विविध
जब हवाओं को जरूरत थी तो हम डॉ एम डी सिंह

जब हवाओं को जरूरत थी तो हम थे–
जब दिशाओं को जरूरत थी तो हम थे
लाख रोका था तब सबने हम न माने
जब फिजाओं को जरूरत थी तो हम थे
हर कहीं था मातम मौत के आतंक से
जब चिताओं को जरूरत थी तो हम थे
हर दर था पहरा बहारों पर तपन का
जब घटाओं को जरूरत थी तो हम थे
जमी पर सियासत की बगावत के लिए
जब अदाओं को जरूरत थी तो हम थे



