पर्यावरण

असर विशेष : बदल रही शिमला की वादियां…..

बिगड़ रहा है मौसम और बर्फबारी का ग्राफ ,मौसम बदलाव पर मौसम विभाग के निदेशक से जानें कई तथ्य

 

 

कभी ब्रिटिशरस की समर कैपिटल का दर्जा लिए बैठा शिमला अब अपना  पुराना दर्जा खोने लगा है। या यूं भी कह सकते हैं कि हिमाचल की राजधानी शिमला की वादियां अब बदलने लगी है। जानकारी के मुताबिक शिमला में बर्फबारी और बारिश का ग्राफ बिगड़ने लगा है। जिसमें कभी तो बहुत ज्यादा बारिश दर्ज की जाती है या काफी कम बारिश दर्ज हो रही है। इस बारे में मौसम विभाग के विशेषज्ञ और निदेशक डॉ मनमोहन से असर न्यूज़ ने खास बातचीत की ।

उन्होंने बताया कि शिमला में मौसम के बदलने का मुख्य कारण ग्लोबल वॉर्मिंग है। इसमें जिसमें कई कारणों  में से इसका एक कारण शिमला में

क्लोरा फ्लोरा कार्बन भी देखा गया है। जिसमें ग्रीनरी का कम होना भी देखा गया है। शिमला में काफी घर बन रहे है।हिमाचल की राजधानी में जनसंख्या का बढ़ना भी देखा जा रहा है। काफी डैम, सड़कें, बनी है। भले ही ये सुविधाएं है लेकिन इसका असर ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में हो रहा है। यही नहीं शिमला में मौसम के बदलते रुख में हिमाचल का पर्यटन भी देखा जा रहा है। जिसमें ये देखा जा रहा है कि कैपेसिटी के हिसाब से बहुत ही ज्यादा  पर्यटक आ रहे है। जिसका असर शिमला के मौसम पर पड़ रहा है।

इस तरह बिगड़ रहा बर्फबारी का ग्राफ

इस तरह बिगड़ रहा बारिश  ग्राफ

इन आंकड़ों को देखकर साफ कहा जा सकता है कि शिमला में अब बारिश और बर्फबारी का ग्राफ काफी बिगड़ने लगा है जिसमें या तो बहुत ज्यादा बारिश होती है या बहुत कम लेकिन वर्ष के अंत में कैलकुलेट किया जाए तो बारिश का ग्राफ शिमला में बहुत ही कम रहता है वहीं  बर्फबारी में भी ऐसा ही देखा गया है।

ये कह रहे शिमला वासी…..क्या पड रहा प्रभाव

 हिमाचल प्रदेश सेब के बागबान जलवायु परिवर्तन का शिकार हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण बागवानी को करना पड़ रहा भारी दिक्कतों का सामना।

हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन की वजह से सेब की खेती पर पड़ रहा बुरा असर। राज्य के ऊपरी इलाकों में बर्फबारी कम होने के कारण सेब की फसल पर पड़ रहा है बुरा असर। हिमाचल प्रदेश के ननखडी गांव भरमेणा के रहने वाले रमेश महेता ने बताया कि कैसे दिवाली आसपास हर साल उनका परिवारअपने खेतों में बेहतरीन सेब चेन्ने और उन्हें पैक करने में व्यस्त रहता था।मौसम में आए बदलावों के कारण सर्दियां कम हो रही है और सेब के स्वाद में भी बदलाव आ रहा है। गर्मियों में मौसम ज्यादा गरम हो रहा है और सर्दियों में बर्फबारी कम हो गई है।बारिश और बर्फ की कमी के कारण सेब के पौधों का बचे रहना मुश्किल हो गया है यही नहीं इसकी वजह से से भी छोटे होने लगे हैं जिससे बागवानों को मार्केट में इसका उचित दाम नहीं मिल पा रहा है।


