
टीबी को हराने की जंग में हिमाचल प्रदेश ने कमाल कर दिया है। जिस मुहिम को देशभर में चुनौती समझा जा रहा था, उसमें हिमाचल ने वो कर दिखाया है जिसे देखकर बाकी राज्य अब उसकी रणनीति समझने की कोशिश में लग गए हैं।
भारत सरकार की ताजा रिपोर्ट कहती है — हिमाचल न सिर्फ तैयारी में अव्वल रहा, बल्कि उसने ज़मीनी स्तर पर नतीजे भी दिए हैं।
जब बात स्क्रीनिंग की हो, हिमाचल सबसे आगे
देशभर में जहां सिर्फ 16% कमज़ोर आबादी की जांच हो पाई, हिमाचल ने 66% स्क्रीनिंग कर डाली! यह आंकड़ा सिर्फ नंबर नहीं, उस जनभागीदारी और स्वास्थ्य कर्मियों की मेहनत का प्रतीक है, जो गांव-गांव, घर-घर दस्तक देकर यह मिशन चला रहे हैं।
एक्स-रे मशीनों ने पहुंचाई राहत, लक्षण से पहले पकड़ में आई टीबी
यह अपने आप में चौंकाने वाला तथ्य है कि हिमाचल ने 95% एक्स-रे टेस्ट ऐसे लोगों में किए जिनमें लक्षण नहीं थे! यानी बीमारी को पहले ही पहचान कर उसे जड़ से मिटाने की रणनीति काम कर गई। राष्ट्रीय औसत 68% से बहुत ऊपर।
NAAT तकनीक: टेस्टिंग में टेक्नोलॉजी का जोरदार इस्तेमाल
नए ज़माने की नैदानिक तकनीक — NAAT — का इस्तेमाल हिमाचल में 74% मामलों में हुआ, जबकि देश का औसत सिर्फ 59% है। इसका मतलब है कि यहां टीबी का इलाज अनुमान से नहीं, पक्के प्रमाण से किया जा रहा है।
डीबीटी (DBT) से पहुंचा हक़ सीधे हाथ में
पैसे की बात हो तो अक्सर सिस्टम पर सवाल उठते हैं, लेकिन हिमाचल ने डिजिटल बेनेफिट ट्रांसफर में भी बाज़ी मारी। यहां 67% लाभार्थियों को पूरा DBT लाभ मिला, जबकि पूरे भारत में यह आंकड़ा महज 36% है।
पोषण किट: दवा के साथ भोजन भी जरूरी
टीबी के मरीजों को सिर्फ दवा नहीं, पोषण भी चाहिए — इस सोच को अमल में लाते हुए हिमाचल ने 52% मरीजों को पोषण किट दी, जबकि राष्ट्रीय आंकड़ा 36% पर ही ठिठक गया।
यह सफलता किसी ‘अकेले नायक’ की नहीं है
यह कहानी है उन हज़ारों आशा वर्करों की, स्वास्थ्य कर्मियों की, पंचायत प्रतिनिधियों की, एनजीओ कार्यकर्ताओं की और डॉक्टरों की और स्वास्थ्य के अधिकारियों की, जो दिन-रात अपने समुदायों में बदलाव की बुनियाद रख रहे हैं।
जब सरकार, सिस्टम और समाज एकसाथ आएं — तो टीबी जैसी महामारी भी घुटने टेक देती है।
अब हिमाचल सिर्फ देवभूमि नहीं, स्वास्थ्य भूमि भी बन रहा है।
“टीबी हारेगा, देश जीतेगा — हिमाचल लाएगा बदलाव” सिर्फ नारा नहीं, अब एक हकीकत बन चुकी है।



