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उन वीर सपूतों को याद कर रहे हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है

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अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई द्वारा आज दिनांक 23 मार्च 2022 को शहीदी दिवस के उपलक्ष्य पर विवि के विज्ञान भवन में संगोष्ठी का आयोजन किया गया | इस कार्यक्रम में मुख्यअतिथि के रूप में मेजर जनरल अतुल कौशिक जी ( चेयरमैन, नियामक आयोग ) एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री रमेश ठाकुर जी (प्रान्त उपाध्यक्ष, अ.भा.वि.प हिमाचल प्रदेश ) मौजूद रहे |

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कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन कर के की गई | इकाई अध्यक्ष आकाश नेगी ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी कार्यकर्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि देश के लिए मर मिटने की भावना प्रत्येक देशवासी में होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम आज उन वीर सपूतों को याद कर रहे हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है |

कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए विशिष्ट अतिथि रमेश ठाकुर ने कहा कि सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के विचार राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि 12 साल की उम्र में शहीदे आजम भगत सिंह आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। भगत सिंह अपने साहसी कारनामों के कारण युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए थे। उन्होंने ही इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया। उन्होंने अपने छोटे से जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई, वह आज भी जिंदा है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों का जीवन युवाओं के बीच देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावनाओं को बढ़ावा देगी और उन्हें राष्ट्र निर्माण गतिविधियों में संलग्न होने के लिए प्रेरित करेंगी. उन्होंने कहा कि हम सब को देश के अमर सपूतों के बलिदान को सदैव स्मरण रखना चाहिए |

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कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि अतुल कौशिक जी ने कहा कि भारत की आजादी के पीछे स्वतंत्रता सेनानियों ने बहुत संघर्ष किया है. 1931 में 23 मार्च के दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने फांसी का फंदा चूमकर अपने प्राण देश पर न्योछावर कर दिए थे. देश के बहादुर क्रांतिकारियों और महान सपूतों द्वारा दिए गए बलिदान की याद में हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन का मकसद वीरता के साथ लड़ने वाले सेनानियों की वीर गाथाओं को लोगों के बीच लाना है. उन्होंने कहा कि भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिया जाना भारत के इतिहास में दर्ज सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी । इसके लिए तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। इन तीनों वीरों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई। उन्होंने कहा कि सजा की तारीख 24 मार्च थी, लेकिन 1 दिन पहले ही फांसी दे गई थी। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने भले ही इन वीरों को 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया था लेकिन वे इन वीरों के विचारों को खत्म नहीं कर पाए, उनके विचार आज भी जिन्दा हैं और हम सभी को प्रेरित कर रहे हैं |

कार्यक्रम के अंत में इकाई सह सचिव नैन्सी अटल ने इस संगोष्ठी में आने के लिए सभी कार्यकर्ताओं का धन्यवाद व्यक्त किया एवं सभी से आग्रह किया कि हम सभी को इन वीरों के जीवन से प्रेरणा ले कर देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना रखनी चाहिए |

 

Deepika Sharma

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