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बरसाती मौसम में होने वाली बीमारियां बचाव और उनकी होमियोपैथिक चिकित्सा

 डॉ एम डी सिंह की कलम से...

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डॉ एम डी सिंह

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मानसून आ चुका है। कहीं कम कहीं ज्यादा बारिश हो रही है। बादल दौड़ने लगे हैं। मौसम सुहाना हो चला है किसान खेतों में जुट गए हैं। बच्चे भीगने की जिद कर रहे हैं। लोग बारिश के आनंद को भरपूर अपने भीतर भर लेना चाहते हैं। गर्मी, लू, धूल से निजात मिल रही है। ऐसे में रोगों का भय दिखाना अच्छा तो नहीं लग रहा। किंतु एक चिकित्सक होने के नाते अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए संभावित बीमारियों के प्रति सब को आगाह कर देना मेरी प्राथमिकता में है।

 

बरसात में होने वाली मुख्य बीमारियां-

 

सर्दी जुकाम खांसी, बुखार, मलेरिया, टाइफाइड, डेंगू, चिकनगुनिया, अर्टिकेरिया, दाद- दिनाय, खुजली, फाइलेरिया, पीलिया, डायरिया, डिसेंट्री ,फूड प्वाइजनिंग, जोड़ों की दर्द, खसरा, चिकन पॉक्स, फोड़े- फुंसी, जापानी इंसेफेलाइटिस, कृमी रोग एवं इंसेक्ट बाइट इत्यादि।

 

बचाव- चिकित्सा से कहीं ज्यादा जरूरी है रोग से बचाव किया जाए । थोड़ी सी सतर्कता और हिदायत के साथ रहकर हम मौसम का आनंद भी उठा सकते हैं और रोगों से बचे भी रह सकते हैं। हम निम्न बातों का ध्यान रखकर आसानी से अपना बचाव कर सकते हैं:

 

1- पहली बारिश में ना भीगें। पहली बारिश में आकाश में फैले हुए प्रदूषण के कारण धूल धुआं इत्यादि पानी के साथ नीचे आ जाते हैं। जिनमें भीगने पर अर्टिकेरिया सर्दी जुकाम, बुखार खांसी एवं दमा जैसी अनेक एलर्जीकल बीमारियां हो सकती हैं।

 

2- भीगे वस्त्र देर तक ना पहने रहें। बरसात के मौसम में अनेक तरह के फंगस खूब विकसित हो जाते हैं। भींगे वस्त्रों के साथ शरीर के फोल्ड वाली जगहों जैसे स्क्रोटम और जांघों के बीच, घुटने के पीछे वाली जगह, कोहनी के अंदर वाली जगह, कांख और गर्दन के पास दाद दिनाय के रूप में फंगस का आक्रमण हो जाता है।

 

3- कीचड़ और पानी में ज्यादा देर तक पांवों को डुबा कर ना रखें। ऐसा करने से उंगलियों के बीच में सड़न एवं भीगी मिट्टी में पनप रहे फंगस और इंसेक्ट्स के कारण अनेक परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं । ऐसी अवस्था में तुरंत घर लौट धो- पोछ कर सरसों,नारियल अथवा जैतून के गुनगुने तेल से मालिश करें।

 

4- बरसात के मौसम में अंधेरा होने के बाद बाहर पैदल निकलते समय टॉर्च, छड़ी और छाता अवश्य ले लें। बरसात के मौसम में इंसेक्ट बाइट के केस बहुतायत में मिलते हैं।

 

5- बरसात के मौसम में कीड़े मकोड़े एवं मच्छर मक्खियों की अनेक प्रजातियां जन्म लेती है, जिनके लार्वा जलजमाव वाले स्थानों पर अपना जीवन चक्र प्रारंभ करते हैं। डेंगू और मलेरिया से बचने के लिए साफ जल एवं दूषित जल दोनों के जमाव को प्रतिबंधित करना पड़ेगा। जहां डेंगू के मच्छर को रोकने के लिए कूलर और गमलों के जल को निरंतर बदलना पड़ेगा वही मलेरिया के मच्छर को रोकने के लिए नाली- नालों और आसपास गड्ढों में कीटनाशकों का छिड़काव करना पड़ेगा।

