सम्पादकीय

असर संपादकीय: फूफत्व का महत्व कायम……..

मदन गुप्ता सपाटू की कलम से

 

– बचपन में हमारे परिवार में तीन दिवसीय एक विवाह समारोह के दौरान हमारे दादा जी ने हमसे कहा कि जाओ हरिद्वार वाले फूफा जी को बुला लाओ। बड़ा खानदान था। दस-बारह फूफे पंडाल में धोती- टोपी पहने, गले में सोने की चेन लटकाए, गुलाबी पगड़ी से सुसज्जित , चहलदमी कर रहे थे। हमने सब से पूछा कि हरिद्वार वाले फूफा जी कहां हैं तो एक ने निशानी बताई कि जो टांगें फेैला कर , एक हाथ कमर के पीछे टिकाए ,गुलाब जामुन टेस्ट करते हुए, हलवाई को मीठा कम और पूरियों में पीठी पूरी न भरने पर, पर झाड़ रहे हों , वही हरिद्वार वाले होंगे। और हमने उन्हें गूगल की तरह ढूंढ कर ,नमस्कार और चरणवन्दन करतेे हुए दादा जी का संदेश दे दिया। येे फूफा सीनियर मोस्ट थे जिनके बगैर दादा जी ,एक कदम आगे नहीं चल सकते थे यानी वे बॉस के सुपर बॉस थे।

ऐसे परिभाषित फूफे आज की माडर्न मैरिज में भी देखे जा सकते हैं जिन्हें ऐसे अवसरों पर खास कार्यभार सौंपा जाता है। जैसे हलवाई,केटरेर,टैंट वालों पर नजर रखना, प्लेटों की गिनती करना, बैंड वाले कितने आदमी थे, कितनों के बैंड बज रहे थे…. कितने केवल वर्दी पहने नंबर बढ़ाने को खड़े थे, दूल्हे के पिता के साथ कदम से कदम , कंधे से कंधा मिलाते हुए, शगुन का बैग थामें, गीफ्ट को एक ओर सुरक्षित रखवाते और वेटरों को पुअर सर्विस कह कर फटकारते हुए जो प्राणी नजर आए,समझो वही असली फूफा है। यह डयूटी नए फूफों को नहीं दी जाती अपितु ऐसे सीनियर मोस्ट को दी जाती है जिसे 20-25 से ज्यादा विवाह निपटवाने का प्रैक्टीकल एक्सपीरियंस होता है।

विवाह के पंडाल में दो तरह के फूफे नजर आएंगे। एक सत्ता पक्ष का जिसके आगे पीछे आठ -दस अन्य रिश्तेदार ऐसे चल रहे होंगे जैसे मंत्री के आगे पीछे स्क्यिोरिटी वाले। सीना तान कर वह हर स्टाल का निरीक्षण कर रहा होगा और एक आध को झाड़ रहा होगा। हर छोटी मोटी समस्या को बातचीत से हल करवाने में सक्षम। कई संबंधी उसका रौद्र रुप अन्य शादियों में देख चुके होते हैं और इससे पंगा लेने की हिम्मत नहीं करते। लेन देन का पूरा हिसाब इसी शख़्स के पास होता है। कहें तो विवाह तक वह वित मंत्रालय संभालता है। दूर से ही पता लग जाता है कि यह सत्ता पक्ष का फूफा है।

WhatsApp Image 2024-04-15 at 11.05.08_f85751c1

दूसरी ओर विपक्ष यानी कन्या पक्ष का फूफा, चुनाव मंे हारे हुए प्रत्याशी की तरह मिमियाता सा, असहाय ,बिना अंगरक्षकों के ,बिना हथियार के,बस बैग लटकाए शादी के रण क्षेत्र में उतार दिया जाता है। और हर कमी के लिए उत्तरदायी ,ठहराया जाएगा। गोलगप्पे का पानी भी अगर किसी को स्वाद न लगे तो इसका ठीकरा भी ऐसे फूफा पर ही फूटता है। समारोह समापन से पहले ही ,इन्क्वायरी में हर कोई पूछने लगता है-फूफा जी ! ये केटरिंग वाला आपने सजैस्ट किया था ?

मिलनी के समय, सत्ता पक्ष का फूफा ‘खली’ जैसा न होते हुए भी इसे हवा में उछाल कर अपना शक्ति प्रदर्शन कर लेता है। विपक्ष का यह प्राणी अपनी और लड़की वालों की इज्जत के लिए अपनी इज्जत कुरबान कर देता हैं। मन नही मन सोचता है कि कल किसी और शादी में आपोजिट पार्टी में मिलेगा तब देख लूंगा।

अब कुछ समय से फूफाओं की फूं-फां कम होती जा रही है। पहले बारातें जनवासे में गदद्े बिछा कर ठहराई जाती थी। चाचा ,ताए, जीजे साले, फूफे…… एक दूसरे से दिल खोल कर मिल लेते थे। नए नए रिश्ते जन्म लेते थे। विवाह योग्य लड़के लड़कियों की शादी की डेट वहीं पंडित जी के अनुमोदन से फिक्स हो जाती थी।

अब डेस्टीनेशन मैरिज में सब अपने अपने कमरों में बंद होते हैं। डी जे की आवाज में कुछ सुनाई नहीं पड़ता । फूफे का काम वैडिंग प्लानर खुद कर लेते हैं। आप वर या वधु के माता पिता के साथ एक फोटो में कैद हो जातेे हैं। कई बार यह भी नहीं याद रहता कि वर -वधु के नाम क्या हैं…. कौन सी फेमिली कहां की है। आधे बाराती तो उसी रात ,खा पीकर छू मंतर हो जाते हैं।

फूफों का अस्त्त्वि खतरे में नजर आ रहा है। जो टौर 20वीं सदी में थी आज वह कम होती जा रही है। फूफत्व का महत्व धुंधलाता जा रहा है।

बस हरियाणा के एक, 102 वर्षीय सुपर सिटीजन जिन्हें सरकारी रिकार्ड में मृत घोषित कर के ,पेंशन बंद कर दी गई थी , और जिन्दा होने के सबूत मांगे गए थे ,ने बैंड बाजा बारात निकाल कर और बैनर पर यह लिखवा कर- थारा फूफा अभी जिन्दा है …..फूफत्व के महत्व को एक राट्र्ीय सम्मान दिलवाया है।

जब तक ऐेसे फूफा कायम हैं, फूफत्व के महत्व का ,कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।

– मदन गुप्ता सपाटू, मो-98156-19620

458, सैक्टर-10, पंचकूला,हरियाणा-134109

Deepika Sharma

Related Articles

Back to top button
Close