

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
एक योद्धा में क्या विशेषताएं होनी चाहिए, इन सब के बारे में श्रीराम ने अनेकों बार समझाया जिसका वर्णन अलग अलग प्रसंगों में वाल्मीकि रामायण में किया गया है। इनमे एक उदाहरण हमें उस समय मिलता है जब विभीषण रावण का राज्य त्याग कर, श्रीराम की शरण में उनके पास आये।

लक्ष्मण, सुग्रीव तथा अन्य प्रमुख वानरों ने अपना विचार प्रकट किया कि श्रीराम को विभीक्षण की प्रार्थना अस्वीकार कर देनी चाहिय क्योंकि उनको आशंका थी कि समय आने पर विभाक्ष्ण का उनके साथ रहना उचित नहीं होगा क्योंकि आखिरकार वो है तो श्रीराम के शत्रु रावण का भाई। उन्होंने कहा कि उनको विभीक्षण पर तनिक भी भरोसा नहीं है। लेकिन श्रीराम ने उनके तर्कों व आशंकों को नहीं माना और एक योद्धा की क्या विशेषताएं होती है, इसके बारे में उनको विस्तार से समझाया, जिसका उल्लेख युध्कांड के १८वें सर्ग के २७-३१ व ३३वे श्लोकों में किया गया है।

श्रीराम कहते हैं कि मानवता की खातिर कभी भी ऐसे शत्रु पर प्रहार नहीं करना चाहिए जो आपके द्वार पर आकर अपने दोनों हाथ जोड़ कर आपसे रक्षा की दुहाई लगा रहा हो। अगर आपका शत्रु अपने किन्हीं शत्रुओं से बचने की खातिर आपके पास अपनी जान की रक्षा मांगने आये और वो कितना भी गर्वीला क्यों न हो, उसकी रक्षा अपने प्राणों की बाज़ी लगा कर भी करनी चाहिए जिसने अपने मन पर काबू किया हो।

अगर कोई व्यक्ति भय अथवा गलती की वज़ह से अथवा किसी लाभ लेने की आशा से किसी शरण में आये हुए की रक्षा नहीं करता जब कि ऐसा करना उसके बस में हो, तो ऐसा पाप समस्त विश्व में निंदनीय होता है। साथ ही, अगर शरण में आये शरणार्थी को सुरक्षा न मिल सके, और रक्षक की आँखों के सामने ही वो समाप्त हो जाए तो ऐसे में शरणार्थी का कद बड़ा माना जाता है और शरणार्थी की सुरक्षा न कर पाने पर रक्षक पाप का भागी माना जाता है, रक्षक के लिय स्वर्ग के द्वार बंद हो जाते है, जग में उसकी घोर बदनामी होती है और उसकी शक्ति व हिम्मत भी समाप्ति की ओर चल पडती है। इसलिय, मैं सभी जीवित मानवों की पूर्ण सुरक्षा हेतु प्रतिबद्ध हूँ जो मेरे पास आकर ऐसा कहें कि वो मेरे हैं और मेरी सुरक्षा की दुहाई लगा रहे हों।
● रावण वध और श्रीराम
जब श्रीराम ने रावण का वध कर दिया और उसका म्रत शरीर युद्धभूमि में पड़ा हुया था, तो उसे देख कर विभीक्षण का मन अत्यंत उदास हो गया और वो अपने भाई का स्मरण कर के अत्यंत दुखी हो गया। उस समय श्रीराम ने उसको सांत्व्न्ना दी और उसे अच्छी तरह से समझाया। उन्होंने रावण के योधा के रूप के बारे में जो भी कहा उसका वर्णन वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड के सर्ग १०९ के शलोक १४- १९ में इस प्रकार किया गया है। श्रीराम कहते हैं कि रावण इस लिय नहीं मारा गया कि उसमें किसी प्रकार की कमी थी। उसको स्वंय पर अत्यधिक विशवास था, उसमे असीम शक्तियाँ थी और वो अंत तक निर्भीक रहा।
यह ही एक योधा की खूबी होती है। ऐसे शूरवीर जो कि विजय प्राप्ति हेतु अपनी जान की बाज़ी लगा देते हैं व अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिय पूरी हिम्मत व साहस से युद्ध लड़ते हैं, ऐसे वीरों के वीरगति प्राप्त होने पर शोक मनाना उचित नहीं होता। रावण, जिसने तीनों लोक (पृथ्वी,आकाश व पाताल ) तथा इंद्र को अपने आधीन कर रखा था, जो कि स्वंय बहुत ही बुद्धिमान व विद्वान था, उसके मरने पर शोक नहीं मनाना चाहिए। इस संसार में कभी भी कोई भी सदैव के लिय नहीं रहता। एक हीरो या तो अपने दुश्मनों के हाथों मारा जाता है या वो अपने दुश्मनों का सफाया कर देता है। महान वीरों के भाग्य मे ऐसा ही लिखा होता है। जो वीर युद्ध में लड़ते हुए मारा जाए, उसकी मरने पर शोक नहीं मनाना चाहिए,ऐसा शास्त्रों में बताया हुआ है। उनके भाग्य में ऐसा ही लिखा गया होता है। इसलिय, इन बातों को समझते हुए, धर्म के मार्ग पर चलते हुए व शोक पर काबू पा कर,अब अपने अगले कर्तव्य की पालना करनी चाहिए।
विभीषण का मन तब भी नहीं मानता और रावण की अन्तिम क्रिया करने को उसका मन नहीं होता, उसे लगता है कि रावण बेशक उसका भाई था, लेकिन वो एक क्रूर, निर्दयी और मक्कार इंसान था। वो रावण को अपना शत्रु समझता है और श्रीराम को अपने मन में आये ऐसे विचार भी बताता है कि क्यों उसके मन में रावण के प्रति किसी प्रकार का आदर, सम्मान और स्नेह नहीं है। ऐसे में श्रीराम फिर से उसे समझाते है, जिसका उल्लेख युध्कांड के सर्ग १११ के शलोक ९६-१००वे में मिलता है।

श्रीराम कहते हैं कि अब जबकि हमने साथ मिल कर युद्ध में विजय प्राप्त कर ली है, तो ऐसे में हमें अब नेक कार्य करना है। जहां तक तुम्हारा मन में जो चल रहा है और तुम्हें क्या करना है तो सुनो। माना कि धरती पर मरा पड़ा निशाचर अधर्म व धोखे का पुतला था, लेकिन यह भी मानना होगा कि वो अत्यंत वीर, शक्तिशाली व युद्ध कौशल में अत्यंत निपुण था। इंद्र जैसे देवता जिसे अमरत्व प्राप्त था तथा ऐसे अनेकों अन्य देवताओं से भी वो कभी पराजित नहीं हुया था। निसंदेह
वो अत्याचारी था, लेकिन वो रौबीला व व ताकतवर भी था। मृत्यु होते ही समस्त शत्रुता भी समाप्त हो जाती है। हमने अपना कार्य भी सिद्ध कर लिया है। इसलिय अब बिना विलम्ब किय उसका अन्तिक संस्कार करना होगा वो भी पूरी विधि अनुसार। इससे आपके यश व कीर्ति में वृद्धि होगी।


