
रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
यक्ष प्रश्न – 3
मन, विचार और बुद्धिमता
यक्ष ने पूछा, वह कौन है जो इन्द्रियों के सब विषयों का भोग कर, बुद्धि से संपन्न, संसार में माना जाता है और सभी प्राणियों द्वारा पसंद किया जाता है, यद्यपि श्वास लेते हुए, अभी तक जीवित नहीं है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, “जो व्यक्ति इन पांचों देवताओं, मेहमानों, नौकरों, पूर्वजों (पितृ) को कुछ भी नहीं चढ़ाता है, और स्वयं, हालांकि सांस से संपन्न है, वह अभी तक जीवित नहीं है।

आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं। देवता, मेहमान, नौकर व् पूर्वज – ये चारों एक ऐसी श्रेणी में आते है, जिन का सम्मान करना हर मानव का परम कर्तव्य बनता है। यहाँ देवता से तात्पर्य ऐसे व्यक्तित्व से है जो श्रेष्ठ व् परम पूज्य आत्मा माने जाते हैं। जो ज्ञान के भण्डार हैं और छल कपट से दूर एक ऐसा सरल आचरण करने वाले जो हमेशा सभी के भले के लिए ही कार्य करते हों। और अतिथि की देखभाल करना सभी की प्रमुख जिम्मेदारी है; हमारे प्राचीन शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार, यदि कोई शत्रु भी संरक्षण में आता है तो उसे भी अतिथि के रूप में माना जाता है। और जहां तक माता-पिता को माना जाता है, उनकी स्थिति भगवान के बराबर नहीं बल्कि उससे भी बड़ी होती है। इसी तरह अगर किसी के पास उसका ख्याल रखने के लिए नौकर, दास हैं, तो मालिक को उनके हितों, उनके परिवार, उनके सुख देख में इस तरह से शामिल होना है, जैसे वे उसके परिवार के सदस्य हों। अगर कोई इन कामों को नहीं कर रहा है, तो जिंदा होते हुए भी मरा हुआ है
यक्ष ने पूछा, “पृथ्वी से भी भारी क्या है? स्वर्ग से ऊंचा क्या है?” हवा से भी तेज क्या है? और घास से बढ़कर और क्या है?” युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, “माँ पृथ्वी से भी भारी है; पिता स्वर्ग से भी ऊंचा है; मन हवा से भी तेज है;
और हमारे विचार घास से भी अधिक हैं। युधिष्ठिर ने यक्ष के अगले प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा कि माता पृथ्वी से भारी है, तो उसका अर्थ है कि धरती की तरह एक माँ को हर तरह के दुःख को अपने कलेजे पर रखना पड़ता है, उसे चुपचाप हर तकलीफ सहन करनी पड़ती है, फिर भी वह अपने बच्चों की देखभाल करती है, अपने परिवार के लिए अपना सब कुछ निछावर कर देती है धरती माँ की तरह। और जब युधिष्ठिर कहते हैं कि मनुष्य का मन हवा से भी तेज है, तो वह कह रहे हैं कि एक निश्चित क्षण में, एक व्यक्ति के दिमाग में अनगिनत विचार आते हैं जिसकी गति अकल्पनीय है। युधिष्ठिर ने स्वर्ग से भी ऊंचा एक पिता बताया है, जो अपने बच्चों का पालन-पोषण करता है, अ
पने परिवार की देखभाल करता है, अपने परिवार और प्रियजनों के साथ कभी भी कुछ भी गलत नहीं होने देता है और दूसरों को बताए बिना सभी बोझ, चिंता अपने ऊपर ले लेता है। जब युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि हमारे विचार घास से भी अधिक हैं तो जरा कल्पना कीजिए कि घास के एक गुच्छा की मात्रा, जटिलता और गुणन; वैसे ही बाहरी मस्तिष्क में विचार प्रक्रिया भी ऐसी ही होती है।





