EXCLUSIVE: हिमाचल मेडिकल सर्विसेज़ कॉर्पोरेशन की अंदरूनी संरचना पर सवाल
तो कैसे होगी स्वास्थ्य क्षेत्र में समय पर खरीद , जब ढांचा ही आउटसोर्स कर्मियों पर टिका

शिमला
हिमाचल प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती देने के लिए गठित हिमाचल मेडिकल सर्विसेज़ कॉर्पोरेशन की अंदरूनी संरचना पर अब गंभीर सवाल उठ रहे हैं। प्रदेश के तमाम अस्पतालों में दवाओं और मेडिकल उपकरणों की आपूर्ति की जिम्मेदारी जिस विभाग के पास है, वही विभाग कर्मचारी संकट से जूझ रहा है। हालात ये हैं कि इस कॉर्पोरेशन में सिर्फ दो अधिकारी ही नियमित पदों पर कार्यरत हैं, जबकि शेष पूरा ढांचा l आउटसोर्स कर्मचारियों के सहारे चल रहा है।
क्या इस आधार पर चल सकती है राज्य की स्वास्थ्य खरीद प्रणाली?
कॉर्पोरेशन का कार्य केवल दवाइयाँ  और उपकरण खरीदना नहीं, बल्कि प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, प्रमाणन, आपूर्ति चक्र, क्वालिटी कंट्रोल, वित्तीय लेखा जैसे दर्जनों कार्य भी शामिल हैं। इन सबके लिए प्रशिक्षित और स्थायी कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।
लेकिन:
एमडी और फाइनेंस प्रमुख को छोड़ दें तो कोई भी कर्मचारी नियमित नहीं है।
लेखा, स्टोर, आईटी, डिस्पैच, लॉजिस्टिक्स जैसे विभाग  आउटसोर्स के भरोसे चल रहे हैं। 
क्या संवेदनशील विभागों को ऐसे ही चलाया जाएगा?
स्वास्थ्य क्षेत्र की खरीद बेहद संवेदनशील होती है। लाखों-करोड़ों की दवाइयों और मशीनों की गुणवत्ता, समय पर डिलीवरी और पारदर्शिता पर ही आमजन का स्वास्थ्य टिका होता है। ऐसे में जब इनके पास ही स्थायित्व नहीं, तो जवाबदेही किससे तय होगी?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसी विभाग में खरीद के लिए बनाए गए सिस्टम में ही संरचनात्मक कमजोरी हो, तो कागजों पर बनी पॉलिसियां ज़मीन पर दम तोड़ देती हैं।
यदि सरकार स्वास्थ्य सेवा को लेकर सच में गंभीर है, तो उसे सबसे पहले उसकी खरीदी प्रणाली को सशक्त और स्थायी बनाना होगा। लेकिन कॉर्पोरेशन की स्थिति फिलहाल इसके उलट तस्वीर पेश कर रही है।
सबसे बड़ा सवाल: जवाबदेही किसकी?
जब विभागीय फाइलें, निविदाएं और बिल प्रोसेसिंग का कम काम आउटसोर्स पर रखे गए कर्मचारियों के हवाले भी मजबूरी में रखना पड़ा रहा हैं, तो अगर कल को कोई प्रशासनिक गड़बड़ी होती है, तो उसकी जवाबदेही कौन लेगा?
 
					 
							
													
