कोटखाई में होगी औषधीय पौधों की खेती
-जाइका वानिकी परियोजना ने जाशला गांव में जताई भरपूर संभावना

शिमला।
सेब उत्पादक क्षेत्र कोटखाई में औषधीय पौधों की खेती के लिए जाइका वानिकी परियोजना ने नई पहल शुरू कर दी है। परियोजना ने वन मंडल ठियोग के अंतर्गत वन परिक्षेत्र कोटखाई में गठित ग्राम वन विकास समिति जाशला में औषधीय पौधों की खेती के लिए अपार संभावनाएं जताई है।
शनिवार यानी 5 अप्रेल को जाशला में मैनेजर मार्केटिंग जड़ी बूटी प्रकोष्ठ डा. राजेश चौहान की अध्यक्षता में महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई, जिसमें कडु और चिरायता की खेती शुरू करने के लिए ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने यहां उपस्थित लोगों को अवगत करवाया कि इन औषधीय पौधों की खेती के लिए यह क्षेत्र जलवायु अनुकूल है। उन्होंने कहा कि इस खेती के लिए जाइका वानिकी परियोजना ग्रामीणों को निशुल्क पौधे उपलब्ध करवाने के साथ-साथ सभी तकनीकी प्रशिक्षण भी देगी।
डा. राजेश चौहान ने कहा कि आज के इस दौर में औषधीय पौधों को बाजार में बेहतरीन दाम मिल रहे हैं, जिससे लोग अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ कर सकते हैं। वन मंडल ठियोग के विषय वस्तु विशेषज्ञ डा. अभय महाजन और क्षेत्रीय तकनीकी इकाई समन्वयक लोकेंद्र झांगटा भी उपस्थित रहे।
ग्राम वन विकास समिति जाशला के प्रधान प्रदीप लेटका, जयदेवी नंदन स्वयं सहायता समूह की प्रधान प्रेम लता और जय मां चालकाली स्वयं सहायता समूह की प्रधान उषा ने जाइका वानिकी परियोजना की इस महत्वपूर्ण पहल की सराहना की। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में औषधीय पौधों की खेती की भरपूर संभावनाएं हैं, जिसे जन सहभागिता के माध्यम से सफल करेंगे।
गौरतलब है कि परियोजना ने बीते वर्ष किन्नौर, आनी और कुल्लू में भी कडु के पांच लाख पौधे जन सहभागिका के माध्यम से रोपे। बताया गया कि इन औषधीय पौधों की खेती पूरी तरह से रसायन मुक्त होती है। इससे जल स्रोतों को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। वर्तमान में कडु को स्थानीय बाजार में दो से पांच हजार रूपये प्रति किलोग्राम से हिसाब से कीमत मिल रही है। जबकि चिरायता तीन से पांच सौ रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक रहा है।



