काट-छाँट कर सच बेचने का धंधा
सोशल मीडिया पर भ्रामक वीडियो क्लिप्स, मीडिया की गिरती विश्वसनीयता और समाज पर पड़ता खतरनाक असर

लेख — असर मीडिया डेस्क / मीडिया विश्लेषण
✦ भूमिका: कुछ सेकंड का वीडियो और पूरी कहानी का कत्ल
वर्तमान समय में स्थानीय और राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलों द्वारा किसी घटना के पूरे वीडियो फुटेज से मात्र कुछ सेकंड का हिस्सा काटकर उसे सोशल मीडिया पर इस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है कि
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कोई अपराधी पहले ही दोषी घोषित हो जाता है
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कोई पीड़ित अचानक आरोपी बन जाता है
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और जनता न्यायालय से पहले फैसला सुना देती है
यह पत्रकारिता नहीं, बल्कि व्यूज़ और टीआरपी के लिए किया जा रहा भावनात्मक उकसाव है—जिसका अंतिम परिणाम अराजकता, नफरत और सामाजिक विभाजन होता है।
✦ कैसे गढ़ा जाता है “नरेटिव”?
1️⃣ चयनात्मक कट (Selective Editing)
पूरे वीडियो से केवल वही अंश दिखाया जाता है जो किसी एक पक्ष को दोषी या सही साबित करे।
2️⃣ भड़काऊ हेडलाइन और थंबनेल
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“सच सामने आया!”
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“देखिए असली चेहरा!”
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“यह वीडियो सबूत है!”
जबकि वीडियो अधूरा और संदर्भहीन होता है।
3️⃣ डिबेट नहीं, ड्रामा
स्टूडियो में तथ्य नहीं, आक्रोश, शोर और आरोप परोसे जाते हैं।
✦ समाज पर पड़ता नकारात्मक प्रभाव
🔻 1. भीड़ का न्याय (Mob Justice)
लोग तथ्यों की जांच से पहले ही सोशल मीडिया पर किसी को दोषी ठहराने लगते हैं।
🔻 2. सामाजिक ध्रुवीकरण
धर्म, जाति, क्षेत्र या राजनीतिक पहचान के आधार पर समाज बंटता है।
🔻 3. मीडिया से विश्वास उठना
जब सच बाद में सामने आता है, तब तक मीडिया की साख गिर चुकी होती है।
✦ दर्शकों (Viewers) पर प्रभाव
▪️ मानसिक भ्रम और आक्रोश
अधूरी जानकारी से लोगों में गुस्सा, डर और घृणा पैदा होती है।
▪️ आलोचनात्मक सोच का क्षरण
लोग देखते हैं, सोचते नहीं — और शेयर करते हैं, जांच नहीं करते।
✦ विक्टिम (पीड़ित) पर प्रभाव: सबसे खतरनाक पहलू
⚠️ 1. चरित्र हनन (Character Assassination)
अधूरी क्लिप से किसी की पूरी छवि नष्ट हो जाती है।
⚠️ 2. सामाजिक बहिष्कार
परिवार, नौकरी और समाज से बहिष्कार तक की नौबत आ जाती है।
⚠️ 3. मानसिक आघात
कई मामलों में अवसाद, आत्महत्या के विचार और जीवनभर का ट्रॉमा।
✦ क्या कानून इसे अपराध मानता है?
हाँ। भारत में इस तरह का भ्रामक प्रसारण कई कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है:
⚖️ 1. आईटी एक्ट, 2000
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झूठी या भ्रामक सूचना फैलाना
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सार्वजनिक शांति भंग करने वाली सामग्री
⚖️ 2. भारतीय दंड संहिता (IPC)
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मानहानि (Defamation)
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वैमनस्य फैलाना
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अफवाह द्वारा शांति भंग करना
⚖️ 3. केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम
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अप्रमाणित, भड़काऊ और एकपक्षीय प्रसारण प्रतिबंधित
⚖️ 4. न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग आचार संहिता
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तथ्यों की पुष्टि
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संतुलित प्रस्तुति
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ट्रायल बाय मीडिया से परहेज़
➡️ बावजूद इसके, कार्रवाई बहुत कम और देर से होती है।
✦ समस्या की जड़: टीआरपी बनाम जिम्मेदारी
आज कई चैनलों के लिए पत्रकारिता का उद्देश्य है:
“जो दिखे वही सच नहीं,
जो बिके वही सच।”
यही कारण है कि
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फेक नैरेटिव
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अधूरी क्लिप्स
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भावनात्मक उकसावे
को “ब्रेकिंग न्यूज़” बना दिया जाता है।
✦ समाधान और जागरूकता की ज़रूरत
✔️ दर्शक क्या करें?
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हर वीडियो पर तुरंत विश्वास न करें
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पूरा संदर्भ देखें
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एक से अधिक स्रोत पढ़ें
✔️ समाज की भूमिका
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ऑनलाइन ट्रोलिंग का हिस्सा न बनें
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कानून हाथ में न लें
✔️ सरकार और नियामक संस्थाएँ
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सख्त और त्वरित दंड व्यवस्था
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लाइसेंस निलंबन जैसे कदम
✦ निष्कर्ष: अधूरी क्लिप, पूरा ज़हर
कुछ सेकंड का वीडियो
जब सच से काट दिया जाता है,
तो वह सूचना नहीं—हथियार बन जाता है।
आज ज़रूरत है:
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जिम्मेदार मीडिया
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सचेत दर्शक
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और मजबूत कानून प्रवर्तन
क्योंकि
लोकतंत्र में सबसे खतरनाक झूठ वह होता है,
जो सच की तरह दिखाया जाए।


