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असर विशेष: ज्ञान गंगा: जटायु -रावण संवाद 

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी की कलम से...

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी

रामायण में ऐसे अनेकों पात्र हैं, जिन्हों ने अपना कार्य पूर्ण निष्ठा व दिल से तो किया ही, साथ ही धर्म के मार्ग से न तो विचलित हुए और न ही अपने जीवन की परवाह की. ऐसे हे अनेकों चरित्रों में एक है पक्षिराज जटायु, जो कि गरुड़ सम्राट सम्पाती के भाई थे।

. श्रीराम की जटायु से प्रथम भेंट उस समय हुयी थी जब श्रीराम लक्ष्मण व सीता संग पंचवटी जा रहे थे। जटायु से मिलने के बाद उन्हें पता चला कि जटायु तो उनके पिता राजा दशरथ के बहुत अच्छे दोस्तों में हैं और सम्पाती के छोटे भाई हैं। उस छोटी सी भेंट के दौरांन जब जटायु को श्रीराम का परिचय हुआ तो जटायु ने उन्हें आश्वस्त किया कि वन में विचरण करते समय उन्हें किसी तरह का भय नहीं रखना चाहिए और लक्ष्मण व विशेषकर सीता का पूरा ख्याल रखने की जिम्मेदारी भी ली. विधाता ने ऐसा ही सोच भी रखा था कि समय आने पर जटायु ही सीता की सुरक्षा करने का प्रयत्न भी करेंगे।

जब रावण ने सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें बलपूर्वक अपने साथ लंका ले जा रहा था, तो जटायु ने रावण को रोका, उसे ललकारा और पूर्णतया विरोध किया। जटायु ने रावण संग युद्ध भी किया और अंत में युद्ध में मृत्यु प्राप्ति हुई क्योंकि एक तो रावण उनसे अधिक शक्तिशाली तो था ही और जटायु वृद्ध भी हो चुके थे. लेकिन,रावण से लड़ने से पहले, जटायु ने उसे भली भांति समझाने का भी प्रयास किया। जटायु ने रावण को क्या शिक्षा दी, उसे वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार दर्शाया गया है।

राजा के नैतिक कर्तव्य अरण्यकाण्ड (सर्ग ५० शलोक ७,८,९,१०,११,१२,१३,१४-१५,१८,१९)

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जटायु रावण को सम्बोधित कर के कहते हैं कि हे महाशक्तिशाली दैत्य-राज, राजाओं की पत्नियाँ विशेष सुरक्षा की पात्र होती हैं, इसलिए दूसरे के पत्नी पर हाथ रख कर ऐसी शर्मनाक हरकत मत कर जिस से कि विधाता तुम्हारे खिलाफ हो जाये, जिसका ऐसा होना स्वभाविक है।किसी भी सयाने मानव को ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए, जिसके फलस्वरूप दूसरे उसका बुरा सोचने लग जाएँ. दूसरों की पत्नियों की दूसरों के स्पर्श से वैसी ही सुरक्षा करनी चाहिए जैसी कोई स्वंय की पत्नी की सुरक्षा करता है।

हे पुलस्त्य के वंशज, सुसंस्क्र्त लोग ऐसी धन-दौलत व इन्द्रियोंका सुख व नेकी का भोग भी नहीं करते, जिसको धर्म-ग्रंथों में अनुमति न प्रदान की गयी हो. कोई भी राजा हो, उसमें नेक आदतों व नेक कर्म का होना और फिर इन्द्रिय सुख लेना उसके आचार में होता है। एक राजा में ऐसे गुणों का होना आवश्यक भी होता है और उचित व्यवहार व पाप दोनों ही एक राजा के आचरण से ही निकलते हैं. हे दैत्यों में चमकने वाले रत्न, आप् इस तरह से कमज़ोर हो कर कैसे पाप के मार्ग पर फिसल गए कि आपको वायु मार्ग से आना पड़ गया, जोकि नियम अनुसार एक नेक आत्मा को ही करना चाहिय? जब श्रीराम ने, जो कि असीमित शक्तियों के स्वामी हैं और जिनका मन व ह्रदय नेकी से भरपूर है, आपके क्षेत्र अथवा राज्य में आ कर किसी भी तरह का गलत कार्य नहीं किया, तो ऐसे में आप अपने मन में उनको नुक्सान पहुंचाने का विचार क्यों करते हो? ज्न्स्थाना में रहते हुए जब खर ने श्रुपनाखा के बहते आंसू पोछने हेतु अपनी सीमा पार कर ली और श्रीराम के हाथों मारा गया, जो उनका इरादा नहीं था; तो ऐसे में मुझे सच सच बताओ कि इसमें श्रीराम का क्या कसूर था जिसके कारण तुम उनकी अर्धांगिनी को भगा लिए जा रहे हो?

हर किसी को उतना ही भार उठाना चाहिए जितना कोई उठा सके और उसके भार तले दब ना जाये और उतना ही भोजन करना चाहिए जिसे, बिना किसी बीमारी के पचाया जा सके। ऐसा कौन होगा जो जानबूझ कर ऐसा कृत्य करे जिसके फलस्वरूप न तो शान बड़े, न ही प्रसिधी में बढोतरी हो और न ही ऐसा कार्य धार्मिक फल दे, बल्कि उसके करने से शरीर व मन थक कर टूट जाये।

जटायु ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया और श्रीराम को अपना दिया हुआ वचन कि सीता की सुरक्षा करेंगे, पूर्णतया निभाया।

Deepika Sharma

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