श्रीरामयण ज्ञान यग का समापन

राम शरणम् शिमला में विजय दशमी एवम परम आदरणीयश्री प्रेम जी महाराज के प्रकट दिवस के उपलक्ष पर वीरवार को श्रीरामयण ज्ञान यग का समापन सामरोह प्रातः 9 से 10:30 बजे तकआयोजित किया गया ! इस अवसर पर हजारों की संख्या में श्रधालुओं नेएकत्रित होकर राम रस पान किया ! श्री रामयण जी और राम – नाम कीधुनो से ऐसा भक्ति में माहौल बन गया था की, ऐसा प्रतित होता था कीस्वामी सत्यानन्द जी महाराज, प्रेम जी महराज सवयं विचरण करके हमे येसन्देश दे रहे थे की “लुट-लुट लो नसीबा वालो, लुट पैगी राम नाम दी”सच्चे संत की क्या परिभाषा है , इस का ज्ञान हमे स्वामी प्रेम जी महाराजके जीवन वृतांत से मिलता है, की राम नाम में लीन रहते हुए भी वेसांसारिक कार्यो को कैसे अंजाम देते थे !
ऐसी दिव्यात्मा का जन्म 2 अक्टूबर 1920 को हुआ था ! सवामी सत्यानन्द महराज जिन्होंने उन्हें अपना उतराधिकारी घोषति किया! उनका जीवन गुरु महाराज के ग्रन्थो से प्रेरित था ! सदा राम नाम में लीन रहने वाले संत बाल बरह्मचारी प्रेम जी महारज का सारा जीवन निसवार्थसेवा से भरपूर था ! दिल्ली में सरकारी सेवा करते हुए दुसरो की सेवा भीकी, प्रेम जी महारज होम्योपैथी चिकित्सा में भी निपुण थे , जटिल रोगोंके लिए दवा और आशाए दोनों प्रदान करने का काम किया ! राम नामजप की प्रेरणा और संत्संग का प्रचार किया l आश्रम की स्थापना की,दिल्ली के अलावा उज्जेन, इंदौर, गोहना में राम शरणम् आश्रमों में कीस्थापना की, इन सभी आश्रमों में जप, ध्यान, प्रार्थना की क्रमबद्ध साधन होती है l दिन रात जप करने की परम्परा होती है !
प्रेम जी महाराज का जीवन विनम्रता, आत्मत्याग, नैतिक, आत्मिक, उच्च आदर्शो पर चलने वाला जीवन था l उन्होंने उपहार स्वीकारनही किये l दूसरो की सेवा ग्रहण नहीं की, ना पैर छुने दिये, आचारों सेउदाहरण स्थापित किये , उन्होंने दुसरो के दुःख अपने ऊपर ग्रहण किये lजीवन के अंतिम शरीर को भी कष्ट सहना पड़ा ! राम नाम जाप को भीसर्वोपरी माना ! गरीबो व आसहयो की सेवा की l उन्होंने ने गुरु स्वामीसत्यानन्द जी के मार्ग को आगे बढ़ाया ! अपने जीवन में गुरु के आदर्शो काअनुकरण किया l ऐसी दिव्यात्मा ने 29 जुलाई 1993 को अपना भौतिक चोला त्याग कर राम नाम लीन हो गये !
ऐसे गुरु को कोटि – कोटी प्रणाम, जिनके जीवन का एक हीउदेश्य था, की राम नाम ही सर्वोपरि है
“वारे जाऊ संत के जो देवे शुभ नाम
बाहं पकड़ सुस्थिर करें राम बतावे धाम “




