछोह का दर्द सहते हुए भी मानसिक रूप से सुमित्रा इतनी मज़बूत है कि न सिर्फ अपना दुःख को काबू में करती है, बल्कि कौशल्या को भी ढाढस बांधती है। उसे मालूम है कि ऐसे समय में अगर उस ने कौशल्या को ढाढस नहीं बंधाया तो उसे कौन सहारा देगा? वाल्मीकि रामायण में इसका चित्रण इस तरह से किया गया है।

(अयोध्याकाण्ड सर्ग ५४, शलोक २,३-४,५,६,७,१३,१४,२५
सुमित्रा कह रही है, ए नेक औरत, आपका पुत्र नेक गुणों से भरपूर है और सभी पुरुषों में महान है। आपके इस तरह से शोकग्रस्त हो कर विलाप करने से क्या हासिल हो पायेगा? आपका नेक पुत्र श्रीराम, जोकि अत्यन्त शक्तिवान है और जिसने राज गद्दी का त्याग कर वन की ओर प्रस्थान कर दिया है, ऐसा करके उसने अपने उच्च कुल के पिता को सच्चा साबित कर दिया है। वह नेकी के उस रास्ते पर चलने के लिए कटिबद्ध है, जिसे सुसंकृत लोगों नें हमेशा सही माना है और जिस पर चलने से उस लोक में इसका फल मिलता है.इसलिए इस बात पर किसी तरह का क्षोभ करने की आवश्यकता नहीं है। निष्पाप लक्ष्मण, जो कि सभी जीवों के लिए बहुत सहानुभूति रखता है, सदैव ही श्रीराम की सेवा के लिए तत्पर है। इससे महान आत्मा राजकुमार का फायदा ही है। विदेह राज्य के शासक की पुत्री, जोकि समस्त सुखों की हक़दार है, तुम्हारे पवित्र ह्रदय वाले पुत्र के साथ जा रही है, हालाँकि उसे यह भली भांति मालूम है कि वन में किस तरह के दुःख हैं। ऐसा कौन सा आशीर्वाद तुम्हारे पुत्र के सर पर नहीं है, जो कि अत्यंत नेक भी है और जिसने सच्चाई के रास्ते पर चलने की प्रतिज्ञा भी की हुयी है और जिसकी प्रसिधी का झंडा चारों ओर लहराता है। यह धरती श्रीराम की आज्ञा की अवहेलना कैसे कर सकती है जिसके नुकीले वाणों से शत्रु आसानी से धराशायी हो जाते हैं? श्रीराम का भव्य व्यक्तित्व और उनका पराक्रम, जोकि उनमें कुदरती तौर पर समाया हुआ है, हर किसी को यह ही विश्वास दिलाते हैं कि उनका वन का समय जल्द ही समाप्त हो जाएगा और वे अपनी गद्दी संभाल लेंगे। यहाँ के सभी लोग जो कि श्रीराम से बिछुड़ने के दुःख में डूबे हुए हैं, उन्हें आपकी सांत्वना की आवश्यकता है। हे निष्पाप, आप इस समय अपने ह्रदय में इतना विषाद क्यों रखे हुए हो?




