EXCLUSIVE: शिक्षा विभाग में इंडस्ट्रियल विजिट के नाम पर फर्जीवाड़ा
पांच साल से जांच फाइलों में कैद
शिक्षा विभाग में सरकारी स्कूलों के छात्र-छात्राओं को इंडस्ट्रियल विजिट करवाने के नाम पर फर्जीवाड़े हुआ पर 5 वर्ष बीत गए पर अभी तक विभाग जांच पूरी ही नहीं कर पाया है।
विभाग द्वारा लगभग पांच वर्ष पहले हायर की गई एक निजी फर्म ने एडवांस में दी गई धनराशि में से 16 लाख रुपये को एडजस्ट करने के लिए कुछ सरकारी स्कूलों के बच्चों की उद्योगों में दौरा करवाने के लिए जमा करवाए। ये दोरे प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए थे। निदेशालय में जब इन बिलों की जांच की गई तो पता चला कि बच्चों को मोटरसाइकिल, मोपेड और ट्रैक्टर पर उद्योगों में भेजा गया। हैरानी की बात ये भी कि इनमें से अधिकांश वाहन प्राइवेट थे। | यानी टैक्सी व्हीकल भी प्रयोग नहीं किए गए। एक उदाहरण तो ऐसा भी आया कि ऊना स्कूल में 1700 रुपये के एक बिल को 11700 रुपये करके किया गया। जबकि टू व्हीलर या प्राइवेट वाहन का इस्तेमाल किया ही नहीं जा सकता था। अब मामला सामने आने के बाद समग्र शिक्षा अभियान ने सारे केस की जांच के आदेश दिए थे। पर पांच साल हो गए जांच फाइल में कैद हैं।
हालांकि पहले जांच शुरू तो की गई लेकिन संबंधित जांच अधिकारी के सेवानिवृत्ति के बाद जांच फाइल में कैद है अभी तक जांच की पूरी रिपोर्ट प्रदेश सरकार के समक्ष नहीं सौंपी गई है।
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ऐसे हुआ था गोलमाल
बताया जा रहा है कि वर्ष 2014-15 में एक कंपनी के माध्यम से स्कूली बच्चों को वोकेशनल एजुकेशन के तहत उद्योगों का स्टडी टूअर करवाया गया था। इसके लिए इस कंपनी को एडवांस पेमेंट भी दी गई थी जब कंपनी को बकाया पेमेंट करने को लेकर आए दस्तावेज खंगाले गए तो ये खुलासे सामने आए थे। पहले विभाग इस मामले की दो बिंदुओं पर जांच कर रहा था। पहला ये कि कंपनी ने फर्जी बिल क्यों दिए? और दूसरा कि इस मामले में क्या संबंधित स्कूलों की भी कोई मिलीभगत थी या नहीं।लेकिन सारी जांच सालों से बंद पड़ी है।
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