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हैरानी: शहरी लोगों के पानी के बिल क्यों नहीं किए माफ़

 

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) की जिला कमेटी सरकार द्वारा हाल ही में केवल ग्रामीण क्षेत्रों में पानी का बिल मुआफ़ करने की जो घोषणा की गई है वह चुनाव को ध्यान में रखकर की गई भेदभावपूर्ण घोषणा है क्योंकि शहरी क्षेत्रों में रह रही जनता को इससे बाहर रखा गया है और यह शहरी क्षेत्र में रह रहे लाखों लोगों के साथ धोखा है। क्योंकि लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार यदि कोई नीति का निर्धारण करती है या जनहित में कोई निर्णय लेती है तो वह समस्त जनता के लिए एक समान रूप से लागू किया जाता है। पार्टी सरकार से मांग करती है कि ग्रामीण क्षेत्रों की भांति ही प्रदेश के सभी शहरी क्षेत्रों में भी पानी के बिल मुआफ़ किया जाए। अन्यथा पार्टी जनता को लामबन्द कर सरकार के इस अलोकतांत्रिक व भेदभावपूर्ण निर्णय के विरुद्ध आंदोलन करेगी।

आगामी चुनाव के मद्देनजर सरकार गत साढ़े चार वर्षों में अपनी नाकामी को छुपाने के लिए भारी भरकम कर्ज के बावजूद इस प्रकार के लोकलुभावन घोषणाएं कर रही है। एक ओर सरकार की नीति है कि हर वर्ष पीने के पानी की दरों में 10 प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी और विश्व बैंक की शर्तों के अनुसार पेयजल की लागत कीमत जनता से ही वसूली की समझ बना रखी है। परन्तु सरकार ने न तो अपनी इस नीति में बदलाव किया है और न ही विश्व बैंक के साथ बनाई समझ बदली है तथा दूसरी ओर बिल मुआफ़ करने की घोषणा कर दी है। इससे स्पष्ट है कि यह घोषणा जमीनी स्तर पर अधिक समय तक कारगर नही रहेगी। यदि लागू की भी जाएगी तो चुनाव के पश्चात जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने पेट्रोल, डीज़ल व रसोई गैस की दरों में भारी वृद्धि की है उसी तरह पानी की दरों में भी भारी वृद्धि कर लोगों पर भविष्य में भारी आर्थिक बोझ डालेगी।

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बीजेपी सरकार द्वारा देश व प्रदेश में लागू की जा रही नीतियों के कारण महंगाई व बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही साथ शहरी क्षेत्रों में रहने वाले ध्याड़ी मजदूरी करने वाले, कारोबारी, व्यापारी, छोटा कर्मचारी व अन्य वर्ग आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं और रोजी रोटी अर्जित करना मुश्किल हो गया है। ऐसी विषम परिस्थिति में सरकार का इन शहरी क्षेत्रों में पानी का बिल मुआफ़ न कर इनके प्रति भेदभावपूर्ण रवय्या है और शहरी जनता को धोखा दिया गया है। आज शहरी क्षेत्रों में एक ओर जहाँ पीने के पानी की किल्लत है और कई इलाकों में तो 5 से 7 दिनों के बाद पानी की आपूर्ति की जा रही है। प्रदेश की राजधानी शिमला में अधिकांश क्षेत्रों में तीसरे दिन और कई क्षेत्रों में तो 4 से 6 दिनों के बाद पानी दिया जा रहा है। पानी की नियमित आपूर्ति न होने के बावजूद भी पानी के भारी भरकम बिल जिसमें भारी सीवरेज सेस भी जोड़ा जाता है जनता को दिये जा रहे हैं। सरकार पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन व अन्य मूलभूत सेवाओं को महंगा कर जनता पर आर्थिक बोझ डाल रही है। इससे सरकार का जनविरोधी चेहरा सामने आ गया है और स्पष्ट हो जाता है कि सरकार अपना संवैधानिक दायित्व निभाने में पूरी तरह से विफल रही है।

सीपीएम सरकार की इन जनविरोधी नीतियों को पलटने के लिए अपना संघर्ष जारी रखेगी और जनता से आग्रह करती है कि महंगाई व बेरोजगारी बढ़ाने वाली सरकार की इन नीतियों के विरुद्ध लामबंद होकर इस संघर्ष का हिस्सा बने।

 

Deepika Sharma

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