अमृत वाणी सातवाँ , श्री राम शरणम , श्री राम पार्क के प्रमुख सन्त श्री अश्वनी बेदी जी महाराज ने आज अग्रवाल धर्मशाला में श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में कहा कि

साधन में प्राप्त हुई मंजिल को स्थिर करने के लिये, भूमि दृढ़ होनी चाहिये। जब भूमि दृढ़ हो जाती है, तो फिर पतन का भय नहीं रहता। जिस प्रकार स्वास्थ्य प्राप्त हो जाने पर भी कुपथ्य करने से, फिर स्वास्थ्य खराब हो जाया करता है। मगर यदि स्वास्थ्य की जड़ प्राप्त हो जाये, तो फिर जल्दी स्वास्थ्य नहीं गिरा करता। यही हाल दृढ़ भूमि का है। जब भूमि दृढ़ हो जाती है, तो फिर विशेष क्रिया की भी आवश्यकता नहीं रहती, पर साधक प्रायः करते रहते हैं। भूमि दृढ़ करना कुछ अपने आधीन भी है। इसके लिये प्रयत्न करना चाहिये।
सन्त बेदी जी ने कहा
चेतन मन ने अपने आपको लोभ से, मोह से, ईर्ष्या से युक्त कर रखा है। जब आप कोई काम करने लगेंगे, तो कोई भाव विरोध का भी पैदा होगा और ऐसे तो आकाश में भी विरोधी तरंगें होती हैं। विरोध होता ही है। सूक्ष्म दुनियां में भी कोई ऐसी धारा होती है कि जब आदमी बढने लगता है, उसे वह अनेक प्रकार से बहकाती है। माया का बना हुआ अपना मन भी भूत बनकर मंजिल से गिरा देता है। यह विरोधी बातें आसुरी कहलाती हैं। जब मनुष्य का पतन होता है, तो होता ही चला जाता है। जब व्यक्ति को अपने लक्ष्य पर पूरा निश्चय हो, तो वह




