असर संपादकीय: विश्वसनीयता का प्रतिनिधित्व करें हिन्दी समाचारपत्र
डॉ. निधि शर्मा (स्वतंत्रता लेखिका) की कलम से

भाषा और उसकी शैली को पढ़ने और सीखने का सबसे सरल व उपलब्ध माध्यम होता है समाचारपत्र । ये समाचारपत्र उस समाज की पठन-पाठन की आदतों के साथ-साथ उसकी आर्थिकी, सामाजिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक पहलूओं को उज़ागर करने में भी कारगर साबित होते हैं । हमारे देश में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अख़बार हिन्दी भाषा के हैं । जो हिंदी के साथ-साथ सको बोलने वाले लोगों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं । क्योंकि हिन्दी भाषाई क्षेत्र में उन लोगों की बोल-चाल, सोचने व समझने वाले शब्द इन अख़बारों के फॉन्ट स्टाइल्स बन जाते हैं, ताकि पाठकों के साथ आसानी से जुड़ाव महसूस कर सके । इसलिए सबसे ज्यादा प्रयोग हिंदी समाचारपत्रों में फॉन्टस और लेआउट के साथ ही किया जाता है ।
आज हिन्दी के समाचारत्रों की बात इसलिए हो रही है क्योंकि इसी दिन 30 मई 1826को कलकत्ता में पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने उदन्त मार्तण्ड नाम का साप्ताहिक हिन्दी का पहला समाचारपत्र शुरु किया था । इसलिए हर वर्ष यह दिन हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है । लेकिन उस समय आर्थिक कठिनाईयों के कारण यह समाचारपत्र ज्यादा देर तक प्रकाशित नहीं हो सका आज भी हिंदी के समाचारपत्रों की व्यथा कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है । यही कारण है कि नवाचार का प्रयोग । अंग्रेजी समाचारपत्र की तुलना में हिंदी एवं क्षेत्रीय अख़बारों में ज्यादा देखने को मिल रहा है । सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत संलग्न समाचारपत्र पंजीयक कार्यालय के मुताबिक हिन्दी भाषा में 2019-20 तक पंजीकृत समाचार-पत्र पत्रिकायें 46,827 है । जिसमें प्रसार संख्या करीब 19.9 करोड़है । जबकि दूसरे नंबर पर अंग्रेजी है । हालांकि कोविड-19 के बाद आरएनआई का अभी तक कोई सर्वे ही नहीं किया गया है । लेकिन ये उपरोक्त आंकड़े भारत में 2011 जनगणना के मुताबिक लगभग 44 प्रतिशत हिंदी भाषा लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं । इसलिए लोगों की भाषा शैली को आत्मसात् करना इन हिंदी समाचारपत्रों के लिए अत्याधिक ज़रूरी है ।
हालांकि हिंदी समाचारपत्रों के सामने सबसे बड़ी चुनौती डिजिटल मीडिया के माध्यम से पहुँच रहा कटेंट पश कर रहा है । जिसने अख़बार की फीजिक्ल कॉपी की संख्या को प्रभावित तो किया है लेकिन अख़बार के अस्तित्व की लड़ाई को सत्यता, निर्भकता और विश्वसनीयता से ही पाठकों के बीच जीता जा सकता है । अक्सर देखा गया है कि कुछ पढ़े-लिखे लोग उत्सुकतावश अख़बार का पाठक अभी भी बने हुए हैं । इसका सबसे बड़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश है जहाँ हिन्दी के सबसे ज्यादा समाचारत्र प्रकाशित होने के साथ-साथ पढ़े भी जाते हैं । यही कारण है कि यह राज्य हिंदी अख़बारों के लिए सबसे बड़ा बाजार बन गया है । इतने बड़े बाजार में सिर्फ ख़बर की सत्यता ही समाचारपत्र को लोकप्रिय बनाए हुए हैं ।
वर्तमान में सूचना की दुनिया में सबसे बड़ी चुनौती सही व गल्त ख़बर की पहचान करना है । इस समस्या के समाधान का नेतृत्व हिंदी के समाचारपत्रों द्वारा किया जा सकता है । क्योंकि उत्तर भारत में तो हिंदी भाषी समाचारपत्रों का डंका बोलता है और इसी क्षेत्र में देश की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है । इस जनसंख्या में मुख्य भाषा हिंदी ही बोली जाती है । इसलिए इस क्षेत्र में हिंदी समाचारपत्रों की ख़बरों के प्रति मौलिकता, रूचि और पाठकों में रूझान पैदा करना मुख्या दायित्व बन जाता है । हालांकि आज के युवा पाठकों का पढ़ने के प्रति रूझान कम होकर इंटरनेट को ज्ञान का रिसोर्स बनाना काफी चिंताजनक है । जिस कारण से वे तार्किक ख़बर के बजाए मनोरंजक सूचना को प्राप्त करना ज्यादा पसंत करते हैं । जबकि कुछ आशा व्यस्क लोगों से है जो आ भी समाचारपत्रों के ख़बर को ही सही मानते हैं । इस दुविधा में ज़रूरी है कि हिंदी समाचारपत्रों के प्रबंधक ज़मीनी स्तर पर रचनात्मक तरीके से अभियान चलाएं कि पाठक तार्किक सूचना प्राप्त करने के लिए सिर्फ समाचारपत्र का सहारा ले । वर्तमान में जिस तरह बाजार में टिके रहने के लिए समाचारपत्र कई मार्किटींक संबंधित ऑफर लेकर पाठकों के बीच में जाती है ताकि उनकी प्रसार संख्या बढ़ती जाए उसी प्रकार अख़बारों को पढ़ने की इच्छाशक्ति को जगाने का ज़िम्मा भी अख़बारों के प्रतिनिधियों को संभालना होगा । यह समझने की अत्यंत आवश्यकता है कि प्रसार संख्या बढ़ना और उसी संख्या में पाठकों द्वारा समाचारपत्र पढ़ने में काफी अंतर होता है ।
इसके साथ ही एक अन्य महत्वपूर्ण विषय यह है कि सूचना आज साधारीकरण से आगे निकलकर फेक, डीप फेक और आर्टिफीशिल टेक्नॉलाजी की चुनौतियों का सामना कर रही इस परिस्थिती में तार्किक ख़बर की कमान हिंदी समाचारपत्रों को संभालनी हो होगी । उत्तर भारत में प्रकाशित होने वाले हिंदी पत्र पत्रिकाओं को अनिवार्य फेक न्यूज़ जाँच विभाग की स्थापना करनी चाहिए हालांकि की समाचारपत्रों जैसे दैनिक जागरण द्वारा विश्वास न्यूजरूम की स्थापना की गई है । राष्ट्रीय समाचारपत्रों के साथ-साथ क्षेत्रीय हिंदी समाचारपत्रों को भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए । यह समझने की आवश्यकता है कि गाँव-गाँव तक फैल चुके फेक न्यूज़ ने मानसिक व तार्किक तौर पर समाज को खोखला कर दिया है अब समय आ गया है कि अतार्किक ख़बर की परतंत्रता से मुक्त करने के लिए हिंदी समाचारपत्रों को आवाज़ बुलंद करनी होगी । बेशक ये रूझान हर भाषाई समाचारपत्र तक चलना चाहिए । इससे भी महत्वपूर्ण बात इस सूचनात्मक लड़ाई में जीत सिर्फ समाचारपत्र ही दिला सकते हैं ।