 

6- टाइफाइड और पीलिया जैसे जल जनित रोगों से बचने के लिए बरसात के मौसम में पीने के लिए उबालकर ठंडा किया हुआ पानी ही प्रयोग किया जाए।

 

7- नहाने से पहले सरसों, जैतून, अथवा नारियल के तेल का पूरे शरीर पर मालिश करें इससे कई तरह के फंगस से होने वाली व्याधियों से बचाव संभव है।

 

8- यदि घर में सीड़न है तो आप कई तरह के रोगों से पीड़ित होने वाले हैं जिनमें से आर्थराइटिस अथवा गठिया भी एक है इसलिए बरसात प्रारंभ होने से पहले ही उसे यथासंभव दूर करने का प्रयास करें।

 

9- खुले में शौच ना करें । और जहां ऐसा हो रहा हो उसे रोकें और लोगों को शिक्षित करें । क्योंकि राउंड वर्म, टेपवर्म, पिन वर्म इत्यादि अनेकों कृमियों का प्रकोप इसी माध्यम से होता है।

 

10- बिछावन और वस्त्रों को धूप होते ही यथासंभव धूप दिखाएं ताकि आप अनेक किस्म की एलर्जी और स्केबीज से बच सकें।

 

11- उत्तर प्रदेश और बिहार के तराई इलाके बरसात आते ही बच्चों को आक्रांत करने वाले मस्तिष्क ज्वर जापानी इंसेफेलाइटिस के आतंक से डरे रहते हैं। ऐसी अवस्था में स्वास्थ्य विभाग और सरकारी तंत्र के साथ आम जनता को भी साफ- सफाई और बच्चों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा। खासतौर से मक्खियों और मच्छरों से बचाव अत्यंत आवश्यक है।

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12- योग, व्यायाम और खेलकूद द्वारा अपने रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

 

13- टीकाकरण द्वारा बच्चों और अपने को सुरक्षित कर लिया जाए।

14- बरसात के मौसम में मक्खियों की अधिकता एवं उमस के कारण खाद्य पदार्थों की विषाक्तता बढ़ जाती है। इसलिए किसी फंक्शन में यदि भोजन कर रहे हैं तो वहां की परिस्थितियों एवं अपने पेट का ध्यान अवश्य रखें।

15- मास्क अवश्य लगावें। कोविड-19 के वायरस से बचाव तो होगा ही साथ ही इस मौसम में होने वाली कई अन्य ड्रॉपलेट इनफेक्शन तथा गंध से होने वाली एलर्जी से भी आप बचे रहेंगे।

 

बचाव की होमियोपैथिक औषधियां

 

कुछ होम्योपैथिक औषधियां रोग होने के पूर्व भी पीके की तरह रोकी जा सकती हैं जिनके कारण या शुरू होगा ही नहीं यदि होगा भी तो उसका प्रभाव बहुत हद तक घातक नहीं रह जाएगा। जिस एरिया में जिस रोग का प्रकोप फैलता हुआ महसूस हो वहां इन दवाओं को 15 दिन में एक बार एक खुराक दिया जा सकता है। वह निम्न वत हैं-

 

1- चिकन पॉक्स के लिए वैरिऔलिनम 200

2-मिजिल्स के लिए मारबीलिनम 200

3- इनफ्लुएंजा के लिए इनफ्लूएंजिनम 200

4- मलेरिया के लिए मलेरिया ऑफिसिनेलिस 200

5- टाइफाइड के लिए टाइफाइडिनमन 200

6- पीलिया के लिए चेलिडोनियम 1000

7- कुकुर खांसी के लिए परट्यूशिन 200

8-ब्लैक फंगस के लिए मैंसिनेला 200

9- दिनाय अथवा रिंगवर्म के लिए रस टॉक्स सी एम

10- डेंगू बुखार के लिए टी एन टी 30 एवं यूपेटोरियम परप्यूरिका 200 एक एक हफ्ते पर बारी बारी एक- एक बार।