बागवानों का पूरा साल सेब की आय पर निर्भर करता है। पिछले साल ओला वृष्टि होने के कारण पेड़ों को भारी नुकसान हुआ इस साल भी फसल बहुत कम है।

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शिमला में बदलाव बना शिमलावासियों की परेशानियों का कारण….पानी कम, जानवरों का भी खतरा

राजधानी शिमला में आए दिन कुछ ना कुछ बदलाव आते रहते हैं। इन्हीं बदलाव के कारण शिमला वासियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जिसकी जानकारी हमें शिमला में 15 वर्ष से रह रहे धर्म प्रकाश ने दी।

उनका कहना है कि शिमला से पानी की समस्या सबसे अहम समस्या है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी पानी वैसे-वैसे अपनी रफ्तार धीमी करेगा। शिमला में पानी की समस्या कोई नई समस्या नहीं है, यह समस्या बहुत पुरानी है।

उनका कहना है कि पर्यावरण में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ चुका है कि खुले में सांस लेना भी मुश्किल हो गया है।जिसकी वजह से सांस से संबंधित बीमारियों का शिकार होना पड़ता है।

शिमला में जानवरों का मातम भी दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। यहां बंदरो तथा आवारा कुत्तों से बहुत खतरा रहता है। आए दिन कोई न कोई व्यक्ति उनका शिकार बनता है। उन्होंने इन सभी समस्याओं का कारण केवल मौसम की अस्थिरता को बताया है। उनका कहना है कि जब बारिश अपने समय पर नहीं होगी तो पानी कमी होना लाजमी है। यदि मौसम में स्थिरता नहीं हुई तो मानव का जन-जीवन समाप्त होने में देरी नहीं होगी।

मौसम में आए बदलाव की वजह से किसानों को हुआ नुकसान , उगाई हुई सब्जियां भी फैंकनी पड़ी….

मौसम में बदलाव के कारण लोगो को काफी दिकतो का सामना करना पड़ रहा है। बारिश ना होने के कारण लोगों की फसलें खराब हो गई है। जिला शिमला,तहसील ठीयोग, गाँव मानला के रहने वाले व्यक्ति खेम चंद जो की एक किसान है

 

 

, उन्होंने बताया कि पहले जब बारिश और बर्फबारी समय-समय पर होती थी तो फसलें भी अच्छी होती थी। उनके अनुसार मौसम में बदलाव प्रदूषण की वजह से आया है। जिसकी वजह से बारिश और बर्फबारी समय पर नहीं होती। जिसके कारण उनकी जमीन नमीहीन हो गई है और उसमें रूखापन आ गया है। अगर वे फसल लगा भी देते हैं तो पर्याप्त पानी फसलों को नहीं मिल पाता, और उन्हें फसलें उगाने के बाद उसका प्राप्त मूल्य भी नहीं मिलता।

उन्होंने बताया कि उन्होंने गोभी की फसल उगाई थी, पानी की कमी की वजह से फसल ज्यादा अच्छी नहीं हुई लेकिन जो भी हुई उसका ना उन्हें पर्याप्त मूल्य मिल पाया और ना ही वो बिक पाई, जिसके कारण उनकी फसल सड़ गई और उन्हें आधे से ज्यादा गोभी फैंकोनी पड़ी। उन्होंने कहां की अप्रैल में भी इतनी ज्यादा ठंड होने के कारण उनकी गर्मी में उगने वाली फसलों को भी काफी नुकसान होगा । ना ही वह अच्छे से उठ पाएगी।

उन्होंने यह भी बताया कि पशुओं के लिए भी पर्याप्त घास ना होने के कारण लोगों को मजबूरन उन्हें आवारा छोड़ना पडा। और यह आवारा पशु भी उनकी फसलों को नष्ट कर रहे हैं। जानवर भी उनके गांव में आवारा घूम रहे हैं क्योंकि उन्हें भी जंगलों में खाने के लिए कुछ नहीं है। मौसम के बदलाव की वजह से लोगों की आजीविका पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है।

 

 

 

 

Deepika Sharma

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