11- कोविड-19 के लिए न्यूमोकोकिनम 200 एवं मारबिलीनम 200 तथा आर्सेनिक एल्बम 200 एक एक हफ्ते पर एक खुराक बारी बारी।

12- चिकनगुनिया के बचाव के लिए मेडोरिनम 1000 एवं रस टॉक्स 1000 , एक एक महीने पर एक दिन बारी बारी ।

13- फाइलेरिया से बचाव के लिए आर्सेनिक अल्ब 10 एम महीने में एक बार।

14- गरिष्ठ भोजन के बाद नक्स वॉमिका 200 की एक खुराक भोजन पचाने में काफी सहायक सिद्ध हो सकती है।

15- स्टेफिसेग्रिया 1000 हफ्ते में एक बार ली जाए तो मच्छर- मक्खी कम काटेंगे।

 

होम्योपैथिक चिकित्सा- उपरोक्त सभी रोगों के लिए होम्योपैथी में तेजी से एवं निश्चित रूप से काम करने वाली औषधियां प्रचुर संख्या में मौजूद हैं। उनके लिए आपको अपने पास के होम्योपैथिक चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।

 

बरसाती मौसम के लिए कुछ विशेष होम्योपैथिक औषधियां-

 

1- बारिश में भीग जाने के कारण होने वाली बीमारियों के लिए रस टॉक्स 30,200 ,1000

2- गरज तड़प वाला तूफानी मौसम होने पर यदि कोई रोग हो तो रोडोडेंड्रान 30,200

3- बारिश आने के ठीक पहले होने वाली उमस के कारण पैदा हुए रोग के लिए डल्कामारा 200

4- सीड़न वाली जगहों पर रहने अथवा पानी में पैदा होने वाले फल और सब्जी खाने की वजह से होने वाले रोगों के लिए नेट्रम सल्फ 30 ,200 और 1000

5- बरसात के मौसम में बकरे अक्सर बीमार हो जाते हैं उनका मांस खाने पर होने वाली बीमारियों के लिए आर्सेनिक अल्ब 200

6- बरसात के मौसम में मछलियां खूब मिलती हैं और लोग सेवन भी करने लगते हैं। उनसे होने वाली पेट की व्याधियों के लिए चिनिनम आर्स 200

7- बरसात के मौसम में बिच्छू (स्कॉर्पियन) अक्सर घूमते हुए मिल जाते हैं। यदि वे डंक मार दें तो एक सादे पेपर पर घी लगा कर उस पर हल्दी पाउडर बुरक दें, फिर उसे सिगरेट की तरह रोल कर लें और आगे से जलाकर पीछे वाले हिस्से से सिगरेट की तरह 1-2 फूंक अंदर खींच लें एक- दो मिनट के अंदर ही बिच्छू के विष का प्रभाव समाप्त हो जाएगा। यह पूरी तरह अनुभूत चिकित्सा है। आर्सेनिक अल्ब 200 ,लीडम पाल 200, ल्यूकास एस्पेरा क्यू ,ऐपिस मेल्लीफिका 200 , स्टेफिसेग्रिया 200 इंसेक्ट बाइट की कारगर औषधियां हैं।

8- सर्पदंश के लिए ल्यूकास एस्पेरा क्यू को महौषधि माना गया है । इसे 30 -30 बूंद होश आने तक 15-15 मिनट पर देना ठीक रहेगा। यह औषधि गुम नामक प्रसिद्ध वनस्पति से बनी है यदि इसका मदर टिंचर तुरंत ना मिल पाए तो गुम की पत्तियों का अर्क मुंह और नाक की माध्यम से देना हितकर रहेगा। दंश पीड़ित को यथाशीघ्र एंटी वेनम लगवाने की राय देना चाहिए। गोलैंड्रियाना एवं नाजा टी 200 भी लाभप्रद होम्योपैथिक औषधियां हैं।

 

( औषधियों का निर्णय होम्योपैथिक चिकित्सक द्वारा होना ठीक र

 

Deepika Sharma

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